मधेपुरा : दिव्यांगों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात करते हैं. सरकारें योजनाएं बनाती है. तरह-तरह के सहायता देने, उपकरण देने का ढिंढोरा पीटा जाता है, लेकिन जमीनी तस्वीर कुछ और ही बयां करती है. न तो उन्हें उपकरण मिलता है न ही सरकारी योजना का लाभ मिलता है. फिर भी जीवन जीने की जिजीविषा इतनी जीवंत है कि बगैर हाथ पैर के इंटर की परीक्षा में वह शामिल है.
इस परीक्षा में शामिल करने के लिए मां ने तीन बकरी बेच कर राशि का इंतजाम किया. हर दिन घर से आने में चार सौ रुपये ऑटो का किराया, टूटी व्हीलचेयर पर लगभग घसीटते हुए परीक्षा हॉल में जाना बदहाली और परेशानी को दर्शाता है. यह मामला मधेपुरा जिले के कुमारखंड प्रखंड के रानीपट्टी सुखासन वार्ड नंबर नौ निवासी राहुल कुमार की है.
जो हाथ व पैर से पूरी तरह दिव्यांग है. वह जिला मुख्यालय स्थित बीएनएमवी कॉलेज में इंटर की परीक्षा दे रहा है. उसकी छोटी बहन पांचवीं की छात्रा मौसम कुमारी परीक्षा में उसकी लेखक है. राहुल को स्वास्थ्य विभाग द्वारा सिविल सर्जन की अध्यक्षता में डॉक्टरों के बोर्ड ने 80 प्रतिशत दिव्यांग माना है. इसके बाद भी सहायता नहीं मिलना सरकारी व्यवस्था की खामी दिखाता है.
पिता भी हैं दिव्यांग, दो बेटी शादी के लिए, पुत्र है 80 प्रतिशत दिव्यांग : इस बाबत राहुल की मां अनिता देवी कहती है परेशानी का कहर किसी पर ऐसा टूटेगा यह सपने में भी नहीं सोचा था. राहुल के पिता नंदकिशोर यादव से जब विवाह हुआ था तो वह ठीक थे, लेकिन गांव में फाइलेरिया की बीमारी की वजह से न केवल उनका दृष्टि प्रभावित हो गयी. बल्कि वे देर तक खड़े रहने से भी लाचार हो गये हैं. वह भी दिव्यांगता को भोग रहे हैं. वहीं बेटा राहुल भी 80 प्रतिशत दिव्यांग है. शादी के लायक लड़कियां हो रही हैं. घर में कमाने वाला एक भी न हो उस घर की हालत कैसी होगी. यह शायद कोई सोच भी नहीं सकता है.
पेंशन के लिए खटखटा चुके हैं हर दरवाजा : हालांकि राहुल के घरवालों के अनुसार कई वर्ष पहले रानीपट्टी के पूर्व मुखिया इंद्रजीत कुमार बिट्टू की पहल से कुछ राशि मिलती थी, लेकिन बाद के वर्षों में कोई राशि नहीं मिल रही है. राहुल के घर वाले राहुल के लिए व्हीलचेयर तथा विकलांगता पेंशन के लिए सभी दरवाजे खटखटा चुकी है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. उसके घर की रोजी रोटी उसकी बहन रेखा कुमारी व थोड़ी सी जमीन के टुकड़े पर उपज होने वाले अनाज से ही चलती है. रेखा सिलाई जानती है. उसी से वह गांव के कुछ कपड़े को सिल कर तथा सुबह शाम कुछ बच्चों को पढ़ा कर घर का भरण पोषण कर रही है, जबकि रेखा खुद भी शादी के लायक है, लेकिन भाई और पिता की लाचारी ने उसे शादी तो दूर घर चलाने को विवश कर दिया है. ऐसी स्थिति में राहुल को पढ़ाया जाये, उसका इलाज किया जाये, घर चलाया जाये या फिर व्हीलचेयर खरीदकर राहुल को दिया जाये.
बिना पहिये की है व्हीलचेयर, हाथों पर उठाकर मां व बहन ले जाती है सेंटर पर
राहुल अपने माता-पिता का एकमात्र बेटा है और उसे दो बहन रेखा कुमारी व मौसम कुमारी है. ऐसी स्थिति में भी राहुल पढ़ाई कर रहा है और हो रहे इंटरमीडिएट परीक्षा में वह परीक्षा भी दे रहा है, लेकिन कुदरत के कहर के आगे वह लाचार है. वह खुद से लिख नहीं सकता है. इसलिए उसके साथ उसकी बहन मौसम कुमारी बैठकर लिखती है. राहुल की परीक्षा जब भी होती है.
वह रानीपट्टी से ऑटो से अपनी मां अनिता देवी व दोनों बहन के साथ परीक्षा देने के लिए आता है, लेकिन राहुल का दर्द की सीमा अभी भी समाप्त नहीं हुई है. राहुल जिस व्हीलचेयर से परीक्षा देने के लिए केंद्र के अंदर जाता है. वह व्हीलचेयर टूटा है. बिना पहिये के व्हीलचेयर को इसी वजह से उसकी मां व बहन हाथों से खींचकर केंद्र के अंदर तक ले जाती है. परिवार की स्थिति इतनी दयनीय है कि राहुल के घर वाले उसे एक व्हीलचेयर भी खरीद कर नहीं दे सकते हैं.
टूटी है ट्राइसाइकिल, मां व बहन के साथ ऑटो से आता है परीक्षा देने विभागीय अधिकारी नहीं दे रहे ध्यान