कुर्लीकोट : बिहार के सीमांचल की धरती किशनगंज जिले से किसी खास प्रखंड या जिले भर की बात मात्र नहीं रह जाती है, बल्कि किशनगंज का नाम जुड़ते ही एक साथ कई सीमा का नाम जुड़ जाता है. पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश का बॉर्डर तो पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल का बॉर्डर मुख्य रूप से शामिल है. इसलिए किशनगंज जिले की लगभग कारोबार सीमा से जुड़ी होती हैं. इसी क्रम में ईंट बिक्री का कारोबार भी इन दिनों सीमा के पार धड़ल्ले से जारी है.
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बंगाल व असम में सप्लाई से जिले में ईंंट की कीमत सातवें आसमान पर
कुर्लीकोट : बिहार के सीमांचल की धरती किशनगंज जिले से किसी खास प्रखंड या जिले भर की बात मात्र नहीं रह जाती है, बल्कि किशनगंज का नाम जुड़ते ही एक साथ कई सीमा का नाम जुड़ जाता है. पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश का बॉर्डर तो पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल का बॉर्डर मुख्य रूप से […]
बिहार की मिट्टी से किशनगंज के ठाकुरगंज, बहादुरगंज, पौआखाली, गलगलिया, कुर्लीकोर्ट, पोठिया, सुखानी, पाठामारी कई अन्य थाना क्षेत्र से ईंट भट्ठों से निर्मित ईंट बिहार की सीमा के पार बंगाल रोजाना जाती है. स्थानीय लोगों को इसका खामियाजा अधिक मूल्य पर ईंट खरीदकर भुगतना पड़ रहा है. यहां की ईंट पश्चिम बंगाल और असम को ऊंची कीमत तक सप्लाई की जाती है. यही कारण है कि आज यहां ईंट की कीमत सातवें आसमान छू रही है.
आंकड़ों की बात करें तो पिछले पांच वर्षों के भीतर ही जिले में ईंट की कीमत कई गुणा बढ़ गयी है़ यही कारण है कि गरीबों के लिए बेहतरीन पक्के घर का बनाना सपना बनकर रह गया है. मनमानी कीमतों पर ईंट बेचने का धंधा इन दिनों चरम सीमा पर है. इस ओर न तो किसी जनप्रतिनिधियों का ध्यान है और न ही प्रशासन का, जो इस ओर ध्यान अग्रसर कर पाये. रातों की चकाचौंध कर देने वाली जगमग रात की रौनक से निर्माण हो रहे ईंट भट्ठे का पता चल जाता है.
कृषि योग्य भूमि को हो रहा बड़ा नुकसान, इलाका तालाब में हो रहा तब्दील
ईंट निर्माण को लेकर मिट्टी की खरीदारी भी चरम सीमा को भी पार चुकी है. पोखर की तरह काटे जा रहे मिट्टी से इलाक़े की जमीन तालाबों में तब्दील होते दिख रही है. मनमाने ढंग से मिट्टी की जेसीबी से कटाई औऱ ईंट भठ्ठे के संचालक द्वारा भूस्वामियों को पैसे की लालच देकर मिट्टी कटाई व भूस्वामी की पैसे की लालच इलाके को तालाब में तब्दील करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है.
इसकी सुधि लेने को कोई स्थानीय जनप्रतिनिधि या ग्रामीण लेने को तैयार नहीं है. चूंकि, स्थानीय होने के कारण कहीं-न-कहीं अधिकांश जनप्रतिनिधियों से भी ताल्लुकात व तार जुड़े होते हैं, जिसका खामियाजा कृषि योग्य उपजाऊ भूमि को भी भुगतना पड़ रहा है. इसके आसपास खेती करना मुश्किल सा हो गया है.
उत्पादित 80 प्रतिशत ईंट जाती है राज्य से बाहर
जिले में संचालित ईंट भट्ठा से निर्मित ईंट की उत्पादन जिले की जरूरत से कई गुणा अधिक होती हैं, जिसे पड़ोसी राज्य को सप्लाई कर दिया जाता हैं, जिससे संचालक को मनमाने कीमत की मोटी कमाई होती है.
राजस्व की हो रही क्षति
बिना किसी टैक्स की सीमा पार रोजाना बिहार की मिट्टी से निर्मित ईंट पड़ोसी राज्य की सीमा में मनमाने दामों पर तो पहुंच रही है. लेकिन, इसका सीधा नुकसान बिहार सरकार को हो रहा है. पर्दे के पीछे कौन अधिकारी या जनप्रतिनिधि या अन्य लाभान्वित हो रहे हैं, जिनके कारण कोई आवाज बुलंद नहीं हो पा रही, ये तो श्रीमान ही बेहतर जानें. किंतु, परिस्थितियों के आगे नतमस्तक प्रशासन बौने साबित हो रहे हैं. बॉर्डर पर चेकिंग के लिए बनाये गये चेक पोस्ट क्या सिर्फ शराब की जांच के लिए ही बनाये गये हैं?
इंदिरा आवास योजना और ओडीएफ हुआ था प्रभावित
आसमान छूती ईंट की कीमतों से सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में इंदिरा आवास योजना और लोहिया स्वच्छता मिशन के तहत शौचालय निर्माण भी मनमाने ईंट की कीमतों का भेंट चढ़ा था. कहीं-कहीं तो ईंट नहीं होने की बात कह कर संचालक स्टॉक कर ईंट बरसात के दिनों में ऑफ सीजन में ऊंची कीमतों पर बेचने और मोटी कमाई का एकमात्र उद्देश्य होता है.
धड़ल्ले से जारी है सीमा से ईंट बाहर भेजने का काम
किशनगंज के बहादुरगंज प्रखंड से ठाकुरगंज प्रखंड के गलगलिया बॉर्डर तक सीमा पार जाने का ईंट का कारोबार अनवरत जारी है. मुख्य सड़क एनएच 327ई के दोनों तरफ सैकड़ों की संख्या में ईंट भट्ठे का संचालन हो रहा है. इसके अलावे जिले के अन्य प्रखंडों में भी आवश्यकता से अधिक ईंट भट्ठे चल रहे हैं.
इनमें कितने वैध या अवैध हैं? कितने नियमानुसार चल रहे हैं या कितने नियमों का उल्लंघन कर चल रहे हैं? यह भी प्रशासन के लिए गंभीर जांच का विषय है. प्रदूषण भी वातावरण और प्रकृति को लेकर काफी अहम मायने रखती है.
जर्जर होकर सड़क हो रहा बदहाल, कोई सुधि लेने वाला नहीं
सड़कों पर ओवरलोड वाहनों के परिचालन से तो पूर्व में ही सड़कों की दुर्दशा जगजाहिर है. इसके बाद मुख्य सड़क एनएच के दोनों किनारे ईंट भट्ठों के समीप वाहनों के उतरने और चढ़ने को लेकर बर्बाद हो चुकी है. क्योंकि, रोजाना कोयला की ट्रक, ईंट भट्ठे की ट्रैक्टर, ट्रक, मिट्टी ढुलाई, इत्यादि सैकड़ों चक्कर लगाते हैं, जिस पर कोई सुधि लेने वाला नहीं है.
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