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कलक्टर साहब ! अब आप ही कुछ कीजिये
लापरवाही. स्वास्थ्यकर्मियों की मनमानी से कराह रहा िवभाग, ट्रेिनंग के नाम पर हो रही खानापूर्ति भ्रष्टाचार व मनमानी से त्रस्त स्वास्थ्य विभाग के हालात इन दिनों ठीक नहीं हैं. ड्यूटी से गायब चिकित्सक व स्वास्थ्यकर्मी, स्वास्थ्य सुविधा के लिये चल रही सरकारी योजनाओं में हेराफेरी, ट्रेनिंग के नाम पर गोलमाल, अवैध उगाही से त्रस्त मरीज, […]
लापरवाही. स्वास्थ्यकर्मियों की मनमानी से कराह रहा िवभाग, ट्रेिनंग के नाम पर हो रही खानापूर्ति
भ्रष्टाचार व मनमानी से त्रस्त स्वास्थ्य विभाग के हालात इन दिनों ठीक नहीं हैं. ड्यूटी से गायब चिकित्सक व स्वास्थ्यकर्मी, स्वास्थ्य सुविधा के लिये चल रही सरकारी योजनाओं में हेराफेरी, ट्रेनिंग के नाम पर गोलमाल, अवैध उगाही से त्रस्त मरीज, स्पष्टीकरण का डंडा, फिर लीपापोती का खेल… ऐसी कई समस्याएं हैं जो स्वास्थ्य विभाग को बीमार बना रही है.
खगड़िया : लाइलाज बीमारी से जूझ रहे स्वास्थ्य विभाग को तुरंत इलाज की जरूरत है. चाहे सरकारी अस्पतालों में इलाज का मामला हो या फिर विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन या स्वास्थ्यकर्मियों को दी जाने वाली ट्रेनिंग. हर काम में मनमानी जारी है. नियम कायदे से बेफिक्र स्वास्थ्यकर्मी की मनमानी घटने की बजाय बढ़ती ही जा रही है. कार्रवाई की गाड़ी स्पष्टीकरण तक जाकर उलझ कर दम तोड़ देती है.
स्पष्टीकरण कहें या दिखावे की कार्रवाई : सिविल सर्जन निर्देश देते हैं तीन दिनों के अंदर स्पष्टीकरण देना है लेकिन समय सीमा बीतने के बाद भी संबंधित स्वास्थ्यकर्मी स्पष्टीकरण का जवाब तक नहीं देते हैं.
घर बैठे स्वास्थ्यकर्मी वेतन उठाते हैं वहीं ड्यूटी में अवैध उगाही से त्रस्त मरीज स्वास्थ्य सेवा में सुविधा की ओर टकटकी लगाने को विवश हैं. पकड़े जाने पर संबंधित व्यक्ति से लिखित लेकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है तो कई मामले में स्पष्टीकरण का जवाब देकर खानापूर्ति की जाती है. किसी मामले में निलंबन की कार्रवाई होने के बाद दूसरे ही दिन स्वास्थ्य विभाग बैकफुट पर पहुंच जाता है और निलंबन तोड़ दिया जाता है.
ऐसे कई मामले में हैं जिसमें सिविल सर्जन द्वारा कार्रवाई की गाड़ी आधे रास्ते में ही जाकर अटकी हुई है. समय सीमा समाप्त होने के बाद भी स्पष्टीकरण व जांच करने का निर्देश ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. ऐसे में स्वास्थ्य सेवा व इसके अधीन चलने वाली सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी रोकने के लिये डीएम के रुख का इंतजार है.हालांकि डीएम ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए सिविल सर्जन को जांच कर रिपोर्ट तलब किया है.
आउटडोर देखें या ट्रेनिंग दें
सदर अस्पताल में चल रहे महत्वपूर्ण माने जाने वाले एसबीए ट्रेनिंग के निरीक्षण के दौरान प्रशिक्षक के गायब रहने सहित दूसरी हेराफेरी उजागर होने के बाद स्वास्थ्य विभाग में भले ही खलबली मची हुई हो लेकिन ट्रेनिंग के नाम पर हो रहे खेल को समझने के लिये कुछ बातों पर गौर करना जरूरी है.
बताया जाता है कि छह एएनएम व छह ए ग्रेड नर्स के दो अलग अलग बैच को इन दिनों प्रसव से जुड़ी बातों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. 21 दिनों तक चलने वाले इस ट्रेनिंग में शामिल स्वास्थ्यकर्मी क्या सीख रही होंगी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि निरीक्षण हुआ तो प्रशिक्षक ही गायब मिले.
इधर, ट्रेनिंग देने वाले चिकित्सक डॉ वाई एस प्रयासी का कहना है कि आउटडोर व ट्रेनिंंग दोनों साथ साथ देखना होता है. आउटडोर खाली हुआ तो चिकित्सक ट्रेनिंग देने चले जाते हैं और जब मरीज की भीड़ जुट जाती है तो चिकित्सक ट्रेनिंग छोड़ कर आउटडोर मंे मरीज देखने चले आते हैं. डॉ प्रयासी ने सवालिया लहजे में कहा कि आखिर आउटडोर देखेंगे या ट्रेनिंग दें. दोनों साथ-साथ चलेगा और दोनों काम करने वाले एक ही चिकित्सक होंगे तो परेशानी होना लाजिमी है.
मोबाइल नहीं उठाते हैं सीएस
ट्रेनिंग में धांधली का मामला तूल पकड़ने के बाद किरकिरी का सामना कर रहे स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अब मोबाइल रिसीव करने से कतराने लगे हैं. शुक्रवार को सिविल सर्जन के सरकारी मोबाइल नंबर 9470003391 पर कई बार रिंग करने पर रिसीव नहीं किया गया. बताया जाता है कि धांधली के गोरखधंधा के खुलासा बाद कार्रवाई से बचने के लिये सिविल सर्जन कार्यालय में दौड़ लगाना शुरू हो गया है.
सिविल सर्जन द्वारा सदर अस्पताल के निरीक्षण के दौरान एसबीए ट्रेनिंग के नाम पर चल रहे गोलमाल का खुलासा होने के बाद जिला स्वास्थ्यकर्मी के एक कर्मी कौशलेंद्र कुमार से भले ही स्पष्टीकरण तलब किया गया हो लेकिन इस कार्रवाई पर सवाल खड़े हो गये हैं.
सवाल उठता है कि जब निरीक्षण के दौरान प्रशिक्षक चिकित्सक गायब थे, रात के वक्त प्रशिक्षुओं के गायब रहने व फर्जी हाजिरी के नाम पर भोजन की राशि में गोलमाल का खुलासा हुआ तो सिर्फ जिला स्वास्थ्य समिति के एक बाबू पर से ही स्पष्टीकरण क्यों किया गया?
गायब प्रशिक्षक व रात में ट्रेनिंग छोड़ चली जाने वाली एएनएम व ए ग्रेड प्रशिक्षु पर क्यों नहीं कोई कार्रवाई की गयी? जबकि लापरवाही तो कहीं ना कहीं तो इनके द्वारा भी बरती गयी है. ऐसे में सवाल उठता है कि यह कार्रवाई सिर्फ दिखावे के लिये की गयी है या फिर स्वास्थ्य सेवा व योजनाओं में सुधार की मंशा है.
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