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नक्सली धरती से निकला वज्ञिान का सितारा

युवा वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार प्रभाकर : दुनिया को परेशान करने वाली 12 बीमारियों का उपाय ढूंढ़ कर मनवाया लोहा फसलों में दाना नहीं आने जैसी बीमारी पर शोध कर दुनिया को चौंकाया प्रभाकर के शोध से फसलों की कई बीमारियाें से मुक्ति मिलने की उम्मीद प्रभाकर के शोध पर अमल हुआ, तो बदल जायेगी […]

युवा वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार प्रभाकर : दुनिया को परेशान करने वाली 12 बीमारियों का उपाय ढूंढ़ कर मनवाया लोहा फसलों में दाना नहीं आने जैसी बीमारी पर शोध कर दुनिया को चौंकाया प्रभाकर के शोध से फसलों की कई बीमारियाें से मुक्ति मिलने की उम्मीद प्रभाकर के शोध पर अमल हुआ,

तो बदल जायेगी कोसी में किसानों की तकदीर काहिरा में दो वर्षों तक शोध करने के बाद अब कोलंबो में तीन नवंबर को देंगे लेक्चर70 देशों के वैज्ञानिकों के बीच व्याख्यान के लिए भारत से प्रभाकर का हुआ चयन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ कलाम भी कोसी के लाल की कर चुके हैं तारीफइंट्रो——खगड़िया का नक्सल प्रभावित इलाका माना जाने वाले रमुनिया गांव के रहने वाले डाॅ अमित कुमार प्रभाकर ने आज विदेशों में भारत का लोहा मनवाया है.

काहिरा (मिस्त्र) में युवा वैज्ञानिक के खिताब से लेकर दिल्ली में गोल्ड मेडल हासिल कर चुके प्रभाकर आज भी नयी-नयी खोज करने में लगे हुए हैं. ———————प्रभाकर की उपलब्धि 2005 : इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट नयी दिल्ली से कीट विज्ञान में पीएचडी 2006 : रिसर्च सेंटर में पूर्व राष्ट्रपति डाॅ कलाम भी शोध पर दिये थे

शाबासी 2007 : देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह ने शोध को सराहा था 2007 : दो वर्षों तक काहिरा में रिसर्च करने के बाद जीता युवा वैज्ञानिक का खिताब2010 : कीट विज्ञान पर शोध के लिए चेन्नई में राज्यपाल द्वारा सम्मानित 2012 : कांग्रेस ऑफ जुलॉजी में गोल्ड मेडल प्रतिनिधि, खगडि़याखगड़िया के नक्सल प्रभावित रमुनिया गांव से निकले डॉ अमित कुमार प्रभाकर आज पूरी दुनिया में जिले का नाम रोशन कर रहे हैं. काहिरा से लेकर कोलंबो तक प्रभाकर की ख्याति की चर्चा है.

कई सम्मान से सम्मानित प्रभाकर को उनकी खोज के लिये विदेशों में भी सम्मानित किया जा चुका है. उनकी इस उपलब्धि पर आज पूरा खगड़िया इठला रहा है. कोसी की कछार से निकले इस लाल की खोज को पूर्व राष्ट्रपति डाॅ कलाम से लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह प्रशंसा कर चुके हैं.

गंभीर बीमारियों का खोजा रामबाण इलाज दुनिया को परेशान करने वाले ब्लड प्रेशर, गठिया, दमा, एनीमिया, बच्चों का अपंग पैदा होना, हार्ट व आंख की बीमारी सहित 12 बीमारियों को रोकने के लिए मोलस्क नामक जीव की खोज कर प्रभाकर ने दुनिया को चौंका दिया था. उनकी इस खोज को दुनिया के 70 देशों के वैज्ञानिकों ने सराहा था. प्रभाकर की इस उपलब्धि की गूंज काहिरा से लेकर कोलंबो तक है. तीन नवंबर को कोलंबो में कई देशों के वैज्ञानिकों बीच प्रभाकर अपने शोध प्रस्तुत करेंगे, ताकि दुनिया को इसका लाभ मिल सके. कोसी में किसानों की बदल सकती है तकदीर फसल में दाना नहीं आने जैसे गंभीर संकट सहित फसलों में होने वाली कई बीमारियों से निजात दिलाने के उपाय इस युवा वैज्ञानिक ने खोज निकाले हैं. डाॅ प्रभाकर बताते हैं

कि लेक्टो कराइजा नामक जीव के कारण फसलों में ऐसा होता है. सही वक्त पर सही उपाय कर इस संकट से मुक्ति मिल सकती है. इससे फसल की पैदावार दो से ढाई गुना बढ़ने का दावा करते हुए प्रभाकर बताते हैं कि गेहूं व धान जैसी फसलों के उत्पादन में काफी बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद है. 29 से 31 अक्तूबर तक लखनऊ के बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय में दुनिया के 50 देशों के वैज्ञानिकों के सम्मेलन में युवा वैज्ञानिक प्रभाकर को बुलाया गया है.

जहां वह इस शोध को रखेंगे. कभी साइकिल ठीक करवाने के पैसे भी नहीं थे पांच किलोमीटर दूर पैदल चल कर हाइस्कूल जलकौड़ा से 1994 में मैट्रिक करने के बाद प्रभाकर को साइकिल मिली थी. वह बताते हैं कि कोसी कॉलेज खगड़िया में पढ़ाई के दौरान ट्यूशन कर अपना खर्च निकालना पड़ता था. हाल के वर्षों तक वहां पक्की सड़क तक नहीं थी. बिजली तो अभी भी नहीं है. इतना ही नहीं तिलकामांझी विश्वविद्यालय भागलपुर से पीजी की पढ़ाई के दौरान कभी साइकिल ठीक करवाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. पर,

उन्होंने हार नहीं मानी और सपनों को पूरा करने का जिद लिये दिल्ली के इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीच्यूट में दाखिला लिया. वहां से मिस्त्र की राजधानी काहिरा में दो वर्षों तक एक विश्वविद्यालय में शोध किया. इसके लिए उन्हें युवा वैज्ञानिक ऑफ द इयर से सम्मानित किया गया था. विज्ञान के सहारे हरित क्रांति का सपनाखेती को काफी करीब से देखने वाले डॉ प्रभाकर किसानों के दर्द से वाकिफ हैं. इसलिए उन्होंने फसलों पर शोध को प्राथमिकता देते हुए 70 तरह के जीव का खोज कर फसलों में 16 प्रकार की बीमारियों से मुक्ति का रास्ता ढूंढ निकाला है. उनका यह शोध प्रतिष्ठित जर्नल पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है.

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