खगड़िया : दही व दूध के लिए प्रचलित धमारा का फरकिया दियारा अब मौत के लिए भी याद किया जायेगा. कोसी व बागमती नदी के तट पर बसे होने के कारण आज तक इस धमारा घाट नाम के गांव का समुचित विकास नहीं हो पाया.
यहां तक अगर पहुंचाना है, तो ट्रेन का सहारा लेना ही होगा. सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे इस क्षेत्र की उर्वरा शक्ति काफी अधिक है. इस क्षेत्र के अधिकांश लोग पशुपालन व दूध का व्यवसाय कर अपनी जिंदगी जीते हैं. कोसी के तट पर बसे होने के कारण यहां खगड़ा घास होती है, जिसे खाकर दुधारू पशु भरपूर मात्र में दूध देती है. इससे यहां के लोगों की जीविका चलती है.
दिलचस्प बात यह है कि यहां का खोआ व पेड़ा का स्वाद तो लगभग सभी नेताओं ने उठाया, लेकिन आज तक यहां के लोगों के लिए कुछ खास नहीं कर पाये. जिसका नतीजा है कि यहां के लोगों को आज तक पैदल चलने के लिए सड़क तक नहीं है. यहां तक की लोगों को कहीं–कहीं पानी को पार कर घर तक जाना पड़ता है. सांसद दिनेश चंद्र यादव ने जब यहां मानसी से कोपड़िया तक संपर्क पथ बनाये जाने की बात की थी, तो यहां के लोगों के चेहरे चहक उठे थे.
लेकिन समय के साथ–साथ वह चमक भी जाती रही.
इसके पूर्व भी कई नेताओं ने उक्त सड़क को लेकर ग्रामीणों को आश्वासन दिया था. लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. अंत में लोग चुनाव का बहिष्कार करने लगे. नेताओं के आने पर पाबंदी लगाने लगे. लेकिन फिर वही आश्वासन का दौर चला. आज भी हालात वैसे के वैसे ही हैं. इसके पूर्व भी रेल हादसे को लेकर धमारा घाट सुर्खियों में आया था.