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बिना पाठ्य पुस्तक के ही पढ़ रहे

सूरत-ए-हाल. जिले के 464272 छात्र-छात्राओं को नहीं मिलीं पुस्तकें चालू शैक्षणिक सत्र यानी 2016-17 प्रारंभ हो चुका है. इस सत्र का एक माह अर्थात अप्रैल समाप्त भी हो चुका है, लेकिन अब तक पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं को पाठ्यपुस्तक नहीं मिली है. जबकि विद्यालय में पठन-पाठन बगैर पुस्तक के ही शुरू हो […]

सूरत-ए-हाल. जिले के 464272 छात्र-छात्राओं को नहीं मिलीं पुस्तकें

चालू शैक्षणिक सत्र यानी 2016-17 प्रारंभ हो चुका है. इस सत्र का एक माह अर्थात अप्रैल समाप्त भी हो चुका है, लेकिन अब तक पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं को पाठ्यपुस्तक नहीं मिली है. जबकि विद्यालय में पठन-पाठन बगैर पुस्तक के ही शुरू हो चुका है.
कटिहार : आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई मुफ्त व अनिवार्य रूप से बच्चों को उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार पर है. आरटीइ के तहत यह जिम्मेदारी सरकार को दी गयी है. वर्तमान शैक्षणिक सत्र अथवा पिछले कुछ वर्षों के शैक्षणिक सत्र पर आरटीइ के प्रावधान के तहत किये गये कई अध्ययन से भी यह बात सामने आयी है कि केंद्र व राज्य सरकार आरटीइ के क्रियान्वयन के प्रति गंभीर नहीं है.
इससे अधिक विंडबना और क्या हो सकती है कि चालू शैक्षणिक सत्र यानी 2016-17 प्रारंभ हो चुका है. इस सत्र का एक माह अर्थात अप्रैल समाप्त भी हो चुका है, लेकिन अब तक पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं को पाठ्यपुस्तक नहीं मिली है. जबकि विद्यालय में पठन-पाठन बगैर पुस्तक के ही शुरू हो चुका है. हालांकि पिछले वर्ष भी बच्चों को पाठ्यपुस्तक मिलने में काफी विलंब हुआ था. पिछले वर्ष तो करीब दो लाख से अधिक बच्चों को पुस्तक मिली भी नहीं थी.
ये बच्चे बगैर पढ़ाई के ही विद्यालय के द्वारा आयोजित परीक्षा में सम्मिलित हुए. चालू शैक्षणिक सत्र 2016-17 के एक माह समाप्त होने के बाद प्रभात खबर ने विद्यालय के अध्ययनरत बच्चों को मिलने वाली पाठ्यपुस्तक पर गहन पड़ताल की तो यह बात सामने आयी कि चार लाख से अधिक बच्चों को अब तक पाठ्यपुस्तक उपलब्ध नहीं हो सका है.
दूसरी व आठवीं के बच्चे पुस्तक से वंचित
जिले में मांग के विरुद्ध प्राप्त पुस्तक सिर्फ पहली, तीसरी, चौथी, पांचवी, छठी व सातवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं के लिए है. यानी अब तक दूसरी व आठवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं के लिए एक भी पुस्तक कटिहार जिले को प्राप्त नहीं हुई है.
दूसरी तरफ 198201 छात्र-छात्राओं के लिए पुस्तक तो प्राप्त हुई है, लेकिन अभी यह पुस्तक प्रखंड संसाधन केंद्र के गोदामों में पड़ी हुई है. हालांकि एपीओ श्री सिंह ने एक सप्ताह के भीतर विद्यालय स्तर पर उपलब्ध पुस्तक को वितरण करने का निर्देश दिया है. उल्लेखनीय है कि शैक्षणिक सत्र प्रारंभ होने के साथ ही विद्यालयों में पठन-पाठन शुरू हो गया है.
पिछले वर्ष भी नहीं मिली थीं पुस्तकें
पिछले कई वर्षों से बच्चों के बुनियादी जरूरत यानी पाठ्यपुस्तक उपलब्ध कराने में राज्य सरकार विफल रह गयी है. शैक्षणिक सत्र 2015-16 में भी करीब 2.13 लाख बच्चों को पुस्तक मिला ही नहीं है. ये बच्चे बगैर पढ़े ही परीक्षा में सम्मिलित हुये तथा अगली कक्षा में प्रवेश करते हुये पढ़ाई जारी रखे हुये है.
यह भी चकित करने वाली बात है कि इसी सत्र में राज्य सरकार ने पहली बार आठवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं के लिए मूल्यांकन परीक्षा आयोजित की. कटिहार जिले में 29 व 30 मार्च 2016 को आयोजित मूल्यांकन परीक्षा में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने बगैर पढ़े ही सम्मिलित हुये.
पुस्तक मामले में सरकार गंभीर नहीं
पाठ्यपुस्तक उपलब्ध कराने को लेकर सरकार गंभीर नहीं दिख रही है. दरअसल बिहार स्टेट टेक्सट बुक निगम के द्वारा राज्यभर के विद्यालयों के लिए मांग के आधार पर पुस्तकों की आपूर्ति की जाती है. स्थानीय विभागी सूत्रों की माने तो जिले में किस कक्षा के लिए कितनी पुस्तक की जरूरत होगी,
इसका पूरा विवरण बिहार शिक्षा परियोजना परिषद को सत्र प्रारंभ होने के महीनों पूर्व भेज दी जाती है, लेकिन विभागीय उदासीनता की वजह से विद्यालय के बच्चों को पाठ्यपुस्तक जुलाई से सितम्बर तक में वितरण हो पाता है. उस पर भी सभी नामांकित छात्र-छात्राओं को पुस्तक नहीं मिलती है. जबकि दूसरी तरफ निजी विद्यालय मोटी रकम लेकर अपने यहां अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को नामांकन के समय ही पाठ्यपुस्तक उपलब्ध करा देते हैं.
आरटीइ का हो रहा उल्लंघन
भले ही शिक्षा अधिकार कानून के लागू होने के छह वर्ष पूरे हो गये हो, लेकिन अब तक आरटीई के क्रियान्वयन के प्रति विभाग उदासीन है. मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा देने संबंधी अवधारणा की धज्जियां सरकार के द्वारा ही उड़ायी जा रही है. छात्र-छात्राओं के लिए पाठ्यपुस्तक अत्यंत ही बुनियादी जरूरत है. पाठ्यपुस्तक के बगैर इन दिनों छात्र-छात्राएं विद्यालय में किस तरह की शिक्षा ग्रहण कर रहे होंगे इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.
जिले के विद्यालयों में बड़े पैमाने पर छात्र-छात्राएं बगैर पाठ्यपुस्तक के भी पढ़ाई कर रहें हैं. जनप्रतिनिधियों के लिए यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन सका है. न तो संसद या विधान मंडल में बच्चों के पुस्तक को लेकर सवाल उठाये जाते हैं और न ही सरकार से ही बच्चों को पुस्तक उपलब्ध कराने के लिए जनप्रतिनिधियों द्वारा वकालत की जाती है. दरअसल जनप्रतिनिधियों की उदासीनता व राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी की वजह से ही बच्चे को बगैर पुस्तक के पढ़ाई करने के लिए विवश होना पड़ रहा है.
शैक्षणिक सत्र का एक माह समाप्त
शैक्षणिक सत्र 2016-17 के प्रारंभ होने से पूर्व ही स्थानीय शिक्षा विभाग ने बिहार शिक्षा परियोजना परिषद पटना को कक्षावार छात्रों की संख्या का उल्लेख करते हुए पाठ्यपुस्तक आपूर्ति करने की मांग की थी. स्थानीय सर्व शिक्षा अभियान कार्यालय के अनुसार 862473 छात्र-छात्राओं के लिए पाठ्यपुस्तक उपलब्ध कराने की मांग परिषद से की गयी है. स्थानीय सहायक परियोजना पदाधिकारी समर विजय सिंह ने बताया कि विभाग द्वारा अब तक 191201 छात्र-छात्राओं के लिए प्रखंड संसाधन केंद्र को पुस्तक उपलब्ध कराया है. यानी 464272 छात्र-छात्राओं के लिए पुस्तक अब तक जिले को प्राप्त नहीं हुआ है, जबकि शैक्षणिक सत्र का एक माह समाप्त हो गया है.
198201 छात्र-छात्राओं के लिए दी गयीं पुस्तकें अभी प्रखंड संसाधन केंद्र के गोदामों में ही पड़ीं
िवभागीय अधिकारी बने लापरवाह, कैसे हो पढ़ाई

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