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बच्चों को देकर जन्म, खींच लायीं धोखेबाज प्रेमियों को अदालत में

कोसी की लड़कियों ने दिखाया सोशल टैबू को तोड़ने का साहस, लड़ रहीं अपने अधिकारों की जंग कटिहार से लौट कर पुष्यमित्र जब हम रागिनी कुमारी(बदला नाम) से मिलने कटिहार जिले के अमदाबाद प्रखंड में स्थित उसके गांव लालबथानी पहुंचते हैं, तो पता चलता है कि वह अपने एक साल के बच्चे को लेकर अपने […]

कोसी की लड़कियों ने दिखाया सोशल टैबू को तोड़ने का साहस, लड़ रहीं अपने अधिकारों की जंग
कटिहार से लौट कर पुष्यमित्र
जब हम रागिनी कुमारी(बदला नाम) से मिलने कटिहार जिले के अमदाबाद प्रखंड में स्थित उसके गांव लालबथानी पहुंचते हैं, तो पता चलता है कि वह अपने एक साल के बच्चे को लेकर अपने वकील से मिलने गयी है. उसके माता-पिता कहते हैं कि जब उसने लड़ाई छेड़ दी है तो अब तो हर हाल में लड़ना ही होगा. रागिनी कुमारी अभी तक नाबालिग है, दो साल पहले जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी तो उसके जीवन में प्रेम एक हादसा बन कर आया.
उसके माता-पिता कहते हैं, स्कूल के ही एक लड़के मनीष मंडल से उसे प्रेम हो गया और शारीरिक संबंध भी बन गये. मगर जब गर्भ ठहर गया तो मनीष आनाकानी करने लगा. वह उसे गर्भपात कराने के टिप्स बताने लगा और दवाएं लाकर देने लगा. मगर रागिनी ने गर्भपात करने से साफ-साफ इनकार कर दिया.
रागिनी के मां-बाप ने उसका साथ दिया और मामला गांव की सामाजिक पंचायत तक पहुंच गया.पंचायत ने फैसला सुनाया कि दोनों की शादी हो जानी चाहिये. मगर मनीष और उसके परिजन इसके लिए तैयार नहीं हुए और उसके बदले धोखे से रागिनी को अपने साथ ले जाकर उसका गर्भपात कराने की कोशिश की. इसके बाद रागिनी ने तय कर लिया कि वह हर हाल में बच्चे को जन्म देगी और अपने बच्चे की मदद से ही अपने धोखेबाज प्रेमी को सजा दिलायेगी. उसकी पढ़ाई छूट गयी है, बच्चे के पालन पोषण का अतिरिक्त भार आ गया है. मगर वह सब कुछ झेलते हुए अपनी लड़ाई लड़ रही है. चाहे कटिहार जिला मुख्यालय स्थिति अदालत जाना हो या वकील से मिलना हो. वह हर काम बिना थके कर रही है.
हो चुका है बच्चों के डीएनए टेस्ट का आदेश
यह सिर्फ एक रागिनी की कहानी नहीं है. पूरे कोसी इलाके में ऐसे दर्जनों मामले हैं, जहां यौन शोषण की शिकार युवतियों ने सोशल टैबू को तोड़ कर अपने बच्चे को जन्म दिया और बच्चों को जज साहब के सामने खड़ा कर दिया है कि उसे और उसके बच्चे को न्याय दिलाइये.
ऐसे ही मामलों से निबटने के लिए 2013 में 33 बच्चों के डीएनए टेस्ट का आदेश भी जारी किया गया था. रोचक बदलाव यह है कि पहले ऐसे मामलों में लड़की को ही परेशान करने और उसे गर्भपात की सलाह देने वाला परिवार और समाज अब उसके साथ खड़ा नजर आ रहा है. महिला अधिकारों के लिए प्रयासरत लोग इसे सकारात्मक बदलाव के तौर पर देख रहे हैं.
टूट रही है सामंतवादी सोच
इन हिम्मती लड़कियों में कोलासी के महादलित टोले की लक्ष्मी(बदला नाम) भी है, जिसने दबंग अगड़ी जाति के अपने प्रेमी गुड्डू सिंह को अदालती कटघरे में खड़ा कर दिया है. उनकी छह साल की बेटी अब स्कूल में पढ़ने लगी है और लक्ष्मी ने स्कूल में पिता के नाम की जगह गुड्डू सिंह का नाम लिखवाया है.
लक्ष्मी बताती है कि हालांकि गुड्डू सिंह अक्सर रात के वक्त उसके घर के सामने से बाइक से गुजरता है और जोर-जोर से चिल्ला कर मां और बेटी दोनों को काट डालने की धमकी देता है. मगर दिन में उसकी हिम्मत नहीं होती इधर झांकने की. उसके परिवार के लोगों ने गुड्डू सिंह की झटपट शादी करा दी है, इसके बावजूद वे निश्चिंत नहीं हैं, क्योंकि अदालती फैसला कभी भी उसे लक्ष्मी की बच्ची को अपनी बेटी मानने पर मजबूर कर सकता है. उसका भरण-पोषण करना पड़ सकता है और तमाम अधिकार देने पड़ सकते हैं.
सोशल टैबू से बाहर आ रही लड़कियां
महिलाओं के अधिकार के लिए आवाज उठाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता शाहिना परवीन कहती हैं कि यह कोई सामान्य परिघटना नहीं है. इसे बड़े बदलाव के तौर पर देखना चाहिये. जिस दौर में महानगरों की लड़कियां शादी से पहले गर्भवती हो जाने की बात को हर वक्त छुपाने की कोशिश करती हैं और प्रेम के असफल होने के बाद ठहरे हुए गर्भ से छुटकारा पाने में ही भलाई समझती हैं, वहां अगर देश के सबसे पिछड़े इलाके की लड़कियां सोशल टैबू को तोड़ कर आगे आ रही हैं तो यह बड़ी बात है.
संभवतः जिस तरह उस इलाके में ट्रैफिकिंग और वेश्यावृत्ति के मामले लगातार आ रहे हैं, वहां की महिलाओं ने समझ लिया है कि अगर इज्जत की फिकर करते रहे तो जीवन नर्क हो जायेगा. वे अब पुरुषों की गलती पर परदा डालने के लिए तैयार नहीं हैं, वे इस परदे को हटा कर समाज को उसका असली चेहरा दिखाने की कोशिश कर रही हैं.
और अपने हक की लड़ाई भी लड़ रही हैं. यह बदलाव कोसी के इलाके में इतना आम हो गया है कि एक बार अमदाबाद की एक लड़की अपने मृत बच्चे को लेकर ही अदालत पहुंच गयी और डीएनए टेस्ट कराने की मांग करने लगी. दरअसल उसके प्रेमी ने उसे धोखे से गर्भपात की दवा खिला दी थी.
फलका प्रखंड के मोरसंडा गांव की एक किशोरी ने महज 13 साल की उम्र में अपने बच्चे को जन्म देने का फैसला कर लिया. अभी वह लड़की और उसका बच्चा दोनों पूर्णिया स्थित चाइल्ड लाइन में रह रहे हैं. इस विरोध के सकारात्मक नतीजे भी सामने आ रहे हैं. बच्चे को जन्म देने और अदालत में मुकदमा करने के बाद एक युवक ने अपनी प्रेमिका से समझौता कर लिया और फिलहाल दोनों की शादी हो गयी है.
ठोस और व्यावहारिक कदम
हालांकि ज्यादातर मामलों में अदालती लड़ाई लड़ने वाली इन लड़कियों का लक्ष्य अपने प्रेमी को शादी के लिए मजबूर करना या अपने बच्चे को वारिस का हक दिलाना ही है. कई मामलों में तो वे गुजारा भत्ता पाने के लिए भी तैयार हो जा रही हैं.
मगर फिर भी यह एक बड़ा बदलाव है. शाहिना कहती हैं, इस तरीके से वे अपने शोषकों को मजबूर कर रही हैं कि वे अपना गुनाह कुबूल करें और उन्हें जायज हक दें. यह उनका अपनी तरह का विरोध है, भले ही बहुत वैचारिक न हो, मगर ठोस और व्यावहारिक है. इससे पहले तो ऐसे मामले घर की चहारदीवारी में ही दफन हो जाते थे.
महिलाओं द्वारा छेड़ा गया सामूहिक युद्ध : शैवाल
अगड़ों-पिछड़ों के बीच सदियों से यौन शोषण की परंपराओं पर लगातार लिखने वाले कथाकर शैवाल इसे महिलाओं का सामूहिक युद्ध बताते हैं. वे कहते हैं कि इस प्रसंग को सुन कर उन्हें अपनी कथा दुर्योधन रामायण याद आ गयी. उसकी कथा भी काफी हद तक ऐसी ही है. शैवाल कहते हैं, यह संभवतः अपनी तरह का महिलाओं द्वारा छेड़ा गया पहला सामूहिक युद्ध है और इसे रेखांकित किया जाना जरूरी है.
यह महिलाओं के बढ़ते आत्मविश्वास और जागरूकता की निशानी है : अंजुम आरा
बिहार राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष अंजुम आरा इस बदलाव को बिहार में महिलाओं के बढ़ते आत्मविश्वास और जागरूकता की निशानी बताती हैं. वे कहती हैं कि आत्मविश्वास के कारण ही वे सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ जाने का साहस कर रही हैं और उनमें इस बात की जागरूकता भी है कि अदालत जाने से उनके बच्चों को भरण-पोषण का हक संतान के सारे अधिकार मिलेंगे. पिछले दस सालों से जो बिहार में महिलाओं को कई तरह से आगे बढ़ाने की कोशिशें बिहार सरकार द्वारा की जाती रही हैं, उन्हीं की वजह से महिलाओं में आत्मविश्वास और जागरूकता का विकास हुआ है.
तो बच्चों को देना पड़ेगा भरण-पोषण और संपत्ति में हक : निभा सिन्हा
अधिवक्ता निभा सिन्हा बताती हैं, अगर किसी बच्चे के बारे में अदालत में यह साबित हो जाता है कि उसका जैविक पिता फलां व्यक्ति है तो उसे सीआरपीसी और दूसरे कानूनों के तहत अपने जैविक पिता से भरण-पोषण और संपत्ति में अधिकार हासिल हो जाता है.
लड़के को अगर सामान्य हो तो 18 साल तक और मंदबुद्धि या दिव्यांग हो तो ताउम्र भरण-पोषण देना पड़ता है. अगर लड़की हो तो वह जब तक अविवाहित रहेगी, उसके जैविक पिता को भरण-पोषण देना पड़ेगा. इन संतानों को उस व्यक्ति की वैध संतान मान लिया जाता है और इस तरह संपत्ति में हक तो स्वतः मिल जाता है.

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