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मिल मजदूरों का छठ रहेगा फीका

मिल मजदूरों का छठ रहेगा फीकादुखद. पुराना जूट मिल बंदी के कारण सैकड़ों कामगार हैं बेकारफोटो नं. 1 कैप्सन – बंद पड़ा पुराना जूट मिल.प्रतिनिधि, कटिहारपहले दुर्गापूजा, दीपावली और अब छठ पर्व भी पुराना जूट मिल कामगारों के लिए फीकी रहेगी. इन कामगारों को जहां एक ओर बकाये राशि का भुगतान नहीं हुआ है. वहीं […]

मिल मजदूरों का छठ रहेगा फीकादुखद. पुराना जूट मिल बंदी के कारण सैकड़ों कामगार हैं बेकारफोटो नं. 1 कैप्सन – बंद पड़ा पुराना जूट मिल.प्रतिनिधि, कटिहारपहले दुर्गापूजा, दीपावली और अब छठ पर्व भी पुराना जूट मिल कामगारों के लिए फीकी रहेगी. इन कामगारों को जहां एक ओर बकाये राशि का भुगतान नहीं हुआ है. वहीं करीब दस माह से मिल बंदी होने के कारण इनके समक्ष रोजी-रोटी की समस्या के साथ ही बेरोजगारी की समस्या भी उत्पन्न हो गयी है. कामगार दोहरी मार झेलने को विवश हैं. इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है. बताते चलें कि सनबायो जूट मैन्यूफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड (पुराना जूट मिल) बंद को लेकर हमेशा विवादों में रहा है. पिछले एक साल की बात करें तो यह मिल दो बार बंद हुआ है. तीन मई 2014 को कामगारों ने बकाये के लिए आंदोलन किया तो मिल प्रबंधन ने मिल बंद कर दिया. इसके बाद छह माह तक कामगार बेरोजगार हो गये. आठ अक्तूबर 2014 को तत्कालीन श्रम संसाधन मंत्री दुलाल चंद्र गोस्वामी की पहल पर मिल को पुन: चालू किया गया, लेकिन सभी कामगारों को कार्य पर नहीं रखा गया. मात्र 100 से 150 कामगारों से कार्य लिया जा रहा था. तीन माह चलने के बाद पुन: जनवरी 2015 में मिल को बंद कर दिया गया, जो अब तक बंद है. इस बार मिल को प्रोडक्शन कम होने का हवाला देकर बंद किया गया है. यहां कई सवाल ऐसे हैं, जो मिल प्रबंधन ही दे सकता है. मसलन, यदि प्रोडक्शन कम हो रहा था, तो क्यों नहीं सभी साढ़े छह सौ कामगारों को कार्य पर नहीं लगाया गया. सिर्फ एक सौ से एक सौ पचाज कामगारों से ही कार्य क्यों लिया जा रहा था. स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस मसले पर क्यों चुप्पी साधे रखा. मामला कोई भी हो लेकिन भुगतना तो आखिर मिल कामगारों को ही पड़ रहा है. मिल कामगारों के हालात को देख कर यही लगता है कि अब इनका भगवान ही मालिक है. -लाखों के मशीन हो रहे हैं बेकारपुराना जूट मिल में लगे लाखों रुपये का मशीन भी बंदी के कारण बेकार हो रहे हैं. जानकारी के अनुसार पता चला है कि मिल चालू रहने पर मशीन की रख-रखाव होते रहता है. वहीं बंद होने पर मशीनों में जंग पड़ जाते हैं. यहां तक कि मिल बंद होने के बाद मिल में रहने वाले पदाधिकारी व कर्मी भी मशीनों की ओर झांकी नहीं मारते हैं. -कहते हैं कामगारकामगार पंचानंद, राजकुमार, लक्ष्मी, मो अख्तर, मो मोजिम, फेकू, सुल्तान, जितेंद्र इत्यादि ने बताया कि बार-बार मिल बंद होने के कारण बेरोजगारी की समस्या झेलने को मजबूर हैं. स्थानीय जनप्रतिनिधि भी हमारी सुधि नहीं लेते हैं.

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