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मट्टिी से नर्मिति दीपों को बनाने में जुटे कारीगर

मिट्टी से निर्मित दीपों को बनाने में जुटे कारीगर फोटो नं. 9,10 कैप्सन-मिट्टी का दीया बनाते कटिहार. मिट्टी के बर्तन व दीया बनाने वाले कुम्हार अपने रोजी रोटी के मामले में अपने पारंपरिक पेशे से निराश एवं भूखों मरने को विवश हैं. मिट्टी का बर्तन बना कर बाजार की जरूरतों को पूरा कर अपना पेट […]

मिट्टी से निर्मित दीपों को बनाने में जुटे कारीगर फोटो नं. 9,10 कैप्सन-मिट्टी का दीया बनाते कटिहार. मिट्टी के बर्तन व दीया बनाने वाले कुम्हार अपने रोजी रोटी के मामले में अपने पारंपरिक पेशे से निराश एवं भूखों मरने को विवश हैं. मिट्टी का बर्तन बना कर बाजार की जरूरतों को पूरा कर अपना पेट पालना इन्हें विरासत में मिला हुआ है. कुम्हार पहले इस पेशे को कुटीर उद्योग के रूप में चला कर अपना तथा अपने परिवार का पेट पालते थे. इस रोजगार से धन अर्जित कर बेटियों की शादी-विवाह, बीमार होने पर इलाज सहित सामाजिक अस्तित्व बनाये रखने में सक्षम होते थे. कालांतर में प्लास्टिक निर्मित सामान एवं एल्यूमीनियम निर्मित बर्तन सहित स्टील एवं लोहे से निर्मित बर्तन सहित स्टील एवं लोहे से निर्मित सामानों ने मिट्टी के बर्तन की जगह ले ली. खासकर प्लास्टिक निर्मित ग्लास आदि के बाजार में आ जाने से इनका रोजगार अब रोटी जुटाने लायक भी नहीं रह रहा है. पटेल चौक निवासी 50 वर्षीय कुम्हार जगरनाथ पंडित एवं 60 वर्षीय झालो देवी बताती है कि विरासत से मिली इस रोजगार के जरिये विभिन्न प्रकार के बर्तन सहित लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति बना कर बाजार में बेच कर अच्छी खासी कमाई कर लेता था, जिससे परिवार का भरण-पोषण हो जाया करता था. लेकिन अब यह रोजगार लाभदायक नहीं रहा है. वहीं सुमन कुमार पंडित एवं शंकर पंडित कहते हैं कि सरकार भी इस रोजगार के प्रति सचेत नहीं है और प्लास्टिक के आइटमों पर रोक नहीं लगाती है, जिसके कारण अब इस पेशे को त्याग कर मेहनत मजदूरी कर अपना तथा परिवार का पेट पालने को विवश हैं.

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