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कीमत ज्यादा होने का हवाला देकर जमीन लेने से किया इन्कार

पदाधिकारियों के आवास के लिए जमीन अधिग्रहण के प्रस्ताव के कारण खरीद-बिक्री पर लगी थी रोक भभुआ नगर : जिला मुख्यालय भभुआ से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर बबुरा गांव के पास डीएम, एसपी सहित वरीय अधिकारियों के आवास के लिए प्रस्तावित जमीन का अधिग्रहण अब नहीं किया जायेगा. जमीन का दर काफी महंगा […]

पदाधिकारियों के आवास के लिए जमीन अधिग्रहण के प्रस्ताव के कारण खरीद-बिक्री पर लगी थी रोक

भभुआ नगर : जिला मुख्यालय भभुआ से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर बबुरा गांव के पास डीएम, एसपी सहित वरीय अधिकारियों के आवास के लिए प्रस्तावित जमीन का अधिग्रहण अब नहीं किया जायेगा. जमीन का दर काफी महंगा होने के कारण जिला प्रशासन ने उक्त जमीन का मुआवजा देने में असमर्थता जताते हुए उक्त जमीन को अधिग्रहित करने का अपना इरादा बदल दिया है. अब उससे सस्ती दर पर प्रशासन दूसरे जगह पर जमीन देखने में जुट गयी है.
लगभग छह वर्ष पहले बबुरा के उत्तर भभुआ-मोहनिया रोड के पश्चिम की जमीन को चिह्नित कर वरीय पदाधिकारियों के आवास के लिए अधिग्रहण का प्रस्ताव बना कर भू-अर्जन पदाधिकारी द्वारा मुख्यालय को भेजा गया था. वरीय अधिकारियों के आवास के लिए उक्त जमीन को प्रशासन द्वारा अधिग्रहित करने की बात जैसे ही लोगों को पता चला, तो उस जमीन की खरीद-बिक्री पर ग्रहण लग गया. जमीन के मालिक जमीन के वास्तविक मूल्य से अधिक मुआवजे की लालच में बेचने से कतराने लगे, तो वहीं खरीदार भी प्रशासन द्वारा उक्त जमीन को अधिग्रहित करने की बात जानने के बाद खरीदने से इन्कार करने लगे. इसके कारण लगभग छह वर्षों तक उस जमीन पर ऊहापोह की स्थिति बनी रही और अचानक छह वर्षों बाद जमीन की कीमत महंगा होने की बात कह अधिग्रहण से इन्कार कर दिये जाने से उस क्षेत्र के जमीन मालिकों के लिए एक बड़ा झटका है.
इसके अलावे उस इलाके में पहले ही मंडलकारा का निर्माण किया जा रहा है. बबुरा सहित आसपास के ग्रामीणों को जब इस बात की खबर मिली थी कि उक्त क्षेत्र में डीएम, एसपी सहित वरीय अधिकारियों का आवास बनाने का प्रस्ताव है, तो लोगों को उस क्षेत्र का तेजी से विकास होने की उम्मीद जगी थी. साथ ही वहां के स्थानीय लोगों का मानना था कि डीएम, एसपी सहित वरीय अधिकारियों का आवास बबुरा के पास बनाये जाने पर बबुरा-परसिया तक जिला मुख्यालय भभुआ में शामिल हो जाता. लेकिन, प्रशासन द्वारा उक्त जमीन को लेने से इन्कार किये जाने के बाद वहां के लोगों के सपनों को एक बड़ा झटका लगा है.
17 मार्च 1991 में रोहतास जिले से स्वतंत्र रूप से अलग हुआ था कैमूर : गौरतलब है कि 17 मार्च 1991 को रोहतास जिले से अलग होकर एक स्वतंत्र जिले के रूप में कैमूर अस्तित्व में आया. 19 अगस्त 1991 से यह विधिवत स्वतंत्र जिले के रूप में कार्यरत हो गया. इस प्रकार 27 वर्ष बीत जाने के बावजूद अब तक दो जिले में आला अधिकारियों को अपना आवास नसीब नहीं हो सका है. जिलाधिकारी से लेकर आरक्षी अधीक्षक तक जिला पर्षद के आवास में रहते हैं. बताया जाता है कि पूर्व में कई बार जब रामगढ़ की मालती गुप्ता चैयरमेन हुआ करती थी, तो पत्र के माध्यम से जिला पर्षद का आवास खाली करने का निवेदन कर चुकी थी.
विभाग में जमीन अधिग्रहण के लिए आ गये थे मुआवजे के रुपये
किसानों को छह वर्ष बीत जाने बाद भी मुआवजा नहीं मिल पाया और एक लंबे अंतराल के बाद जिला प्रशासन अब स्थल बदलने की बात कह रहा है. जबकि, मुआवजे की प्रथम किस्त भुगतान की राशि भी तीन वर्ष से अधिक जिला प्रशासन के खाते की शोभा बढ़ा रही है. वहीं, किसान भी वर्षों से मुआवजे की आस में बैठे हैं. किसानों को अब तक मुआवजा न मिलने से ऊहापोह में है. बताया जाता है कि वर्तमान में जिला प्रशासन द्वारा अधिग्रहित की जानेवाली भूमि पर किसानों का ही कब्जा है. इस पर किसान कृषि कार्य को करते हैं. अधिग्रहित की जाने वाली भूमि का भू-अर्जन पदाधिकारी और अंचलाधिकारी भभुआ द्वारा नोटिफिकेशन भी किया जा चुका है. इतना ही नहीं सूत्रों के अनुसार रजिस्ट्री विभाग में बिक्री पर भी प्रतिबंध है. इसे किसान अपनी आवश्यकता के अनुसार विक्रय नहीं कर सकते हैं.
बोले डीएम
इस संबंध में जिलाधिकारी डॉ नवल किशोर का कहना है कि बबुरा में जो आवासीय भूमि अधिग्रहित के लिए प्रस्तावित थी. फिलहाल में राज्य सरकार द्वारा इतनी महंगी दर में भूमि लेने में असमर्थ है. किसी अन्य जगह भूमि की तलाश की जा रही है. जल्द ही आगे की प्रक्रिया प्रारंभ होगी.

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