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कनकनी के आगे लाचार हुए कामगार

कनकनी के आगे लाचार हुए कामगार सर्दी में दैनिक मजदूरों की मुश्किलें बढ़ींजाड़े के मौसम में हो जाती है पोशिंदों की कमीफोटो 14 जहानाबाद. सर्दी आयी, तो साथ कई परेशानियां भी लायी हैं. बच्चे-बुजुर्ग जहां पारे का मान चढ़ने-उतरने से असहज हो रहे हैं. वहीं, दैनिक कामगारों को पेट चलाना मुश्किल हो गया है. कनकनी […]

कनकनी के आगे लाचार हुए कामगार सर्दी में दैनिक मजदूरों की मुश्किलें बढ़ींजाड़े के मौसम में हो जाती है पोशिंदों की कमीफोटो 14 जहानाबाद. सर्दी आयी, तो साथ कई परेशानियां भी लायी हैं. बच्चे-बुजुर्ग जहां पारे का मान चढ़ने-उतरने से असहज हो रहे हैं. वहीं, दैनिक कामगारों को पेट चलाना मुश्किल हो गया है. कनकनी के आगे लाचार मजदूर नीयत समय से जरा भी चुके, तो उनकी पूरी दिहाड़ी मारी जा रही है. शहर के चौक-चौराहों पर रोजाना गांव-देहातों से बड़ी संख्या में अकुशल श्रमिक दैनिक मजदूरी करने आते हैं. ऐसे में जाड़े के एकाएक बढ़ने से न तो उन्हें नया काम मिल पा रहा है और न ही वे सिरे से पुराने काम निबटा पा रहे हैं. रोज आते हैं सैकड़ों लेबर शहर के स्टेशन इलाके में काको मोड़, अरवल मोड़, हॉस्पिटल मोड़, मलहचक मोड़, सट्टी मोड़, अांबेडकर चौक पर रोज सुबह मेले-सा माहौल रहता है. यहां सात बजे तक सैकड़ों कामगार काम की तलाश में पहुंचते हैं. गांव-देहातों से यहां आनेवाले लेबर प्राय: आठ बजते-बजते काम के नये ठिकाने के लिए बुक कर लिये जाते हैं. कुछ ठेकेदारों से संबद्ध, तो कई मिट्टी, बालू, गिट्टी, ईंट आदि का उठाव करने के लिए भी यहां से दैनिक भुगतान के आधार पर काम पाते हैं. टेहटा, मखदुमपुर, किनारी, कल्पा, धनगांवा, कड़ौना, निजामुद्दीनपुर, कालुपुर, बभना, सिकरिया, मई, हाटी आदि गांवों से आनेवाले मजदूरों की मानें, तो ठंड के चलते उन्हें काम की जुगत में घर से जल्दी निकलने की लाचारी है. परिवार का पेट भरने के लिए सर्दी में बड़ी कष्ट सहनी पड़ती है. धुंध के चलते पोशिंदों की कमी कामगारों की मानें, तो जाड़े के साथ ही उनकी परेशानी भी बढ़ जाती है. ठंड में उन्हें सबसे अधिक मार सर्द मौसम के बदले पोशिंदों की कमी की सहनी पड़ती है. निर्माण कार्य में लगाये जानेवाले अधिकतर श्रमिकों ने बताया कि अभी इस सीजन में काम पकड़ने की होड़ मची है. पोशिंदाें के यहां भले पूरा पैसा मिलता है, लेकिन सब दिन काम की गारंटी नहीं मिलती. ऐसे में ठेकेदारों से लंबे समय तक नत्थी रहने के लिए मोल-भाव कर दो-तीन महीने का एक मुश्त काम पकड़ना उनकी प्राथमिकता है.दिहाड़ी में भी होता है उतार-चढ़ाव कलपा के रोशन, टेहटा के जहांगीर, किनारी के अख्तर, निजामुद्दीनपुर के प्रदीप चौधरी, कालुपुर के सुरेंद्र, हाटी के विजय, मई के गुड्डु व धनगांवा के सुनील पिछले कई सालों से दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते हैं. कोहरे में काम की कमी का जिक्र करते हुए कामगारों ने समेकित तौर पर कहा कि जाड़ा हमलोगों के लिए आफत लेकर आता है. पहले काम पकड़ने और फिर काम निबटा कर जल्द घर लौटने की होड़ रहती है. ऐसे में दिहाड़ी में भी खूब उतार-चढ़ाव होता है. ठेकेदारों के यहां लगातार काम मिलने की लालच में 250 के बदले 200 रुपये में भी काम करने को तैयार हो जाते हैं. सामान्य दिनों मे पोशिंदों से उन्हें 300 रुपये तक पारिश्रमिक मिल जाता है. बदले में औसतन सात घंटे रोज काम करना पड़ता है.

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