जहानाबाद : महाप्रलय! उस पर तबाही का मंजर! चारों ओर लहूलुहान और जीवन-मौत से पल-पल जूझते लोग. उनकी आंखों में अब भी खौफ को खतरनाक दृश्य डूबते-उतरते दिखे. उत्तराखंड में आये भीषण प्राकृतिक आपदा से पार पाकर अपनी देहरी पर सकुशल पहुंचे पांच श्रद्धालु प्रियजनों का साथ पाकर निहाल थे.
बुधवार को अपने गांव में कदम रखते ही ग्रामीणों ने पूरी गरमजोशी से उनका इस्तकबाल किया. भावुकता के इन क्षणों में तमाम लोगों की आंखें नम थीं. देवभूमि से सुरक्षित घर वापसी करनेवाले इस जत्थे में मुंदर प्रसाद, नागेंद्र कुमार, राजेंद्र प्रसाद, देवेंद्र कुमार और अभय कुमार शामिल हैं.
काको पहुंचने के साथ ही वहां जश्न-सा महौल बन गया. बारी-बारी से सभी तीर्थयात्रियों को फूल-माला पहना और मिठाई खिला कर उनकी सलामती पर खूब खुशियां मनायी गयी. सभी श्रद्धालु देहरादून एक्सप्रेस से हरिद्वार से गया पहुंचे थे. जिला प्रशासन की ओर से भी श्रद्धालुओं का खैर मकदम किया गया.
* बड़ी मुश्किल से बची जान
श्रद्धालुओं के जत्थे में शामिल पेशे से अमीन अभय कुमार, उम्र 40 वर्ष काको ने कहा कि बड़ी मुश्किल से जान बची है. यात्रा वृतांत सुनाते हुए उन्होंने प्रभात खबर को जानकारी दी कि उनका समूह चालू माह की 12 तारीख को यहां से चारों धाम की यात्रा पर निकला. वे 14 जून को ऋषिकेश स्थित राम प्रपन्ना धाम जी महाराज के आश्रम पहुंचे.
15 जून को केदारनाथ मंदिर की यात्रा शुरू करते हुए करीब 14 किमी की पैदल चढ़ाई पूरी कर शाम 5:30 बजे उन्होंने दर्शन-पूजन किया. बरसात में भींगने से यहां तीन श्रद्धालुओं की तबीयत बिगड़ी. इसके कारण सभी तीर्थयात्री मंदिर के समीप धर्मशाला में ही रुक गये. 16 जून को सुबह वापसी के दौरान भूस्खलन से रास्ता बंद होने के कारण रामपाड़ा में उन्हें पुलिस द्वारा रोक दिया गया.
पैदल यात्रियों के लिए रास्ता खुलने पर आमलोगों ने साढ़े तीन किमी की दूरी तय की लेकिन जंगलचढी में झरने की शक्ल में बह रहे तेज धार के पानी में जाकर वे फिर फंस गये. यहां एक दिलेर महिला से प्रेरणा लेकर उनलोगों ने पुन: यात्रा आरंभ की लेकिन जत्थे के एक साथी देवेंद्र कुमार यहां समूह से बिछड़ गये. अभय के मुताबिक गौरीकुंड में लगातार दो दिन की बारिश के दौरान वे निजी लॉज में रुके.
जहां मंदाकिनी नदी से आये पानी के तेज बहाव ने कई मकानों को जमींदोज कर दिया. भारत सेवाश्रम संघ के पांच मंजिला मकान को विलीन होने का मंजर अब भी उन्हें सिहरन का अहसास कराता है. इस बीच सोन प्रयाग में आर्मी के जवानों ने सभी तीर्थयात्रियों को रस्सी-बल्ले के सहारे नदी पार कराया. यहां पवनहंस हेलीकाप्टर से आगे जाने की चाहत पूरी नहीं हो सकी. बाद में सीतापुर पहुंच कर थाने को एक साथी के बिछड़ने की सूचना दी गयी. श्रद्धालुओं ने बिछड़े साथी को खोजा.
22 तारीख को देवेंद्र से सीधी बात हुई. 23 जून को सभी तीर्थयात्री हरिद्वार में साथ हो गये. तीर्थयात्रियों ने कहा कि सेना के जवानों की मदद और भगवान की कृपा से ही वे सुरक्षित घर पहुंच सके. यात्रा के दौरान 10 रुपये प्रति पैकेट के हिसाब से खरीदे गए 20 पैकेट बिस्कुट और वर्षा के पानी ने श्रद्धालुओं को जिंदा रहने में मदद की.
* देवभूमि की भीषण प्राकृतिक आपदा से पार पाकर गांव पहुंचा श्रद्धालुओं का जत्था
* प्रियजनों का साथ पाकर निहाल हुए तीर्थयात्री
* सुरक्षित घरवापसी पर जश्न का माहौल
* तबाही के मंजर को अब भी नहीं भूल पा रहे श्रद्धालु
* सकुशल लौटने पर दिखे बेहद भावुक