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झाझा की झोपनी माता करती है भक्तों की मन्नतें पूरी

मंदिर में परिसर स्थित कुंड में स्नान से दूर होता है चर्म रोग झाझा : प्रखंड क्षेत्र के पैरगाहा, लक्ष्मीपुर, बांका जिला के बेलहर सीमा पर स्थित माता झोपनी का मंदिर क्षेत्र में अपना एक विशेष महत्व रखती है. ऐसी मान्यता है कि माता रानी मंदिर में श्रद्धा से मांगी गयी मन्नतें अवश्य पूरा होती […]

मंदिर में परिसर स्थित कुंड में स्नान से दूर होता है चर्म रोग

झाझा : प्रखंड क्षेत्र के पैरगाहा, लक्ष्मीपुर, बांका जिला के बेलहर सीमा पर स्थित माता झोपनी का मंदिर क्षेत्र में अपना एक विशेष महत्व रखती है. ऐसी मान्यता है कि माता रानी मंदिर में श्रद्धा से मांगी गयी मन्नतें अवश्य पूरा होती है. नक्सलियों प्रभावित क्षेत्र में स्थित इस मंदिर में मकर संक्रांति के दिन दिनभर लगने वाले मेला में लाखों की संख्या में लोग जुटकर पूजा अर्चना कर मेला का आनंद उठाते हैं. लाग इस अवसर पर मंदिर के पास स्थित कुंड में स्नान कर भी स्वास्थ्य लाभ लेते हैं. हेतु स्नान करना विज्ञान को भी सोचने पर मजबूर करता है. इस दिन उक्त नदी में स्नान करने पर व्यक्ति के पुराने से पुराने चर्म रोग, दाद, खाज और मुंहासे जैसे रोग दूर हो जाता है.
मेला से सरकारी राजस्व का होता था फायदा: झोंपा दह मेला से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पूर्व मैं इस मेला का सरकारी स्तर पर डाक होता था. जिससे अधिक बोली लगाने वाले को मेला का जिम्मा दिया जाता था. अन्य मेले से बिल्कुल भिन्न इसके आयोजन के लिए सरकारी डाक की राशि निर्धारित की जाती थी और सरकारी राजस्व के रूप में हजारों रूपया की आमदनी होता था. जो बीते कई साल से बंद है. सूत्रों की मानें तो क्षेत्र में नक्सली गतिविधि बढ़ने के बाद इसे लेकर प्रशासन और क्षेत्र के लोग उदासीन हो गये.
मेले का मुख्य आकर्षण है लोहा का सामान : झोपा मेला में अब तो कई तरह की वस्तुओं की बिक्री किया जाता है. लेकिन लोहे की निर्मित विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के लिए विशेष प्रसिद्ध है. इस मेला में आज भी खेती में उपयोग होने वाली सामाग्री का बिक्री काफी होता है. लोग इस मंदिर के इंतजार में रहते हैं. मेला को लेकर व्यवसायियों को भी इंतजाम अच्छा रहता है.
धार्मिक आस्था से जुड़ा है कुंड
ऐसी मान्यता है कि उक्त नदी के दह की खाई असीमित गहराई तक है. जिसमें झोपरनी माता वास करती है. मकर संक्रांति के अवसर पर जमुई जिला सहित आसपास के लोग यहां पहुंचकर कुंड में स्नान कर मां की पूजा-अर्चना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि मां की मंदिर सच्चे दिल से मांगी गयी मन्नत अवश्य पूरा होता है. आस्था इस कदर होता है कि किसी तरह की परेशानी होने पर लोग बेहिचक एक-दूसरे को सहयोग करते हैं. इस अवसर पर एक भव्य मेला का आयोजन भी होता है.
कैसे पहुंचे मेला स्थल तक
मेला स्थल तक जाने के लिए संग्रामपुर , बेलहर, झाझा, गिद्धौर, जमुई और लक्ष्मीपुर से होकर अलग-अलग पक्की सड़कें हैं. कहीं पर सड़क असुरक्षित भी है. नक्सलियों का गढ़ होने के कारण कोई भी रास्ता सुरक्षित नहीं है.

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