भव्य रथ बनाकर भगवान महावीर की तस्वीर को भी यात्रा में शामिल किया गया था
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प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव सिखाता है धर्म, यही अहिंसा है
भव्य रथ बनाकर भगवान महावीर की तस्वीर को भी यात्रा में शामिल किया गया था जैनियों के खिले थे चेहरे जमुई : चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर की अवतरण धरती लछुआड़ के क्षत्रिय कुंड में दर्शन को लेकर श्री नयवर्धन सूरीश्वर जी महाराज के दिशा निर्देश में निकाला गया पद यात्रा जत्था ढोल नगाड़े और गाजे […]
जैनियों के खिले थे चेहरे
जमुई : चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर की अवतरण धरती लछुआड़ के क्षत्रिय कुंड में दर्शन को लेकर श्री नयवर्धन सूरीश्वर जी महाराज के दिशा निर्देश में निकाला गया पद यात्रा जत्था ढोल नगाड़े और गाजे बाजे के साथ कल धधौर में पड़ाव डाला. जिसके बाद आज ढोल-नगाड़े के साथ ही यह क्षत्रिय कुंड पहुंचेगा. बुधवार सुबह खैरा के नारियाना से गाजे बाजे की धुन और ढोलक की थाप के साथ निकले यात्रा में भक्त सराबोर हो रहे थे. वही भव्य रथ बनाकर भगवान महावीर की तस्वीर को भी यात्रा में शामिल किया गया था. आलम यह था कि जहां से भी यह जत्था गुजर रहा था आसपास के लोग बस एक निगाह से यात्रा को ही निहार रहे थे. वही इस दौरान जैन धर्मियों के चेहरे पर खुशी साफ देखी जा सकती थी.
धर्म को जीवन में उतारना सिखाता है जैन धर्म
जैन धर्म गुरुओं की मानें तो इस धरातल पर सत्य और अहिंसा से बड़ा कोई धर्म ही नहीं है. इसके अलावे जहां लोगों की गलतियों को ढूंढ कर उसे सजा देना हम प्राणी मात्र की संकल्पना में सर्वोपरि माना जाता है, वही जैन धर्म हमें यह सिखाता है कि किसी भी गलत व्यक्ति के खिलाफ सजा न देकर दया भाव दिखा कर उसे क्षमा दान देना सबसे बेहतर कृत्य है. साथ ही धर्म को कैसे अपने आम जीवन में उतारा जाए इसकी सबसे बेहतर परिकल्पना भी जैनियों ने ही दिखाई है. देश विदेश से लोग अपने काम से समय निकालकर पदयात्रा और चातुर्मास प्रवास करते हैं. यह अपने आप में काफी अनोखा है.
आज के व्यस्ततम जीवन में जहां हम अपने पड़ोसी को भी नहीं जान पा रहे हैं वहां जैनधर्म के सिद्धान्त कह रहे हैं कि संसार के प्रत्येक प्राणियों में मैत्री भाव रखना ही यथार्थ में अहिंसा है तथा यही क्षमाभाव है. जैनधर्म सूक्ष्म से सूक्ष्म प्राणी के प्रति भी अपने समान व्यवहार करने की बात कहता है. जहां एक ओर हम बात-बात में आपसी मनमुटाव तथा रोष को पनपने का अवसर देते हैं, वहीं जैन धर्म आज भी सत्य और अहिंसा के मार्ग को प्रशस्त करता है. न सिर्फ धर्म गुरु बल्कि जैन अनुयाई भी इस शिक्षा को अपने जीवन की मूल शिक्षा के रुप में इस्तेमाल करते हैं.
सुख-सुविधाओं के त्याग से चेहरे पर दिखता है संतोष
जहां आजकल के पाश्चात्य जीवन शैली में हम लोग अपनी तमाम सुख सुविधाओं के लिए दिन रात एक कर मेहनत करते हैं तथा अपने जीवन में हर सुख सुविधाओं को सम्मिलित करना चाहते हैं. वहीं जैन तीर्थयात्री जो बस भगवान महावीर के दर्शन मात्र को लालायित हैं. अपनी सभी सुख-सुविधाओं को त्याग कर भी उनके चेहरे पर संतोष की भावना देखने को मिलती है. बुधवार को जैन धर्मावलंबियों का काफिला सिकंदरा प्रखंड में प्रवेश कर गया और आज जैन धर्मावलंबी भगवान महावीर के अवतरण स्थल पर जाएंगे. वहीं इसी क्रम में पदयात्रा करने के दौरान आ रही तकलीफों को लेकर जैन धर्मावलंबियों के चेहरे पर शिकन मात्र भी देखने को नहीं मिला. आर्थिक रुप से समृद्ध जैन धर्मी गुजरात के अहमदाबाद, बड़ोदरा सहित मुंबई, अमेरिका, लंदन और यूएई जैसे देशों से इस यात्रा में शामिल होने आए हैं. जहां देखा जाए तो इन सभी धर्मावलंबियों की जीवन शैली में सभी सुख सुविधाओं का वास है, वही पैदल यात्रा करना तथा दिन भर में केवल एक बार भोजन करना और पानी पीने के बावजूद भी इनके चेहरे पर वह संतोष देखा जा सकता है जो संतोष एक माता को अपने बच्चों के चेहरे में देखकर मिलता है. जैन धर्मावलंबियों की माने तो महावीर के अवतरण स्थल की चरण रज को माथे में लगा लेना ही सबसे बड़ा वरदान होता है. और बस यही खुशी है कि इनके चेहरे पर दुख की लकीरें नहीं देखी जा सकती.
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