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…और थम गयी एसपी के काफिले की रफ्तार
जमुई : माहौल त्योहारों का हो और सड़कों पर लोगों की भीड़ ना बढ़े यह होना लाजमी ही नहीं है. त्याेहार में शहर में जाम लगने की बात काफी आम लगती है. लोग जाम में फंसे रहते हैं, गाड़ियां चलने की बजाय रेंगती रहती है तथा हॉर्न की आवाज से शोरगुल होता रहता है. शहरवासी […]
जमुई : माहौल त्योहारों का हो और सड़कों पर लोगों की भीड़ ना बढ़े यह होना लाजमी ही नहीं है. त्याेहार में शहर में जाम लगने की बात काफी आम लगती है.
लोग जाम में फंसे रहते हैं, गाड़ियां चलने की बजाय रेंगती रहती है तथा हॉर्न की आवाज से शोरगुल होता रहता है. शहरवासी इस स्थिति से अवगत हो चुके हैं. परंतु सोचिए जब कोई आलाधिकारी इस जाम की चपेट में फंस जाए और उन्हें मिनटों का सफर घंटों में तय करना पड़े तब माजरा क्या होगा. कुछ ऐसा ही हुआ मंगलवार को जब धनतेरस होने के कारण बाजार में आम दिनों कई अपेक्षा भीड़ दोगुनी से भी अधिक थी. शहर पूरी तरह खचाखच लोगों से भरा पड़ा था. वाहनों की लंबी-लंबी कतारें लगी थी. कुछ लोग जाम और धूप के कारण हांफ रहे थे तो कुछ अपनी झल्लाहट दूसरे वाहन चालक पर निकाल रहे थे.
इतने में अचानक सदर थाना प्रभारी संजय विस्वास पूरे दल-बल के साथ आये और जाम को हटाने की कोशिश में लग गए. उनके साथ सदर थाना के दो और अवर निरीक्षक तथा दर्जनों की संख्या में सैप व बीएमपी के जवान भी वाहनों को व्यवस्थित करने लगे. पुलिस की इतनी सक्रियता देख मन प्रफुल्लित होने ही वाला था कि अचानक नजर पीछे जाम में फंसे पुलिस अधीक्षक जयंत कांत के वाहन पर पड़ी.
उनका वाहन देखते ही माजरा समझते देर नहीं लगी. हालांकि इसके बाद थानाध्यक्ष की कोशिशें रंग लाने लगी और फिर एसपी साहब का वाहन भी रेंगते-रेंगते किसी तरह जाम से निकल सका. परंतु एसपी जयंतकांत का वाहन गुजर जाने के बाद एक बड़ा सवाल पीछे रह गया कि आखिर जब पुलिस विभाग के आलाधिकारी की वाहन जाम में फंस गयी तब जाकर थानाध्यक्ष ने खुद मोर्चा संभाल लिया पर यह स्थिति आम जनमानस के लिये क्यों नहीं पनपती. सवाल बड़ा है जबाब कुछ भी नहीं और इन सब के बीच शहरवासियों की हालत खस्ताहाल हो चला है.
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