कुचायकोट : कुचायकोट को बेस कैंप बनाया गया था. महात्मा गांधी के विचारों से अलग हट कर आजाद हिंद फौज में सभी लोग शामिल हो गये. कुचायकोट में गुरिल्ला दस्ता बना कर जंग की शुरुआत की गयी. फिर अंगरेजों के खिलाफ जो जंग हुई. वह गोरखपुर से लेकर कानपुर तक प्रभावी रही. इनके निशाने पर रेलवे स्टेशन तथा अंगरेजी फौज रहे. इस दौरान इन्हें वर्षों तक भूमिगत रहा पड़ा. हुआ यह कि अभी मैट्रिक की परीक्षा समाप्त हुई थी,
उसी समय पश्चिम चंपारण के कालीबाग मंदिर में महात्मा गांधी की बैठक चल रही थी. बैठक में कुचायकोट प्रखंड के आमवा विजयीपुर के निवासी अमीर हसन शामिल थे. महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर आगे की पढ़ाई छोड़ कर अमीर हसन ने अंगरेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. तब ये महज 17 वर्ष के थे. उन्होंने कुचायकोेट स्थित अपने घर बैठ कर आंदोलन की रणनीति तैयार की. करमैनी के निवासी महाराज राय तब नमक सत्याग्रह से जुड़े थे.
1938 में पहली बार कुचायकोट से अंगरेजों के खिलाफ गुरिल्ला दस्ते ने इनके नेतृत्व में जग शुरू कर दी. थाने को आग के हवाले करने के बाद सीवान के पचरुखी में बरौली के भूलन राय के साथ मिल कर रेलवे को तहस-नहस कर डाला. अंगरेजों की फौज को भागने पर विवश कर दिया. बाद में अंगरेज अधिकारी ने इन सभी को गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल की. अमीर हसन महाराज राय के साथ छपरा जेल में डेढ़ वर्ष तक रहे. इनकी पत्नी नसीर फतमा ने अपने मायके बेतिया से आ कर इन लोगों की जमानत करायी. जेल से निकलने के बाद 1942 में अंगरेजों के खिलाफ मुहिम तेज कर दी.
जीवन में तमाम यातनाएं सहने के बाद देश को आजाद कराने में सफल रहे. अमीर हसन फिर से महात्मा गांधी से मिले और कांग्रेस के लिए महात्मा गांधी की विचार धारा से जुड़ कर काम करने लगे. इनका निधन 23 जुलाई, 1995 को हुआ. निधन के बाद इनके पुत्र परवेज आलम अपने पिता के सपनों के अनुरूप आज भी कार्य में लगे हुए हैं.