गोपालगंज . रात के दस बजे हैं. कुछ लोग सड़कों पर टहल रहे हैं, तो कुछ लोग सपरिवार फील्ड में लेटे हुए हैं. अधिकतर घरों में सन्नाटा है. शहर से गांव तक यह नजारा कायम है. न दौलत, न घर की परवाह बस सबको है जान बचाने की परवाह. न मजहब की दीवार न धर्म और न जातीय बंधन. जहां खाली जगह मिली, वहीं डेरा जमा लिया. हैरत तो यह है कि जिस जमीन और मकान के लिए लोग मरने -मारने को उतारू हो जाते हैं, वही कुदरत के कहर की आहट सुन त्याग कर भाग रहे हैं. न तो चोरी का किसी को भय है और न ही कब्जा करने का.
कुदरत के कहर से सिर्फ जान की परवाह
गोपालगंज . रात के दस बजे हैं. कुछ लोग सड़कों पर टहल रहे हैं, तो कुछ लोग सपरिवार फील्ड में लेटे हुए हैं. अधिकतर घरों में सन्नाटा है. शहर से गांव तक यह नजारा कायम है. न दौलत, न घर की परवाह बस सबको है जान बचाने की परवाह. न मजहब की दीवार न धर्म […]
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