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Independence Day 2022 : डोमन प्रसाद ने 12 वर्ष की उम्र में ही ब्रिटिश हुकूमत का किया था विरोध

जेल से रिहा होने के बाद स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद पढ़ाई के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी देश की आजादी मिलने तक संघर्ष करते रहे. 96 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद ने वर्ष 2012 में शहर के बैरागी मुहल्ला स्थित अपने निजी घर में अंतिम सांस ली.

देश की आजादी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, खुदीराम बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे अन्य वीर शहीदों की कुर्बानी को देश जिस तरह से आज उन्हें याद करता है, इसी तरह मोक्ष की धरती गयाजी के रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद की देश के लिए दी गयी कुर्बानी को शहर आज भी नहीं भूल सका है. गया शहर के गोल बगीचा मुहल्ले के रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद को बचपन से बंदिशों से नफरत थी.

घर में भी स्वतंत्र रूप उन्हें रहना पसंद था. शहर के मुरारपुर मुहल्ला स्थित राजकीय मध्य विद्यालय मुरारपुर में आठवीं कक्षा में पढ़ने के दौरान ही उन्होंने पहली बार उस रास्ते गुजर रहे ब्रिटिश शासन के काफिले पर पथराव कर आजादी की लड़ाई की शुरुआत की थी. स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद का यह जुनून धीरे-धीरे सर चढ़ कर बोलने लगा. जिस रास्ते अंग्रेज पुलिस के काफिले गुजरते, मौका देख उस पर हमला करना इनकी नियति बन गयी थी.

स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद का जन्म वर्ष 1917 में एक साधारण परिवार में हुआ था. वर्ष 1930 में जब वे आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे, तभी इन्होंने देश की आजादी में अपना योगदान देने का मन बना लिया था. इसी वर्ष पहली बार उन्होंने शहर के बीचो-बीच मुरारपुर रोड से ब्रिटिश हुकूमत की गुजर रही फौज पर पथराव कर देश की आजादी का बिगुल फूंक दिया. इसी बीच वे ब्रिटिश हुकूमत की गिरफ्त में आ गये. स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद की यहीं से जेल यात्रा की शुरुआत हुई थी. पहली बार वे करीब एक वर्ष तक गया स्थित केंद्रीय कारा में बंदी रहे.

स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद के परिवार के सदस्य बताते हैं कि देशभक्ति का जुनून इन पर यहीं से सवार हुआ था. उस दौरान शहर में देश की आजादी के लिए आयोजित होने वाले सभी तरह के आंदोलन में इनकी भागीदारी बढ़-चढ़ कर होती रही थी. शहर के अलावा आंदोलनकारियों के साथ पटना, बक्सर, भागलपुर सहित बिहार के कई अन्य जगहों पर भी इनका आना-जाना होता रहा था. स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद दूसरी बार भागलपुर जेल में बंदी बनाये गये थे.

जेल से रिहा होने के बाद स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद पढ़ाई के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी देश की आजादी मिलने तक संघर्ष करते रहे. 96 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद ने वर्ष 2012 में शहर के बैरागी मुहल्ला स्थित अपने निजी घर में अंतिम सांस ली.

देश की आजादी के बाद कुव्यवस्था के खिलाफ जारी रखा संघर्ष

देश को आजादी मिलने के बाद भी स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद का गलत के खिलाफ विरोध करने का जुनून रुका नहीं. कुव्यवस्था के खिलाफ इनका संघर्ष जारी रहा. इसी कड़ी में इन्होंने जिले के सभी स्वतंत्र सेनानियों को एकजुट कर गया जिला स्वतंत्रता सेनानी संगठन में समाहित कर जीवन के अंतिम सांस तक संघर्ष करते रहे. इन्होंने वर्ष 2001 में ‘एक झलक मुक्ति संघर्ष का’ पुस्तक भी लिखी. इस पुस्तक में इन्होंने आजादी से पहले व आजादी के बाद की व्यवस्थाओं से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया. देश की आजादी में योगदान के लिए वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन्हें ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया था.

पिता की धरोहर को बेटे रख रहे सुरक्षित

स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद तीन बेटे व चार बेटियों के पिता थे. बड़े बेटे राजकुमार प्रसाद ने बताया कि इनका पूरा परिवार स्वतंत्रता सेनानी डोमन प्रसाद की सभी अमूल्य धरोहरों को सुरक्षित रखे हुए हैं. इन धरोहरों को देखने मात्र से पूरे परिवार को एक नयी ऊर्जा की अनुभूति होती है.

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