श्रीलंकाई कलाकारों ने नृत्य से बांधा समां फोटो – बोधगया 05 – महाबोधि मंदिर में बोधिवृक्ष के नीचे प्रार्थना करते बौद्ध भिक्षु व श्रद्धालु.फोटो – बोधगया 06, 07 – शोभायात्रा में नृत्य करते श्रीलंका के कलाकार.श्रीलंका बौद्ध मठ में तीन दिवसीय समारोह शुरू, निकली शोभायात्रा आज से शुरू होगा महापरित्राण पाठ, कठिन चीवरदान समारोह कल श्रीलंकाई श्रद्धालुओं के सहयोग से बुद्ध मूर्ति पर चढ़ायी गयी सोने की लेपसंवाददाता, बोधगयामहाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया (श्रीलंका बौद्ध मठ) में शुक्रवार की शाम से तीन दिवसीय समारोह शुरू हुआ. शुक्रवार की शाम बौद्ध भिक्षुओं व श्रीलंका के श्रद्धालुओं ने श्रीलंका मठ से महाबोधि मंदिर तक शोभायात्रा निकाली व बोधिवृक्ष के नीचे पूजा-अर्चना की. इसके बाद श्रीलंका बौद्ध मठ के भिक्षु प्रभारी वेन के मेदंकर थेरो के नेतृत्व में विश्वशांति की प्रार्थना भी की गयी. सत् बुद्ध वंदना के नाम से आयोजित शोभायात्रा में शामिल बौद्ध श्रद्धालुओं के दान के रुपये से महाबोधि मंदिर के गर्भगृह में स्थित बुद्ध मूर्ति पर सोने की लेप चढ़ायी गयी व चीवर भी अर्पित किया गया. श्रीलंका बौद्ध मठ के भिक्षु प्रभारी वेन के मेदंकर थेरो ने बताया कि शनिवार की सुबह महाबोधि मंदिर में बुद्ध को खीर अर्पित करने के बाद शाम चार बजे 80 फुट बुद्ध मूर्ति से महाबोधि मंदिर तक कठिन पूजा प्रोसेशन निकाला जायेगा. इसके बाद रात आठ बजे से महापरित्राण पाठ शुरू होगा. रात भर चलनेवाले इस पाठ के बाद रविवार की दोपहर कठिन चीवरदान समारोह का आयोजन होगा. इससे पहले श्रीलंका के मुख्य भिक्षु वेन धम्माज्योति थेरो द्वारा श्रद्धालुओं को धम्मोपदेश दिया जायेगा.बुद्ध ने शुरू कराया था महापरित्राण पाठ श्रीलंका बौद्ध मठ में शनिवार की शाम से शुरू होने जा रहा महापरित्राण पाठ के संदर्भ में बताया जाता है कि इस पाठ की शुरुआत स्वयं बुद्ध ने कराया था. पाठ को सुनने से श्रद्धालुओं को रोग, भय, अकाल मृत्यु व सुखाड़ का सामना नहीं करना पड़ता है. महापरित्राण पाठ के दौरान भिक्षुओं द्वारा एक मंडप के चारों ओर बैठ कर मंत्रोच्चार किया जाता है. मंडप में शुद्ध जल व पवित्र धागा रखा होता है. पाठ के समापन के बाद शुद्ध जल व पवित्र धागे को श्रद्धालुओं में बांटा जाता है. इस पाठ करने के दौरान मंडप के आसपास बौद्ध भिक्षुओं के अलावा श्रद्धालु भी मौजूद रहते हैं. महापरित्राण पाठ के बारे में कहा जाता है कि एक समय वैशाली में भीषण अकाल पड़ा था. लोग अज्ञात रोग से मरने लगे थे. इसी दौरान बुद्ध का वैशाली में आगमन हुआ. वे लोगों की समस्याओं से अवगत हुए. इसके बाद बुद्ध ने अपने भिक्षुओं के सहयोग से महापरित्राण पाठ कराया. पाठ स्थल पर रखे जल व धागे को वैशाली के लोगों में बांट दिया गया. इसके बाद लोग रोग से निदान पाते हुए अकाल से भी मुक्ति पा गये. तब से थेरोवाद परंपरा में महापरित्राण पाठ का बड़ा महत्व है.
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श्रीलंकाई कलाकारों ने नृत्य से बांधा समां
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