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दिखावा साबित हो रही करोड़ों की लैब

बोधगया: मगध विश्वविद्यालय (एमयू) के रसायन विज्ञान विभाग में करोड़ों रुपये की लागत से प्रयोगशाला में उपकरण उपलब्ध कराये गये हैं. स्नातकोत्तर के छात्र-छात्राओं को सप्ताह में पांच दिन प्रायोगिक क्लास कराने का भी दावा किया जा रहा है. लेकिन, हकीकत है कि विभाग में लैब टेक्नीशियन का अभाव है. कभी-कभार ही शिक्षकों के माध्यम […]

बोधगया: मगध विश्वविद्यालय (एमयू) के रसायन विज्ञान विभाग में करोड़ों रुपये की लागत से प्रयोगशाला में उपकरण उपलब्ध कराये गये हैं. स्नातकोत्तर के छात्र-छात्राओं को सप्ताह में पांच दिन प्रायोगिक क्लास कराने का भी दावा किया जा रहा है. लेकिन, हकीकत है कि विभाग में लैब टेक्नीशियन का अभाव है. कभी-कभार ही शिक्षकों के माध्यम से प्रैक्टिकल कराया जाता है. प्रायोगिक कक्षाओं में केमिकल के उपयोग होने के बाद उसकी खरीदारी करने के लिए रेकरिंग खर्च के लिए रुपये का भी अभाव है.

विभाग में वर्तमान में आठ शिक्षक हैं, जो थ्योरी क्लास लेने के बाद समय मिलने पर प्रायोगिक क्लास कराने का भी दावा कर रहे हैं. पर, बगैर लैब टेक्नीशियन के प्रैक्टिकल की कक्षाएं किस तरह होती होंगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. अब जबकि, नये सत्र में पीजी का क्लास शुरू हो चुका है और छात्र-छात्राओं को थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल की भी आवश्यकता पड़ेगी. ऐसे में विभाग के शिक्षकों का कहना है कि जैसे-तैसे प्रैक्टिकल का क्लास करायी जायेगी. शिक्षकों ने यह भी कहा कि रसायन विज्ञान में प्रैक्टिकल के दौरान उपयोग होनेवाले केमिकल बरबाद हो जाते हैं. उनकी खरीद के लिए भी एमयू प्रशासन द्वारा अतिरिक्त रुपये आवंटित नहीं किये जाते हैं. विभाग में इलेक्ट्रिशियन भी नहीं है, जो प्रयोग के वक्त किसी तरह की समस्या होने पर बिजली की आपूर्ति बहाल करने में मदद कर सके.

शिक्षकों को बाहर भेज कर दी जायेगी ट्रेनिंग
विभागाध्यक्ष प्रो सिंह ने बताया कि प्रयोगशाला में मौजूद उपकरणों को ऑपरेट करने के लिए विभाग के युवा शिक्षकों को बीएचयू, दिल्ली विश्वविद्यालय व अन्य विश्वविद्यालयों में भेजा जायेगा व ट्रेनिंग दिलायी जायेगी. इससे उपलब्ध उपकरणों के माध्यम से छात्र-छात्राओं को प्रयोग करने में सुविधा होगी व थ्योरी के साथ ही स्टूडेंट्स प्रैक्टिकल भी कर पायेंगे. उल्लेखनीय है कि पीजी के चार सेमेस्टरों में 200 स्टूडेंट्स पढ़ाई करते हैं. इसके साथ ही शोध करनेवाले छात्र-छात्राओं को भी प्रैक्टिकल की जरूरत महसूस होती है, पर संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद टेक्नीशियन नहीं होने के कारण विभाग का प्रयोगशाला सिर्फ दिखावे का साबित हो रहा है.

कभी बीएचयू तक को पड़ती थी जरूरत
रसायन विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो अरुण कुमार सिंह ने बताया कि दशक पहले यहां मौजूद ग्लास ब्लोअर (कांच गलाने वाली मशीन) के माध्यम से कांच को गला कर विभिन्न उपकरण (बीकर, परखनली, जार आदि)बनाये जाते थे. बीएचयू, पटना विश्वविद्यालय व अन्य संस्थानों से यहां आॅर्डर आते थे और यहां से उन्हें उपकरण सप्लाइ की जाती थी. लैब टेक्नीशियन होने के कारण छात्र-छात्राएं भी हर दिन प्रयोग करते थे और नयी-नयी खोज के प्रति उत्सुक रहते थे. लेकिन, अब शिक्षकों की कमी के साथ-साथ विभाग में एक भी लैब टेक्नीशियन नहीं है.

पहले से नियुक्त लैब टेक्नीशियन सेवानिवृत्त हो चुके हैं. उन्होंने बताया कि विभाग के शिक्षक प्रो यूएन वर्मा व अन्य के सहारे प्रायोगिक क्लास कराया जाता है. विभाग के पास करोड़ों रुपये के उपकरण मौजूद हैं. उसे ऑपरेट करनेवाला कोई नहीं हैं. उन्होंने बताया कि विभाग के प्रयोगशाला में आइआर स्पेक्ट्रोस्कोपी, यूवी स्पेक्ट्रोस्कोपी, एटोमिक एवजोरवेसिक स्पेक्ट्रोस्कोपी, टीजीए, एफटीआइआर व अन्य कीमती व उपयोगी उपकरण मौजूद हैं.

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