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बाराचट्टी : कई गांवों में पहली बार पड़ेंगे वोट
बाराचट्टी (गया) : सभी नक्सलग्रस्त इलाकों में मतदान के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बल की तैनाती से गया जिले के बाराचट्टी के सुदूर गांवों के लोगों को शांतिपूर्ण वोट की उम्मीद बंधी हैं. उन्हें उम्मीद है कि इस बार वर्षो बाद मतदान का अवसर मिल सकता है. यहां के गांवों में सैकड़ों ऐसे मतदाता हैं, जिन्होंने […]
बाराचट्टी (गया) : सभी नक्सलग्रस्त इलाकों में मतदान के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बल की तैनाती से गया जिले के बाराचट्टी के सुदूर गांवों के लोगों को शांतिपूर्ण वोट की उम्मीद बंधी हैं. उन्हें उम्मीद है कि इस बार वर्षो बाद मतदान का अवसर मिल सकता है. यहां के गांवों में सैकड़ों ऐसे मतदाता हैं, जिन्होंने इवीएम के बारे में केवल लोगों से सुना है या अखबार-टीवी में पढञ-देखा है.वे पहली बार इवीएम की बटन पर अपनी अंगुली आजमायेंगे.
दरअसल, बाराचट्टी के एक बड़े भूभाग पर नक्सली चहलकदमी करते रहे हैं. उनका काफी दबदबा होने के चलते स्थानीय लोग उनके फरमान के हिसाब से ही चलते रहे हैं. जब कभी यहां चुनाव होता है, तो नक्सली मतदान बहिष्कार के अपने फरमान पर सख्ती से अमल करते हैं.
अपने फरमान को प्रभावी तरीके से कार्यरूप देने के लिए ये कई बार हिंसक वारदातों को भी अंजाम देते हैं, ताकि आतंकित स्थानीय गांववाले नक्सली निर्देश का उल्लंघन करने की सोच भी नहीं सकें. मतदान की प्रक्रिया को नक्सलियों के असर से मुक्त रखने के लिए
प्रशासनिक तैयारी ऐसी नहीं होती थी कि लोग खुद को सुरक्षित महसूस करने के साथ ही सहूलियत के साथ मतदान कर सकें. मसलन, अतीत में प्रशासन नक्सली प्रभाव वाले इलाकों के लोगों के लिए कोसों दूर सरकारी ठौर-ठिकानों पर बूथ बनाते रहा है.नक्सलियों के डर से भलुआ पंचायत के पिपराही, बड़की चांपी, छोटकी चांपी व सिसियातरी के बूथों को जीटी रोड पर भलुआ में स्थानांतरित कर दिया जाता था. पतलुका के धनगांई, पुरनी धनगांई व तिलेटांड़ आदि गांवों में बने बूथों को भी पड़रिया ले जाया जाता था.
बुमेर के कदल व बरसुंडी व अन्य गांवों के लोगों को सेवई व बीघी पहुंच कर वोट देने को कहा जाता था. मतदाता लंबी दूरी चल कर मतदान करने के लिए कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं होते थे. इससे एक तरफ जहां वैध वोटर वोट नहीं डालते थे, वहीं अवैध तरीके वोटिंग प्रक्रिया में धांधली करनेवालों को दूर-दराज के बूथों पर अवसर मिल जाता था.
तेतरिया के प्रेमन तूरी कहते हैं, ‘पहले इक्का-दुक्का साहसी नौजवान वोट डालते थे, पर महिलाओं व बूढ़े-बुजुर्गो के लिए वोट डालना लगभग असंभव हुआ करता था. लंबी दूर तय कर वोट देने जाना जोखिम भरा काम था. ’
हमारे गांव में ऐसे कई वोटर हैं, जो पहले भी वोट दे तो सकते थे, पर दिये नहीं. वे इस चुनाव में पहली बार बाराचट्टी का विधायक चुनने के लिए अपने वोट डाल सकेंगे.
– रविशंकर प्रसाद, धमना
इस बार चुनाव में
सीपीएमएफ की तैनाती से भरोसा बढ़ा है.बाराचट्टी के बुमेर, पतलुका व झाझ जैसे गांवों में वर्षो से मताधिकार से वंचित मतदाताओं में काफी उत्सुकता है.
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