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‘मन को विशुद्ध रखना ही तीर्थ व धर्म’

गया: मनुष्य में जो आसक्ति है वह बाधक और अनासक्ति साधक होता है. प्रवृत्ति की अपेक्षा निवृत्ति मार्ग अपनाने पर प्रभु की प्राप्ति होती है. प्रत्येक मनुष्य को मन को विशुद्ध कर निवृत्ति मार्ग को अपनाना चाहिए. क्योंकि मन को विशुद्ध रखना ही तीर्थ और धर्म है. उक्त बातें काली बाड़ी मंदिर प्रांगण में शिव […]

गया: मनुष्य में जो आसक्ति है वह बाधक और अनासक्ति साधक होता है. प्रवृत्ति की अपेक्षा निवृत्ति मार्ग अपनाने पर प्रभु की प्राप्ति होती है. प्रत्येक मनुष्य को मन को विशुद्ध कर निवृत्ति मार्ग को अपनाना चाहिए. क्योंकि मन को विशुद्ध रखना ही तीर्थ और धर्म है. उक्त बातें काली बाड़ी मंदिर प्रांगण में शिव पुराण कथा प्रवचन करते हुए डॉ स्वामी केशवानंद सरस्वती ने कही. उन्होंने बताया कि प्रवृत्ति की अपेक्षा निवृत्ति मार्ग को अपनाने पर प्रभु की प्राप्ति होती है. उन्होंने बताया कि भोग दाद-खाज व खुजली की तरह कष्ट देता रहता है. सती स्त्री जिस तीर्थ में स्नान करती है वह तीर्थ धन्य हो जाता है.

पूजा व माला जपने वाली कुलटा स्त्री की अपेक्षा सती नारी प्रभु को पसंद है. उन्होंने बताया कि मन को विशुद्ध रखना ही तीर्थ और धर्म है. अत: प्रत्येक मनुष्य को मन को विशुद्ध कर निवृत्ति मार्ग को अपनाना चाहिए. राजा दक्ष के दोनों पुत्रों हरिदश्व व सवलाक्ष ने निवृत्ति मार्ग को अपना लिया.

उन्होंने बताया कि सत, रज व तम रूपी प्रवृत्ति से बचने पर ही प्रभु की प्राप्ति और मुक्ति मिलती है. स्वस्ति वाचन श्रोताओं का उद्बोधन डॉ गोपाल कृष्ण झा ने किया. इस अवसर पर विकास कुमार वर्णवाल, इंदू देवी, रवि चक्रवर्ती, शिव वचन सिंह, अजय बनर्जी, रमेश पाठक, मुनिराम दूबे, सुरेश पांडेय, रमेश मानव, ललिता चक्रवर्ती व अन्य मौजूद थे.

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