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महीने में 7.98 हजार टन मछली खा जाते हैं गया जिले के लाेग

गया : जिले की आबादी फिलहाल करीब 45 लाख हाे गयी है. इनमें मांसाहारियाें व शाकाहारियाें की संख्या शामिल है. जब हम मांसाहार की बात करते हैं ताे इसमें मांस, मछली व अंडा शामिल हाेते हैं. जहां तक बात मछली की है, ताे जिला मत्स्यपालन विभाग की रिपाेर्ट के आधार पर अप्रैल 2017 से मार्च […]

गया : जिले की आबादी फिलहाल करीब 45 लाख हाे गयी है. इनमें मांसाहारियाें व शाकाहारियाें की संख्या शामिल है. जब हम मांसाहार की बात करते हैं ताे इसमें मांस, मछली व अंडा शामिल हाेते हैं. जहां तक बात मछली की है, ताे जिला मत्स्यपालन विभाग की रिपाेर्ट के आधार पर अप्रैल 2017 से मार्च 2018 तक जिले में 9.57 हजार मीटरिक टन (95 लाख 70 हजार किलाेग्राम) मछली की खपत हुई.
यानी जिले के लाेग हर माह लगभग 7.98 हजार टन (सात लाख 97 हजार पांच साै किलाेग्राम) मछली गटक जाते हैं. इनमें 8.07 हजार मीटरिक टन मछली गया में उत्पादित की गयी जबकि 1.5 हजार मीटरिक टन दूसरे प्रदेश (आंध्र प्रदेश) से मछली का आयात किया गया.
मत्स्यपालकाें में माेहम्मद शायकउद्दीन ने बताया कि गया में मुख्य रूप से कतला, राेहू, मृगल (नैनी) व कॉमन कॉर्प (लारी) प्रजाति की मछली का पालन व उत्पादन हाेता है. यहां बाेआरी मछली भी उत्पादित हाेती है जिसका निर्यात गया के नजदीकी जिलाें में भी किया जाता है. जिला मत्स्यपालन पदाधिकारी उपेंद्र प्रसाद ने बताया कि पिछले वित्त में जिले का 8.19 हजार मीटरिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था जिसके विपरीत 8.07 हजार मीटरिक टन मछली का उत्पादन हुआ था. इस जिले में सरकारी जलकर जाे मत्स्यपालन विभाग से निबंधित हैं, उनकी संख्या 1057 है. इसमें गया शहर के लगभग दाे दर्जन तालाब समेत सरकारी क्वार्टराें व स्कूल कैंपस आदि के तालाब बंदाेबस्त में शामिल नहीं हैं.
हॉट केक है मछली का व्यवसाय : जलकर कहने का तात्पर्य सिर्फ तालाब ही नहीं बल्कि आहर, पाेखर भी हैं. इनमें मत्स्यपालन विभाग ने 660 जलकराें का बंदाेबस्त किया था. इन बंदाेबस्त जलकराें से 8.6 लाख रुपये वार्षिक वसूली का लक्ष्य निर्धारित किया गया था जिसके विपरीत 8.61 लाख रुपये की वसूली हुई. यानी लक्ष्य से अधिक की वसूली. इसके बावजूद न ही जिले के विभागीय पदाधिकारी आैर न ही सरकार काे फिक्र है कि इसे आैर संसाधन युक्त व जानदार कैसे बनाया जाये. जहां युवाआें काे पकाैड़ा बेचने की सलाह दी जा रही है, वहां मछली उत्पादन के प्रति उन्हें प्रेरित नहीं किया जा रहा, जाे हॉट केक है.
इसके उत्पादन से लेकर बेचने तक में काेई परेशानी नहीं करनी पड़ती. मछली का उत्पादन से अधिक बाजार में डिमांड है. सरकार इसे कृषि की तरह उद्याेग का दर्जा देकर राेड मैप बना कर काम करे, ताे निश्चित ताैर पर राज्य काे इससे काफी लाभ मिलेगा. मत्स्य पालक शायकउद्दीन बताते हैं कि करीब छह से सात हजार कराेड़ रुपये का राज्यभर में मछली का आयात आंध्रप्रदेश से हाेता है. यदि राज्य में ही जलकराें काे व्यवस्थित कर ठीक किया जाये, ताे राज्य का करीब 10,000 कराेड़ रुपये बाहर नहीं जाएं, जिससे राज्य का विकास हाेगा.
मछली उत्पादन के लिए उर्वरा स्थल है गया, पर सरकार का रवैया उदासीन
गया के भौगोलिक कारक कुछ ऐसे है कि यहां बेहतर संसाधन हाे ताे मछली उत्पादन का हब के रूप में श्ह शहर अपनी पहचान बना सकता है. यह मछली उत्पादन के लिए काफी उर्वरा वाला स्थल है. गया आये एक चाइनिज साइंटिस्ट ने कहा था चूंकि गया से हाे कर कर्क रेखा गुजरी है, इस वजह से यहां मछली का उत्पादन काफी हाे सकता है. यह एरिया स्लिपिंग जैंट की तरह है. यहां गर्मी व ठंड भी सबसे अधिक पड़ती है. मछलियाें का ग्राेथ हाेने में एक साल का समय लग जाता है. यानी मछली का जीरा डालने के दूसरे साल मछली का उत्पादन बेहतर मिल सकेगा, पर गर्मी में सभी ताल-तलैया के सूख जाने से मछलियां नहीं रह पातीं.
यहां कैनाल हाेता ताे पानी सालाेंभर रहता आैर तब मछली का उत्पादन भी अधिक हाेता, इस आेर सरकार का ध्यान ही नहीं है. मत्स्य पालक जितने जलकर बंदाेबस्त पर लेते हैं, उनमें कुछ ही जल कर काे डीजल पंपसेट आदि से पानी भर कर बचाये रखा जा सकता है. अधिकतर आहर, पाेखर, तालाब अतिक्रमित हैं. सरकार का काेई ध्यान नहीं. याेजना में इतने रेड एंड ब्लू टेप हैं कि धरातल पर लागू ही नहीं हाे पातीं. जानदार विभाग हाेने के बाद भी इसे मृतप्राय कर दिया गया है. जब राज्य में गिरिराज सिंह विभागीय मंत्री थे, ताे उनके कार्यकाल में विभाग में काफी विकास हुआ, पर उनके बाद यह विभाग फिर जहां था वहीं पहुंच गया.
अब अनुसूचित जाति नर्सरी याेजना की ही बात करें, ताे अनुसूचित जाति के पास जमीन का अभाव है, ऐसे में वह जमीन कहां से लायेंगे. फिर याेजना का क्या मतलब? सरकार इस विभाग काे विकसित कर दे, ताे आर्थिक संपन्नता आयेगी. राज्य का पैसा राज्य में ही रह जायेगा. सरकार खाली पड़ी सरकारी जमीन पर ही तालाब आदि जलकर की खुदाई करा कर बंदाेबस्त कर मछली उत्पादन कराये, ताे काफी फायदा मिलेगा. यह सबसे कम पूंजी व संसाधन में अधिक मुनाफा देने वाला व्यवसाय है.
माेहम्मद शायकउद्दीन, मत्स्यपालक
कई याेजनाआें से तालाब की संख्या बढ़ाने पर चल रहा काम
‘मुख्यमंत्री मत्स्य विकास याेजना’ के तहत रियरिंग तालाब का निर्माण यानी छाेटे तालाब की उड़ाही व कटाई कर उसका स्वरूप बड़ा करने का काम इसके तहत किया जाता है. इस याेजना के तहत डुमरिया में डेढ़ एकड़ में, माेहड़ा व गुरारु के सरेवा गांव में तालाब का जीर्णाेद्धार का काम कराया जा रहा है. इस याेजना में 21 लाख रुपये आवंटित कराये गये हैं, प्रति हेक्टेयर तीन लाख रुपये दिये जाते हैं. यह दूसरी ‘नीली क्रांति याेजना’ है. एक एकड़ में इस याेजना काे करने का लक्ष्य है, जिसके लिए साढ़े तीन लाख रुपये निर्धारित हैं. इस पर 50 फीसदी का अनुदान है. एक किसान काे दाे हेक्टेयर से अधिक में तालाब निर्माण का लाभ नहीं मिल सकेगा. तीसरी याेजना ‘अनुसूचित जाति नर्सरी याेजना’ है. इसमें 19 एकड़ जमीन पर तालाब निर्माण का कार्यादेश विभाग की आेर से दिया जा चुका है. 38 याेजनाएं ली जानी हैं. 17-18 याेजनाएं चालू हैं. इस पर लाभान्वित काे 90 फीसदी सब्सिडी है. 19 याेजनाआें के लिए 51 लाख रुपये निर्गत किये गये हैं. जिले में फिलहाल 15 प्रखंड मत्स्यजीवी सहयाेग समितियां कार्यरत हैं.

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