गया : आजाद पार्क स्थित गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में काव्य संध्या 207 का आयाेजन किया गया. इस माैके पर काव्य संध्या का आगाज मुकेश कुमार सिन्हा ने अपनी कविता ‘घर की दीवारें भी डरती हैं यहां, हर शख्स खूरेंजी सा हाे गया मुकेश, कबूतर मुश्किल से जी रहा यहां, बाज का पंजा नुकीला हाे गया मुकेश…’ पढ़ी. खालिक हुसैन परदेसी ने बंदी पर अपनी रचना पेश की.
‘बंद भारत का है एलान न निकलाे घर से, जा भी सकती है जान न निकलाे घर से…’, जयराम कुमार सत्यार्थी ने बलात्कारियाें काे फांसी की वकालत की- ‘चढ़ा दाे फांसी पर सभी दाेषियाें काे कदापि जीवित नहीं रखाे…’, श्यामदत्त मिश्र ने पढ़ी- ‘तेरा रावण ताे छलिया था, मेरा रावण घिनाैना है…’, विषधर शंकर ने नेताआें की करतूताें पर कहा- ‘सड़कें, पगडंडियां सब कुछ वीरान दिख रहा है मुझे…’, डॉ राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’ ने मां की बीमारी पर पेश किया- ‘जिसने दिया सहारा, आज तैयार है करने काे किनारा…’जयप्रकाश सिंह ने सवाल किया- ‘आजाद देश में खुलेआम क्याें घूम रहा है दुशासन…’, डॉ सुल्तान अहमद ने कहा- ‘मैं अवारा बादल हूं, प्यार में तेरे पागल हूं…’, विनाेद कुमार ने कहा- ‘कैसा लाेकतंत्र देखाे जमाने में, पुस्तकालय कैद हेै थाने में….’ सुमंत ने व्यंग्य में पढ़ा- ‘बाबा राम-रहीम मैं बन न सकूंगा, लेकिन हरपल चाहूंगा हनीप्रित की तरह…’ काव्य संध्या में अजीत कुमार, नंद किशाेर सिंह, रामावतार सिंह, संजीत कुमार, अरुण हरलीवाल, उदय सिंह, विजय कुमार शर्मा सहित अन्य ने अपनी रचनाएं पेश कीं. काव्य संध्या की अध्यक्षता सभापति सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र ने की.