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‘अब जानलेवा नहीं हर्ट अटैक’

गया/बोधगया : मेडिकल साइंस व ज्ञान के विकास के कारण अब हर्ट डिजीज वैसा जानलेवा नहीं रहा. प्लास्टिक एंजियोग्राफी के आने से हर्ट पीड़ितों की मौत 70 प्रतिशत से घट कर पांच से तीन प्रतिशत पर आ गयी है. हालांकि, इस बीमारी का इलाज अब भी सर्वसुलभ नहीं हो पाया है. गया जैसे छोटे शहरों […]

गया/बोधगया : मेडिकल साइंस व ज्ञान के विकास के कारण अब हर्ट डिजीज वैसा जानलेवा नहीं रहा. प्लास्टिक एंजियोग्राफी के आने से हर्ट पीड़ितों की मौत 70 प्रतिशत से घट कर पांच से तीन प्रतिशत पर आ गयी है. हालांकि, इस बीमारी का इलाज अब भी सर्वसुलभ नहीं हो पाया है. गया जैसे छोटे शहरों में हर्ट अस्पतालों का सर्वथा अभाव है.

ये बातें अपोलो अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ नीरज प्रसाद ने ‘प्रभात खबर’ से विशेष बातचीत में कहीं. वह कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के बिहार चैप्टर द्वारा आयोजित दो दिवसीय वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने बोधगया आये हुए हैं.

उन्होंने बताया कि प्लास्टिक एंजियोग्राफी के तहत बगैर ऑपरेशन नसों की सफाई की जाती है. इसमें आम तौर पर एक से डेढ़ लाख रुपये खर्च होता है. उन्होंने बताया कि भारत जैसे विकासशील देशों में प्लास्टिक एंजियोग्राफी 90 के दशक में आया है.

जबकि, विकसित देशों में 80 के ही दशक में ही आ चुका था. हालांकि, हर्ट के क्षेत्र में इसका प्रयोग 2001 से ही हो रहा है. उन्होंने धूम्रपान, तंबाकू का सेवन व शारीरिक श्रम नहीं करना समेत हर्ट डिजीज का कारण जेनेटिक (वंशानुगत) भी बताया. पर, गठिया (जोड़ों का दर्द) व प्रदूषण को नवीनतम कारण बताया.

आइजीआइएमएस, पटना के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ निशांत त्रिपाठी ने बताया कि किसी व्यक्ति को हर्ट अटैक होता है, तो किसी भी स्थिति में उसे छह घंटे के अंदर हर्ट हॉस्पिटल में पहुंचाना जरूरी है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में पटना में सात हॉस्पिटल हैं, जहां हर्ट डिजीज का इलाज संभव है. गया जैसे शहरों में हर्ट हॉस्पिटल नहीं होने के कारण ही सेमिनार का आयोजन किया गया, ताकि स्थानीय डॉक्टरों को यह जानकारी दी जा सके कि हर्ट अटैक के मरीजों को किस तरह का ट्रीटमेंट दिया जा सकता है.

साथ ही वैसे मरीजों को यथाशीघ्र हर्ट हॉस्पिटलों में भेज दिया जाये. उन्होंने कहा कि हर्ट फेल्योर व जेनेटिक जैसे कुछ हर्ट डिजीज को छोड़ दें, तो कुछ हद तक अन्य हर्ट डिजीज बिल्कुल ठीक हो जाते हैं.

पारस अस्पताल के कार्डियोलॉजी हेड डॉ प्रमोद कुमार ने कहा कि सस्ते इलाज के बजाय सही इलाज का चयन किया जाना चाहिए. सही इलाज थोड़ा महंगा हो सकता है. यह खुशी की बात है कि अब हर्ट के मरीजों को दिल्ली, बेंगलुरु या मद्रास ले जाने की जरूरत नहीं है. उसी लेवल का इलाज पटना में कम खर्च में उपलब्ध है. ‘भारतीयों में हर्ट डिजीज की शिकायत ज्यादा क्यों’ के सवाल पर उन्होंने बताया कि भारतीय जीन की भी बड़ी समस्या है. इस पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता है.

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