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लापरवाही. बरबाद हो रहा हजारों लीटर पानी

एक तरफ जलसंकट दूसरी ओर बरबादी गरमी के दस्तक के साथ ही जलस्तर में िगरावट, बढ़ेगी परेशानी दिनानुदिन बढ़ते जलसंकट से निदान को जो भी उचित माध्यम था, उसके सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं होने के कारण शहरवासी प्यासे हैं. शहर की आबादी लगभग तीन लाख है. प्रतिदिन एक व्यक्ति पर यदि कम से कम […]

एक तरफ जलसंकट दूसरी ओर बरबादी

गरमी के दस्तक के साथ ही जलस्तर में िगरावट, बढ़ेगी परेशानी
दिनानुदिन बढ़ते जलसंकट से निदान को जो भी उचित माध्यम था, उसके सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं होने के कारण शहरवासी प्यासे हैं.
शहर की आबादी लगभग तीन लाख है. प्रतिदिन एक व्यक्ति पर यदि कम से कम 50 लीटर पानी मुहैया कराने की भी व्यवस्था की जाय तो लगभग डेढ़ करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति करनी होगी. वर्तमान में 35 वर्ष पुराने पांच पम्प हाउसों से 9 लाख लीटर पानी की आपूर्ति की जा रही है. ऐसी स्थिति में सरकार के पीएचइडी विभाग की ओर से आपूर्ति होनेवाले इस जल से कितने फीसदी लोगों की प्यास बुझती होगी, यह स्वत: अनुमान किया जा सकता है.
दरभंगा : जल ही जीवन है. जलसंचय एवं उसके खर्च को व्यवस्थित करने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकार काफी घोषणाएं कर रही हैं. लेकिन सरकारी निर्देश का अनुपालन एवं सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं होने के कारण भूमिगत जलापूर्ति की कुव्यवस्था से हजारों लीटर पानी प्रतिदिन शहर में बर्बाद हो रहे हैं.
पीएचइडी के शहरी जलापूर्ति योजना विगत 33 वर्ष पुराना है. वर्षों पूर्व बिछाये गये भूमिगत पाइप में जगह-जगह दरार आने से पानी का रिसाव हो रहा है. इतना ही नहीं, पीएचइडी की ओर से लगाये गये सार्वजनिक स्थानों के स्टैंड नलों में टोटी नही लगने के कारण लगातार पानी गिरकर बर्बाद होता है.
शास्त्री चौक एवं डेनवी रोड के ऐसे स्टैंड पाइप जहां सुबह से लेकर शाम तक जब-जब पीएचइडी से जलापूर्ति की जाती है, हजारों लीटर जल की बर्बादी प्रतिदिन हो रही है. स्थानीय जनप्रतिनिधि से लेकर विभाग के अभियंता भी सबकुछ देखकर मौन हैं. ज्ञात हो कि जलस्तर दिनानुदिन नीचे गिरने से शहर के अधिकांश चापाकल सूख गये हैं.
ऐसी स्थिति में जलसंकट से जूझ रहे लोगों के बीच यदि जलापूर्ति के लिए सही मुकम्मल व्यवस्था पीएचइडी की ओर से स्टैंड पाइप के माध्यम से भी की जाये तो जलापूर्ति से वंचित लोगों को राहत मिलेगी. राज्य सरकार ने शहरी जलापूर्ति योजना जो इस शहर के लिए स्वीकृति की, उससे लोगों का गला कब तर करेगा यह तो भविष्य के गर्त में है.
भूगर्भीय जल का स्तर लगातार नीचे गिरने के कारण अधिकांश चापाकल सूख रहे हैं. जानकारी के अनुसार चापाकल अधिकतम 20 से 22 फीट तक का पानी खींचता है. इससे नीचे जलस्तर गिरने पर चापाकल से पानी लेने के लिए हैंडिल दबाने पर उससे पानी नहीं के बराबर ही गिरता है. शहर के लगभग 80 फीसदी चापाकल विगत 20 दिनों से इसी स्थिति में आ गये हैं. न तो चापाकल पानी देता है न ही उसमें लगे मोटर पानी खींच पाता है. हाल के वर्षों में गरमी के महीने में सामान्य चापाकलों के सूखने की
शिकायत मिलने पर राज्य सरकार ने सांसद-विधायक एवं विधान पार्षद की अनुशंसा से गड़ने वाले चापाकलों में ‘इंडिया मार्का’ की स्वीकृति दी. शहर में भी सांसद, विधायक एवं विधान पार्षदों की अनुशंसा से ऐसे इंडिया मार्का के चापाकल सार्वजनिक स्थानों पर गाड़े गये हैं, लेकिन अब गाड़ने वाले अभिकर्ता की गलती हो या कोई तकनीकी खराबी,
हाल के महीने में जितने भी ऐसे चापाकल गड़े हैं. उनमें 50 फीसदी से अधिक इंडिया मार्का के चापाकल बंद पड़े हैं. विश्वविद्यालय थाना परिसर का चापाकल महीनों से खराब था. जनप्रतिनिधि की अनुशंसा पर वहां इंडिया मार्का चापाकल गाड़ा गया. जानकारों के अनुसार गाड़ने के डेढ़ महीने बाद से ही वह पानी देना बंद कर दिया. अब ऐसी स्थिति में जब इंडिया मार्का चापाकल भी जल देने में हांफ रहे हैं तो शहरवासियों की प्यास कैसे बुझेगी.

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