नोटबंदी. कर्ज व जुगाड़ से चला रहे घर-गृहस्थी
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दिहाड़ी मजदूरों को नहीं मिल रहा काम
नोटबंदी. कर्ज व जुगाड़ से चला रहे घर-गृहस्थी प्रतिदिन मोतिहारी आ रहे काम की तलाश में मोतिहारी : खाली हाथ लौट के जब मजदूर घर गये, बच्चों को उन्हें देखके चेहरे उतर गये’. किसी शायर की यह शेर प्रतिदिन मजदूरी कर अपने व अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले मजदूरों पर सटीक बैठ रही है. […]
प्रतिदिन मोतिहारी आ रहे काम की तलाश में
मोतिहारी : खाली हाथ लौट के जब मजदूर घर गये, बच्चों को उन्हें देखके चेहरे उतर गये’. किसी शायर की यह शेर प्रतिदिन मजदूरी कर अपने व अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले मजदूरों पर सटीक बैठ रही है. बड़ी उम्मीद से शहर आते हैं लेकिन जब कोई काम नही मिलता तो उनके दिल पर क्या गुजरता होगा और घर पहुंचने पर अपने बच्चे व परिवार से क्या कहते होंगे,अभी के समय जो स्थिति है उसे देखकर सहज अनुमान लगाया जा सकता है.
मजदूरों को इन दिनों काम नही मिल रहा है और कर्ज लेकर किसी तरह से अपने व अपने परिवार का भरन पोषण कर रहे हैं. नोटबंदी का सीधा असर उनकी रोजी रोटी पर पडा है.गावं से चलकर प्रतिदिन मोतिहारी पहुंच तीन सौ से पांच सौ रूपये तक कमाने वाले अभी मायूस होकर घर लौट रहे हैं. प्रभात खबर की टीम ने प्रतिदिन काम की तलाश में मोतिहारी आने वाले मजदूरों से बात-चीत की जो इस प्रकार है.
रोज मोतिहारी आकर लौट जाता हूं. : बंजरिया थाना क्षेत्र के सिस्वनिया निवासी बली यादव ने बताया कि पिछले एक सप्ताह से कोई काम नहीं मिला है. नोटबंदी के शुरुआती दिनों में काफी मुश्किल से काम मिला था. अब एक सप्ताह से वह भी नही मिल रहा है.रोज सुबह में एक उम्मीद लेकर ज्ञानबाबु चौक पहुंचता हूं, लेकिन दस बजे तक कोई काम के लिए बुलावा नहीं आने पर अपने घर वापस हो जाता हूं.
कर्ज लेकर परिवार का कर रहा हूं भरण-पोषण : चैलाहा के मुन्ना चौधरी ने बताया कि कर्ज लेकर किसी तरह से जिंदगी काट रहे हैं. अब किराना वाले उधार देने से मना कर रहे हैं.आज भी उम्मीद लेकर मोतिहारी आया था लेकिन कोई काम नही मिला.
पहले कमाता था रोज तीन सौ, अब चौवन्नी भी नहीं : मजदूर नंदलाल पासवान ठेका पर काम सकारता है. ठेका होने के कारण प्रतिदिन सभी सहयोगियों को देने के बाद उसे कम से कम तीन सौ रुपये जरूर बचता था. इससे घर ठीक-ठाक चल रहा था. काफी मेहनत के बाद काम तो मिलता है लेकिन पूरा दिन नही मिलता है. किसी दिन आधा दिन के लिए तो किसी दिन पूरा दिन के लिए.किसी तरह से जिंदगी कट रही है.
गावों में भी नहीं है काम, इसलिए आता हूं शहर : मजदूर राघो चौधरी ने बताया कि गावों भी पहले काम मिलता था तब भी शहर आते थे. शहर आने पर अधिक मजदूरी मिलती थी. अब तो शहर तो दूर गावों में भी काम नहीं मिल रहा है. मिलता भी है तो पूरी मजदूरी नहीं मिलती.
दवा के लिए भी नहीं हैं पैसे : बंजरिया के मजदूर राधो प्रसाद ने बताया कि दवा खरीदने व परिवार का इलाज कराने के लिए पैसा नहीं है. काफी सोचकर मोतिहारी आया था कि काम मिलेगा. लेकिन नहीं मिला, अब घर लौट रहा हूं. घर पहुंचने पर कोई जुगाड़ लगाउंगा.
मनरेगा में भी नहीं मिल रहा काम : मजदूरों ने बताया कि मनरेगा योजना में भी काम नहीं मिल रहा है. इस कारण गावं छोड़ शहर के लिए पलायन करना पड़ता है. लेकिन अब शहर में भी काम नहीं मिल रहा है.
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