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जिले में बेरोकटोक चल रहे हैं अवैध निजी अस्पताल

बक्सर : जिले में चार निजी अस्पतालों को मरीजों की चिकित्सकीय सेवा करने को लेकर रजिस्टर्ड किया गया है. जबकि सैकड़ों की संख्या में बिना रजिस्ट्रेशन के ही चल रहे हैं. जिन पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. जिले में अब तक अवैध रूप से संचालित किसी भी […]

बक्सर : जिले में चार निजी अस्पतालों को मरीजों की चिकित्सकीय सेवा करने को लेकर रजिस्टर्ड किया गया है. जबकि सैकड़ों की संख्या में बिना रजिस्ट्रेशन के ही चल रहे हैं. जिन पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.
जिले में अब तक अवैध रूप से संचालित किसी भी निजी अस्पताल की न तो जांच की गयी है और न ही कोई कार्रवाई की जा रही है. इस कारण कुकुरमुत्ते की तरह उग आये अस्पताल के व्यवसायी किसी भी निजी भवन पर अस्पताल का बोर्ड लगा मरीजों का दोहन शुरू कर देते हैं.
जिले के स्वास्थ्य विभाग पर एक कहावत चरितार्थ हो रहा है कि चिराग तले अंधेरा. सबसे आश्चर्य की बात है कि जिले में सिविल सर्जन कार्यालय के गेट के सामने ही जिले में जितने रजिस्टर्ड अस्पताल हैं कहीं उससे ज्यादा अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं.
यह विभाग की जिले में तैनात अधिकारियों की लापरवाही के कारण जारी है. सिविल सर्जन कार्यालय के गेट पर खुले अस्पतालों के परिसर में मरीजों को आकर्षित करने के लिए डॉक्टरों की एक लंबी सूची लगायी गयी है, लेकिन वास्तविक रूप से उन अस्पतालों का संचालन नीम हकीमों के हाथों में है.
इस कारण जिले में कई निजी अस्पतालों में सेवा में त्रुटि एवं मरीजों की मौत को लेकर हंगामा भी होते रहे हैं. स्थिति विपरीत होती है तो विभाग के अधिकारी जगते हैं और उसकी जांच शुरू की जाती है. जांच भी कागजों में ही सिमट जाता है. जिले में अस्पताल व्यवसाय का फलने फूलने का मुख्य कारण सरकारी अस्पतालों में अच्छे डॉक्टरों एवं संसाधनों के होने के बावजूद काम में लापरवाही शामिल है.
मरीजों का होता है दोहन
बिना डॉक्टरों के चल रहे अवैध निजी अस्पतालों के संचालकों की पकड़ जिले के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर कायम है. जिनकी मिलीभगत की वजह से इन अवैध अस्पतालों पर लगाम लगाना काफी मुश्किल काम है. बेलगाम अस्पतालों द्वारा मरीजों को विशेष परिस्थिति में भर्ती लेने के बाद दोहन शुरू कर दिया जाता है.
मरीजों को अपना जीवन बचाने के लिए उनके शर्तों पर तैयार होना पड़ता है. सबसे पहले अनावश्यक जांच का शिकार मरीजों को होना पड़ता है. गरीब मरीजों का पूरी तरह से आर्थिक दोहन हो जाता है. यह समस्या सबसे ज्यादा सिजेरियन मामले में होता है. सदर अस्पताल में तत्काल सेवा के तहत ऑपरेशन की कोई भी सुविधा मरीजों को नहीं मिलती है.
जिले में अब तक अवैध रूप से संचालित किसी भी निजी अस्पताल की न तो जांच की गयी है और न ही कोई कार्रवाई की जा रही है. इस कारण कुकुरमुत्ते की तरह उग आये अस्पताल के व्यवसायी किसी भी निजी भवन पर अस्पताल का बोर्ड लगा मरीजों का दोहन शुरू कर देते हैं.
जिले के स्वास्थ्य विभाग पर एक कहावत चरितार्थ हो रहा है कि चिराग तले अंधेरा. सबसे आश्चर्य की बात है कि जिले में सिविल सर्जन कार्यालय के गेट के सामने ही जिले में जितने रजिस्टर्ड अस्पताल हैं कहीं उससे ज्यादा अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं.
यह विभाग की जिले में तैनात अधिकारियों की लापरवाही के कारण जारी है. सिविल सर्जन कार्यालय के गेट पर खुले अस्पतालों के परिसर में मरीजों को आकर्षित करने के लिए डॉक्टरों की एक लंबी सूची लगायी गयी है, लेकिन वास्तविक रूप से उन अस्पतालों का संचालन नीम हकीमों के हाथों में है.
इस कारण जिले में कई निजी अस्पतालों में सेवा में त्रुटि एवं मरीजों की मौत को लेकर हंगामा भी होते रहे हैं. स्थिति विपरीत होती है तो विभाग के अधिकारी जगते हैं और उसकी जांच शुरू की जाती है. जांच भी कागजों में ही सिमट जाता है. जिले में अस्पताल व्यवसाय का फलने फूलने का मुख्य कारण सरकारी अस्पतालों में अच्छे डॉक्टरों एवं संसाधनों के होने के बावजूद काम में लापरवाही शामिल है.
मरीजों का होता है दोहन
बिना डॉक्टरों के चल रहे अवैध निजी अस्पतालों के संचालकों की पकड़ जिले के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर कायम है. जिनकी मिलीभगत की वजह से इन अवैध अस्पतालों पर लगाम लगाना काफी मुश्किल काम है. बेलगाम अस्पतालों द्वारा मरीजों को विशेष परिस्थिति में भर्ती लेने के बाद दोहन शुरू कर दिया जाता है.
मरीजों को अपना जीवन बचाने के लिए उनके शर्तों पर तैयार होना पड़ता है. सबसे पहले अनावश्यक जांच का शिकार मरीजों को होना पड़ता है. गरीब मरीजों का पूरी तरह से आर्थिक दोहन हो जाता है. यह समस्या सबसे ज्यादा सिजेरियन मामले में होता है. सदर अस्पताल में तत्काल सेवा के तहत ऑपरेशन की कोई भी सुविधा मरीजों को नहीं मिलती है.

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