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बिहार : ऐसा गांव जहां कन्याओं का होता जनेऊ संस्कार

मणियां में 1972 से हर साल वसंत पंचमी के दिन आयोजित होता है कार्यक्रम छोटू कुमार बक्सर/नावानगर : आजकल जहां लड़कों में जनेऊ संस्कार की परंपरा खत्म होती जा रही है वहीं बक्सर में एक ऐसा गांव है जहां स्कूली छात्राएं भी जनेऊ धारण करती हैं. भले ही इसकी जानकारी लोगों को नहीं है, लेकिन […]

मणियां में 1972 से हर साल वसंत पंचमी के दिन आयोजित होता है कार्यक्रम
छोटू कुमार
बक्सर/नावानगर : आजकल जहां लड़कों में जनेऊ संस्कार की परंपरा खत्म होती जा रही है वहीं बक्सर में एक ऐसा गांव है जहां स्कूली छात्राएं भी जनेऊ धारण करती हैं. भले ही इसकी जानकारी लोगों को नहीं है, लेकिन लगभग पचास सालों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है.
हर वसंत पंचमी को यहां छात्राओं के लिए जनेऊ संस्कार आयोजित किया जाता है. सोमवार को आयोजित कार्यक्रम में भी छह छात्राओं का जनेऊ संस्कार किया गया. पुरानी परंपरा में जान डालने के लिए बक्सर जिले की लड़कियों ने युवाओं को सीख दी हैं. नावानगर प्रखंड के मणियां गांव के उच्च विद्यालय में अनेक छात्राएं जनेऊ धारण करती हैं. हिंदू धर्म में वैसे तो कन्या के द्वारा जनेऊ धारण करने की मनाही है. इसके बावजूद दशकों से यह परंपरा चली आ रही है. यज्ञोपवीत संस्कार करनेवाले आचार्य हरि नारायण आर्य ने कहा कि ऐसा किसी शास्त्र में नहीं लिखा गया कि कन्याएं जनेऊ धारण नहीं कर सकती हैं लेकिन कुछ कारणों से इस पर रोक है. पर इन छात्राओं ने उसका हल निकाल रखा है.
प्रति वर्ष वसंत पंचमी के दिन जनऊ संस्कार होता है, जिसमें छात्राएं वैदिक परंपरा अनुसार जनेऊ धारण करती हैं. उन्होंने बताया कि हर साल इस विद्यालय में कन्याएं जनेऊ धारण करती हैं. यह परंपरा दशकों से चली आ रही है.
हिंदू धर्म में कन्या के द्वारा जनेऊ धारण करने की है मनाही
छह कन्याओं ने किया जनेऊ धारण
सोमवार को वसंत पंचमी के दिन छह कन्याओं ने जनेऊ धारण किया. नीतू कुमारी, शिल्पी कुमारी, बसंती कुमारी, अन्नु कुमार और नीतू कुमार ने जनेऊ संस्कार किया. पंडित हरिनरायण आर्य व सिद्धेश्वर आर्य ने इन सभी को जनेऊ धारण कराया.
आज भी चल रही है परंपरा
यह परंपरा 1972 से चली आ रही है. मणिया गांव के आचार्य विश्वनाथ सिंह ने दयानंद आर्य हाईस्कूल की स्थापना की. आचार्य के चार बेटियां थीं, जिनका नाम मंजू, उषा, गीता व मीरा है. आचार्य ने स्थापना के प्रथम वर्ष के वसंत पंचमी के दिन अपनी चारों बेटियों का जनेऊ संस्कार कर दिया. तब से लेकर आज तक यह परंपरा विद्यालय में चली आ रही है.

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