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VIDEO : डुमरांव राज के ”बड़ा बाग” के आम पर बिहार को नाज

विनीत मिश्रा डुमरांव: प्राकृतिक छटा के बीच डुमरांव राज का ‘बड़ा बाग’ बागवानी के क्षेत्र में पूरे बिहार में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इस बाग का पूर्व नाम ‘बाग-ए-कला’ रहा है. जो अब बड़ा बाग व महाराजा के नाम से पूरे देश में जाना जाता है. इस बाग पर केवल शाहाबाद को ही […]

विनीत मिश्रा

डुमरांव: प्राकृतिक छटा के बीच डुमरांव राज का ‘बड़ा बाग’ बागवानी के क्षेत्र में पूरे बिहार में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इस बाग का पूर्व नाम ‘बाग-ए-कला’ रहा है. जो अब बड़ा बाग व महाराजा के नाम से पूरे देश में जाना जाता है. इस बाग पर केवल शाहाबाद को ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार को नाज है. आज भी यह अपने रूप व आकर्षण के साथ विद्यमान है.

बाग को लगाने का श्रेय

बड़ा बाग को लगाने का श्रेय महाराजा बहादुर जय प्रकाश सिंह काे है. वहीं, इसमें विषेश रूचि लेने का श्रेय महाराजा के ज्येष्ठ पुत्र महाराज कुमार विशेश्वर बख्स सिंह को जाता है. ऐसा कहा जाता है कि महाराजा के राजत्व काल 1805-1838 में जिन तीन प्रमुख ऐतिहासिक कार्यों को अंजाम दिया गया, उनमे बड़ा बाग का स्थान आज भी महत्वपूर्ण है.

बाग-बागवानी की कला

यह बाग एक विशाल भू-खंड पर अवस्थित है और चहारदीवारी से घिरा सुसज्जित बाग है. अनेक प्रकार के फलों आैर फूलों से भरा हुआ यह बाग बागवानी कला का उत्कृष्ट उदाहरण है. इस बाग में एक विशाल तालाब भी है, जिसमें नौकायन भी किया जाता है. इसके अलावा यहां एक भव्य शिव मंदिर है, जिसके बगल में एक छोटा-सा हनुमान मंदिर भी है. यह मंदिर स्थानीय लोगों के साथ-साथ यहां आनेवाले लोगों को भी मोहित कर लेता है.

अनेक प्रजातियों के हैं वृक्ष

बड़ा बाग के अंदर अनेक प्रजातियों के वृक्ष लगाये गये हैं. हरेक फलों के लिए अलग-अलग भू-खंड है. यहां आम, आंवला, लीची, खीर, अमरूद, शहतूत, बेर, कटहल आदि कई प्रकारों के वृक्ष लगे हैं. यहां के आम, आंवला व कटहल के फल सिर्फ बिहार के बाजारों में ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित देश के विभिन्न राज्यों के बाजारों में भी अपना खास महत्व रखते हैं. इन प्रदेशों की मंडियों में जब बड़ा बाग के फल पहुंचते हैं, तो बाजारों में डुमरांव के साथ-साथ बिहार के नाम की चर्चा शुरू हो जाती है. खरीदार बड़ा बाग के फलों व सब्जियों की खरीदारी कर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं.

दो फलों की अपनी कहानी

दो फलों की कहानी में एक ‘खात्मा आम’ व दूसरा ‘कटहली’ के नाम से प्रसिद्ध कटहल की है. इसका आकार अन्य कटहल के आकार से छोटा होता था. इसके वृक्ष विशाल होते थे. यह अन्य कटहल की प्रजातियों में इकलौता था. ऐसा कहा जाता है कि इसके ना तो बीज होते थे और ना ही इसके कलम लगते थे. इसके लिए स्व. महाराजा बहादुर राम रणविजय प्रसाद सिंह ने इसका कलम लगाने का कठिन परिश्रम किया. देश के प्रसिद्ध वनस्पति शास्त्रियों को भी डुमरांव आमंत्रित किया. वह चाहते थे कि किसी तरह इस वृक्ष का कलम लगाया जा सके, परंतु यह संभव नही हो पाया और कटहली की प्रजाति विलुप्त हो गयी.

वहीं, ‘खात्मा आम’ केवल रोहतास जिले के ‘कोआथ’ के नवाब साहब के ही बाग में थे. नवाब साहब ने अपने बगान से 5-6 पौधे डुमरांव के तत्कालीन महाराजा बहादुर सर केशव प्रसाद सिंह को भेंट किये थे. यह ‘खात्मा आम’ डुमरांव के बड़ा बाग में आज भी अपनी मौजूदगी से डुमरांव को गौरवान्वित करती है. कहा जाता है कि संभवत यह ‘खात्मा आम’ डुमरांव के बड़ा बाग में ही अब केवल उपलब्ध है. इस ‘खात्मा आम’ के वृक्षों की संख्या बढ़ते-बढ़ते करीब 25 हो गयी है.

नियमितबागआते हैं राजपरिवार के सदस्य

बड़ा बाग को विभिन्न प्रकार के फलव फुलों से सजाया गया है. बड़ा बाग के अंदर की सड़क के दाएं व बाएं अनेक प्रकार के सुगंधित व मनमोहक पुष्प-पत्तियों से सुसज्जित किया गया है. आज भी यहां युवराज चंद्रविजय सिंह, उनकी पत्नी युवराज्ञी कणिका सिंह व पुत्र महाराज शिवांग विजय सिंह नियमित रूप से बड़ा बाग में अपना कुछ पल गुजारते हैं. इनकी देख-रेख में यह बड़ा बाग अपने पूर्व गौरव में अवस्थित है. यहां राज परिवार ने अपना एक कार्यालय भी बनाया हुआ है. इस कार्यालय में युवराज चंद्रविजय सिंह व उनके पुत्र शिवांग विजय सिंह प्रतिदिन लोगों से मिल-बैठ कर उनकी बातें सुनते व समझते हैं.

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