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बिहार: मिट्टी से रिश्ता जोड़ा, मौसम ने तोड़ दिया, बिहटा के किसान अभिषेक कुमार की कहानी सुन भर आएंगी आंखें

बिहार: कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन ने अभिषेक की जिंदगी की दिशा बदल दी. बेंगलुरु में एक अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर वह अपने पैतृक गांव, बिहटा (पटना) लौट आए. यहां आने के बाद उन्होंने तय कर लिया कि अब शहर की चकाचौंध नहीं, बल्कि गांव की मिट्टी ही उनका भविष्य होगी.

बिहार: मोनु कुमार मिश्रा, बिहटा. बिहार में इस साल बेमौसम बारिश और आंधी-तूफान ने खेती-किसानी की कमर तोड़ दी है. खेतों में मेहनत करने वाले किसानों की फसलें जहां की तहां बर्बाद हो गई हैं.इन्हीं किसानों में एक नाम है अभिषेक कुमार का, जो किसी समय बेंगलुरु में बतौर इंजीनियर काम करते थे, लेकिन उन्होंने अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर मिट्टी से रिश्ता जोड़ा और खेती को अपना करियर चुना.

लॉकडाउन बना जिंदगी का मोड़

कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन ने अभिषेक की जिंदगी की दिशा बदल दी. बेंगलुरु में एक अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर वह अपने पैतृक गांव, बिहटा (पटना) लौट आए. यहां आने के बाद उन्होंने तय कर लिया कि अब शहर की चकाचौंध नहीं, बल्कि गांव की मिट्टी ही उनका भविष्य होगी.इस फैसले के साथ उन्होंने खेती को आधुनिक तरीके से अपनाने की योजना बनाई.

आधुनिक तकनीक से कुछ समय के लिए बदली किस्मत

अभिषेक ने सोन तटी गांव बिंदौल और आस-पास के इलाकों में पट्टे पर जमीन लेकर तरबूज की खेती शुरू की. पारंपरिक खेती के बजाय उन्होंने ड्रिप इरिगेशन, मल्चिंग और उन्नत बीज जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया. इसका उन्हें सकारात्मक परिणाम भी मिला. पिछले साल उन्होंने तरबूज की खेती से अच्छा मुनाफा कमाया. उनके नवाचारों को देखकर आस-पास के किसानों ने भी उन्हें फॉलो करना शुरू किया और धीरे-धीरे क्षेत्र में एक नई कृषि क्रांति का माहौल बनने लगा.

मौसम की मार ने तोड़े सपने

लेकिन इस साल की बेमौसम बारिश ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया. अप्रैल महीने से ही हो रही लगातार बारिश और तेज आंधियों ने उनकी फसलें तबाह कर दीं. तरबूज की बेलें खेत में ही सड़ने लगीं, और देखते ही देखते उनकी पूरी पूंजी मिट्टी में मिल गई.अभिषेक ने बताया कि यह संकट सिर्फ उनका नहीं है—पालीगंज से लेकर बिहटा तक सैकड़ों किसान इस आपदा की चपेट में हैं. तरबूज, खीरा, लौकी, टमाटर जैसी फसलें सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई हैं.

संघर्ष जारी है, लेकिन हौसले पर ग्रहण

अभिषेक अभी पूरी तरह से हार नहीं मान रहे हैं, लेकिन इस नुकसान ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया है.उनके जैसे युवाओं ने गांव लौटकर खेती को नए नजरिए से देखने की कोशिश की थी.परंतु जब प्रकृति ही साथ न दे, तो इन कोशिशों की ज़मीन कमजोर पड़ जाती है.साथ ही, सरकार से भी इन्हें कोई ठोस राहत नहीं मिली है.

क्या मिल पाएगा इन किसानों को न्याय?

बिहार के इन सैकड़ों किसानों के सामने अब सवाल खड़ा है—क्या उनके नुकसान की भरपाई होगी? क्या मौसम के कहर से पीड़ित इन किसानों को कोई सरकारी सहायता मिलेगी? अभिषेक जैसे पढ़े-लिखे युवाओं ने खेती में जो उम्मीदें लगाई थीं, क्या वे अब हमेशा के लिए टूट जाएंगी?

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यह कहानी केवल अभिषेक की नहीं, बल्कि उन सभी किसानों की है, जिन्होंने अपने ख्वाबों को खेतों में बोया और मौसम की मार ने उन्हें उजाड़ दिया.अब जरूरत है कि सरकार और समाज मिलकर इनके पुनर्निर्माण की राह तैयार करें, ताकि खेती फिर से सम्मान और भविष्य की उम्मीद बन सके.

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शहीद सिंकदर के पिता
Prashant Tiwari
Prashant Tiwari
प्रशांत तिवारी डिजिटल माध्यम में पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में एक्टिव हैं. करियर की शुरुआत पंजाब केसरी से शुरू करके राजस्थान पत्रिका से होते हुए फिलहाल प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम तक पहुंचे हैं, देश और राज्य की राजनीति में गहरी दिलचस्पी रखते हैं. साथ ही अभी पत्रकारिता की बारीकियों को सीखने में जुटे हुए हैं.

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