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आशीष के लिए सिस्टर डिसूजा बनी भगवान

आरा : दो साल पहले तक मुफस्सिल थाना क्षेत्र के इचरी गांव के रहनेवाले आशीष के बारे मे लोग यही सोच रहे थे कि अब आशीष की उम्र लंबी नहीं है, मगर अपनी हिम्मत व हौसले तथा भाई द्वारा निभाये गये लक्ष्मण की भूमिका की बदौलत जब आशीष के सामने सिस्टर डिसूजा भगवान बन कर […]

आरा : दो साल पहले तक मुफस्सिल थाना क्षेत्र के इचरी गांव के रहनेवाले आशीष के बारे मे लोग यही सोच रहे थे कि अब आशीष की उम्र लंबी नहीं है, मगर अपनी हिम्मत व हौसले तथा भाई द्वारा निभाये गये लक्ष्मण की भूमिका की बदौलत जब आशीष के सामने सिस्टर डिसूजा भगवान बन कर आयी,

तो उसकी जिंदगी खुशियों से भर उठी. बोधगया के रूट्स संस्था की बदौलत आज आशीष अपने जैसे साथियों के साथ न सिर्फ फुटबॉल खेलता है बल्कि क्रिकेट व बैडमिंटन में भी दो-दो हाथ आजमाता है. दो साल बाद संस्था से छुट्टी लेकर जब आशीष अपने गांव लौटा, तो उसके चाचा-चाची को यह विश्वास नहीं हुआ कि यह वही आशीष है, जो कुछ दिनों पहले तक मौत के मुंह में जानेवाला था.

बड़े भाई शेषनाथ ने निभायी थी लक्ष्मण की भूमिका : बचपन में एड्स पीड़ित पिता हरिशंकर तिवारी ने साथ छोड़ दिया, उस समय आशीष महज छह माह का था. बाद में मां गौरी देवी भी बीमारी के कारण 2011 में साथ छोड़ गयी. अब अकेला सात वर्षीय शेषनाथ अपने चाचा व चाची के रहमोकरम पर आशीष की परवरिश करने लगा. जब आशीष तीन साल का था, उसके शरीर पर चकते- चकते जैसा घाव का निशान उभर कर सामने आने लगा. भाई की पीड़ा को देख शेषनाथ उसे लेकर सदर अस्पताल पहुंचा, तो बच्चे के ब्लड सैंपल से पता चला कि आशीष को एड‍्स है.
छोटे से मासूम को आरा के चिकित्सकों ने पटना रेफर कर दिया. इलाज के पैसे, गरीबी की ठोकरें तथा लोगों की जिल्लत भी शेषनाथ को लक्ष्मण की भूमिका निभाने से डिगा नहीं पायी और उसने हार न मानते हुए अपने भाई आशीष को एक से बढ़ कर एक चिकित्सक से दिखाता रहा.
निराश शेषनाथ एक दिन पटना में कुर्जी अस्पताल के पास खड़ा था. ऐसे में वहां कार्य कर रही सिस्टर डिसूजा की नजर बीमार मासूम आशीष तथा निराश शेषनाथ पर पड़ी और सिस्टर डिसूजा पूछ बैठी. इसके बाद शेषनाथ ने सारी बातें बतायीं और यहीं से उसके भाग्य की रेखा पलटी और उसे सिस्टर ने बोधगया में कार्य करनेवाली एक सामाजिक संस्था रूट्स के सदस्यों के पास भेजा और इसके बाद आज आशीष ने अपनी हिम्मत व सिस्टर डिसूजा की मेहरबानी व भाई शेषनाथ के हार न मानने की वजह से मौत को भी हरा दिया .
काश! मेरा बेटा भी बनता शेषनाथ जैसा लक्ष्मण
तपती धूप थी और दूर पगडंडियों के सहारे दो युवक गांव में चले आ रहे थे. तेज धूप से बचने के लिए गांव में लगे आम के पेड़ के नीचे कुछ युवा एवं बुजुर्ग बैठे हुए थे. बुजुर्ग राम प्रताप ने कहा लगता है कि कोई आवत बा. जैसे ही दोनों युवक नजदीक आने लगे, तो पेड़ के नीचे बैठा एक युवक मनीष चिल्ला उठा,
अरे यह तो शेषनाथ है, तब तक शेषनाथ नजदीक आ चुका था. मनीष ने पूछा तुम्हारे साथ यह कौन है शेषनाथ, तो वह बोल उठा नहीं पहचाना यह अपना आशीष है और वहीं चौपाल hwीपर बैठ कर जब शेषनाथ ने दो साल पहले से आज तक की आपबीती सुनाई, तो वहां बैठे बुजुर्ग से लेकर युवा तक को विश्वास नहीं हो रहा था कि कल तक जिस आशीष को मौत निगलनेवाली थी और यमराज अपने साथ ले जानेवाला था आज दो साल बाद वही आशीष जिंदगी की जंग मे यमराज को हरा कर सामने खड़ा है. अपनी आपबीती बताने के बाद गहरी गहरी सांस लेते हुए आशीष को अपने साथ लेकर शेषनाथ अपने चाचा- चाची के पास बढ़ चला.
जहां वे इंतजार कर रहे थे और चौपाल पर बैठे लोग पीछे से जाते देख उन्हें निहार रहे थे और बुजुर्गों के मन में यह बात जरूर उठ रही होगी कि काश मेरा भी बेटे शेषनाथ की तरह हो और वे लक्ष्मण की भूमिका निभाये.
आशीष के आगे मौत भी हारी, जब भाई शेषनाथ बना सहारा
जब सभी ने नकारा, तो भाई शेषनाथ बना सहारा
पहले था 75 प्रतिशत एड्स, अब है जीरो प्रतिशत

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