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एमबीबीएस छात्र अब गांव में रह कर ग्रामीणों की जांचेंगे सेहत

भागलपुर : एमबीबीएस स्टूडेंट के ग्रामीण स्वास्थ्य प्रशिक्षण के लिए ग्रामीण स्वास्थ्य प्रशिक्षण केंद्र नाथनगर में पूरी तरह से बन कर तैयार हे. इसे जल्द ही शुरू कर दिया जायेगा. रेफरल अस्पताल नाथनगर में बनाये गये इस केंद्र पर एमबीबीएस स्टूडेंट न केवल रहेंगे बल्कि वे ग्रामीणों की सेहत जांच कर अपना चिकित्सकीय ज्ञान भी […]

भागलपुर : एमबीबीएस स्टूडेंट के ग्रामीण स्वास्थ्य प्रशिक्षण के लिए ग्रामीण स्वास्थ्य प्रशिक्षण केंद्र नाथनगर में पूरी तरह से बन कर तैयार हे. इसे जल्द ही शुरू कर दिया जायेगा. रेफरल अस्पताल नाथनगर में बनाये गये इस केंद्र पर एमबीबीएस स्टूडेंट न केवल रहेंगे बल्कि वे ग्रामीणों की सेहत जांच कर अपना चिकित्सकीय ज्ञान भी हासिल करेंगे. अब तक जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रहे एमबीबीएस के छात्रों को ग्रामीण स्वास्थ्य परीक्षण का मौका नियमित नहीं मिल पा रहा था. इसकी वजह से एमबीबीएस के छात्रों को बीमारी और उसके इलाज के तरीके की सही जानकारी नहीं मिल पा रहा था. बीते एमसीआइ टीम के दौरे पर टीम ने इस मुद्दे के प्रति कॉलेज के प्राचार्य का ध्यान भी आकृष्ट कराया था.

हॉस्टल में ये-ये है सुविधा : इस हॉस्टल में एमबीबीएस स्टूडेंट के लिए चार कमरा, एक बड़ा बरामदा है. इसमें कम से कम एक साथ 12 विद्यार्थी रह सकेंगे. इसके अलावा यहां पर सुसज्जित शौचालय, बाथरूम और किचन रूम होगा. हालांकि छात्रों के भोजन के लिए केंद्र के बगल में ही अलग से रसोई घर का इंतजाम किया गया है.
क्यों जरूरी है एमबीबीएस स्टूडेंट को प्रशिक्षण : एमसीआइ के गाइड लाइन के मुताबिक एमबीबीएस के छात्रों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उप स्वास्थ्य केंद्रों में जाकर इसका प्रशिक्षण तीसरे सेमेस्टर से लेकर सातवें सेमेस्टर तक लेना होगा. इस दौरान ग्रामीण स्तर पर होने वाली बीमारियों और उसके इलाज के तरीके पर नोट भी बनाना होगा. प्रशिक्षण को लेकर एमबीबीएस स्टूडेंट से परीक्षा में सवाल भी पूछा जाता है. साथ ही तैयार नोट शीट से एमबीबीएस स्टूडेंट से वाइवा के दौरान उनसे प्रश्न भी पूछे जाते हैं. इंटर्न को भी ग्रामीण क्षेत्र में दो माह तक रह कर ग्रामीणों का इलाज करना होता है.
टीबी, ब्लड बैंक और एचआइवी की भी जानकारी : ग्रामीण स्तर में जाने का मकसद उन इलाकों में विकसित हो रही बीमारी को देख-जांच कर उसका डाॅटा बनाना है. इसके अलावा इलाके के पानी की सफाई, दूध के शुद्धीकरण और ब्लड बैंक संबंधित कई जानकारी इकट्ठा करना होता है. खासकर टीबी, ब्लड बैंक और एचआइवी के मरीज की पहचान और उसमें आ रहे बदलाव पर बारीकी से अध्ययन भी कराया जाता है.

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