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कमिश्नरी का लिपिक बरखास्त

भागलपुर : भागलपुर प्रमंडलीय आयुक्त कार्यालय के उच्चवर्गीय लिपिक रमण कुमार सिन्हा बरखास्त कर दिये गये हैं. राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के संयुक्त सचिव केशव कुमार सिंह ने इस बाबत आदेश जारी कर प्रमंडलीय आयुक्त को भी भेज दिया है. वर्ष 2009 में चार हजार रुपये रिश्वत लेते निगरानी विभाग के अघिकारियों ने […]

भागलपुर : भागलपुर प्रमंडलीय आयुक्त कार्यालय के उच्चवर्गीय लिपिक रमण कुमार सिन्हा बरखास्त कर दिये गये हैं. राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के संयुक्त सचिव केशव कुमार सिंह ने इस बाबत आदेश जारी कर प्रमंडलीय आयुक्त को भी भेज दिया है. वर्ष 2009 में चार हजार रुपये रिश्वत लेते निगरानी विभाग के अघिकारियों ने सिन्हा को रंगे हाथ गिरफ्तार किया था. इसी मामले को लेकर बरखास्तगी की कार्रवाई की गयी है.

रमण कुमार सिन्हा के विरुद्व जांच रिपोर्ट में आरोप प्रमाणित होने और अनुशासनिक प्राधिकार के स्तर पर की गयी समीक्षा के बाद बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियमावली 2005 के नियम के तहत कार्रवाई की गयी है. सिन्हा को सरकार के अधीन भविष्य में नियोजित नहीं किया जायेगा. निलंबन अवधि के लिए उन्हें जीवन यापन भत्ता के अतिरिक्त कुछ भी देय नहीं होगा.
सिन्हा के खिलाफ बांका जिला स्थित फुल्लीडुम्मर थाना क्षेत्र के भितिया गांव निवासी सुमित कुमार सिंह ने निगरानी विभाग में लिखित आवेदन दिया था. इसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके वाहन का परमिट निर्गत करने के लिए श्री सिन्हा ने उनसे 4000 रुपये रिश्वत के रूप में मांगे.
निगरानी विभाग के अधिकारियों ने आरोप का सत्यापन किया. आरोप सत्य पाते हुए धावा दल ने 19 मार्च 2009 को श्री सिन्हा को चार हजार रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया था. इसके बाद निगरानी थाना में भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज होने के बाद उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई शुरू की गयी. संचालन अधिकारी ने आरोप को प्रमाणित पाया. फिर श्री सिन्हा को जांच रिपोर्ट की प्रतिलिपि उपलब्ध कराते हुए उनसे
कमिश्नरी का लिपिक…
स्पष्टीकरण पूछा गया. श्री सिन्हा ने स्पष्टीकरण में एक साजिश के तहत मामले में फंसाने और रिश्वत लेने की बात को झूठा व मनगढ़ंत बताया था. प्री-ट्रैपमेमोरेंड के विषय पर भी पदाधिकारियों व साक्ष्यों का हस्ताक्षर प्रमाणित नहीं होने की बात कही गयी. धावा दल की ओर से जबरन पकड़कर गाड़ी में बैठाने व उनकी जेब में चार हजार रुपये डाल देने की बात कही गयी. लेकिन, इन आरोपों से संबंधित कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया.

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