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पटना में फंसी रहती है फाइल, भागलपुर में फंसे रहते लोग

पटना में फंसी रहती है फाइल, भागलपुर में फंसे रहते लोग-पुल नहीं बनने से फंस रहा ट्रक, लग रहा जाम और टूट रही करोड़ों की लागत से बनी सड़कें संवाददाता, भागलपुरपुल निर्माण से लेकर इसके रखरखाव कार्य को लेकर पटना में फाइलें फंसी रहती है, जिससे न तो समय पर पुल बनता है और न […]

पटना में फंसी रहती है फाइल, भागलपुर में फंसे रहते लोग-पुल नहीं बनने से फंस रहा ट्रक, लग रहा जाम और टूट रही करोड़ों की लागत से बनी सड़कें संवाददाता, भागलपुरपुल निर्माण से लेकर इसके रखरखाव कार्य को लेकर पटना में फाइलें फंसी रहती है, जिससे न तो समय पर पुल बनता है और न ही निर्मित पुलों का रखरखाव होता है. दोनों स्थिति में खामियाजा शहर के लोगों को भुगतना पड़ रहा है. पुल का निर्माण या रखरखाव कार्य नहीं होने से शहर में भारी वाहन घंटों फंसे रहते हैं, जिससे अक्सर जाम लगता है. ऐसी स्थिति में करोड़ों की लागत से बनी सड़कें टूट रही हैं. इसका ताजा उदाहरण जर्जर विक्रमशिला सेतु है. इसके मेंटनेंस के लिए कई बार मुख्यालय को प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन वहां से स्वीकृति नहीं मिलने के कारण पुल की मरम्मत का काम अटका है. यही हाल भैना और चंपा पुल का है. टेंडर फाइनल हो चुका है. मगर, मुख्यालय से स्वीकृति नहीं मिल सकी है. पटना में फाइल फंसा है. स्वीकृति के बिना रखरखाव कार्य भी संभव नहीं होगा. यही हाल भोलानाथ पुल पर बनने फ्लाई ओवर ब्रिज का है. वर्ष 2009 में योजना को स्वीकृति मिली है. पहली बार पटना में फाइल फंसा, तो पुल नहीं बन सका और फिर से डीपीआर भेजा है, तो पटना में पड़ा है. विक्रमशिला सेतु : डीपीआर को मिले मंजूरी, तो 15 करोड़ से होगा रखरखाव विक्रमशिला सेतु के रखरखाव को लेकर पुल निर्माण निगम कार्य प्रमंडल, भागलपुर ने 15 करोड़ रुपये का प्रस्ताव पर पथ निर्माण विभाग को भेजा है. अगर डीपीआर को मंजूरी मिले, तो रखरखाव कार्य संभव हो सकेगा. डीपीआर जुलाई में ही मुख्यालय भेजा गया, लेकिन अब तक फाइल पर कोई विचार विमर्श नहीं हो सका है. स्थिति यह है कि पांच माह बाद भी पुल निर्माण निगम, भागलपुर डीपीआर की स्वीकृति स्वीकृति का इंतजार कर रहा है.वर्तमान स्थिति : भारी वाहनों के दबाव से जर्जर हो रहा पुल भारी वाहनों के दबाव से पुल की सड़क धंसती जा रही है. ज्वाइंट का धीरे-धीरे गैप भी बढ़ता जा रहा है. यह स्थिति बॉल बेयरिंग में खराबी आने और शॉकर बैठ जाने से बनी है. यही कारण है कि पुल का स्लैब एक-दूसरे के पोजीशन में नहीं है. नियमित देखरेख के अभाव में पुल काफी जर्जर हो चुका है. ये खामियां पटना से आयी जांच टीम पकड़ी है और इसका जांच रिपोर्ट तैयार का पुल निर्माण को सौंपा है. मालूम हो कि चार साल के अंदर चार बार पुल की जांच करायी गयी, जिसमें हर बार बॉल बेयरिंग और शॉकर में खराबी की बात उजागर हुई है. उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम, लखनऊ की ओर से पुल का निर्माण कराया गया है. भोलानाथ फ्लाई ओवर ब्रिज : मुख्यालय में अटकी है फाइल भोलानाथ फ्लाइ ओवर ब्रिज निर्माण को लेकर रेलवे से एनओसी मिल चुका है. पुल निर्माण निगम और रेलवे के इंजीनियर का संयुक्त निरीक्षण भी हो गया है. इसके बावजूद पथ निर्माण विभाग के मुख्यालय में फ्लाई ओवर ब्रिज के निर्माण की फाइल अटकी है. छह साल पहले भी फ्लाई ओवर ब्रिज के निर्माण काे लेकर पहल हुई थी, लेकिन मुख्यालय में मामला ऐसा अटका कि ब्रिज निर्माण का मुद्दा ही गुम हो गया. इस बार एस्टिमेट को रिवाइज कर नये रेट पर डीपीआर स्वीकृति के लिए भेजा गया है, लेकिन साल भर से ज्यादा समय बीतने के बावजूद डीपीआर को स्वीकृति नहीं मिली है. अगर डीपीआर मंजूर कर लिया जाये, तो 64 करोड़ की लागत से फ्लाई ओवर ब्रिज का निर्माण हो सकेगा. शहर वासियों को जाम की चिंता हर तक दूर हो जायेगी. भैना और चंपा पुल : पटना की कंपनी करायेगी निर्माण भैना और चंपा पुल का निर्माण पटना की दयाल हाइटेक कंपनी करायेगी. इसके लिए वित्तीय बिड फाइल को स्वीकृति के लिए केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय भेजा गया है. मगर अबतक फाइल पर मंत्री का हस्ताक्षर नहीं हो सका है, जिससे दोनों पुल के निर्माण का रास्ता साफ नहीं हो सका है. अगर फाइल पर मंत्री का हस्ताक्षर हो जाये, तो उक्त कंपनी के नाम वर्क ऑर्डर जारी हो जायेगा. इसके साथ ही दोनों अर्धनिर्मित पुल का निर्माण एक साथ शुरू हो सकेगा. दोनों पुल के निर्माण पर लगभग 18 करोड़ रुपये तक लागत आयेगी. मालूम हो कि वर्ष 2009 में कार्य योजना बनी थी और निर्माण का कार्य के दौरान दोनों पुल का एक-एक पाया झुक गया और काम बंद हो गया था. अर्धनिर्मित चंपा और भैना पुल को पूरा करने में अब डेढ़ गुणा ज्यादा राशि खर्च होंगे. वर्ष 2009 में पहली बार योजना बनी थी. चंपा पुल के लिए करीब 11.79 करोड़ रुपये, तो भैना पुल के लिए 11.61 करोड़ रुपये प्राक्कलन में शामिल किया गया था. तय समय पर दोनों पुल बनना शुरू हुआ. मगर, दोनों पुल का एक-एक पाया झुक गया और वर्ष 2010 के बाद से पुल बनना बंद हो गया. अर्धनिर्मित पुल को पूरा करने की योजना बनी और लगातार पांच बार टेंडर निकाला गया. इसके बाद भी सफलता नहीं मिल सकी थी. पुल नहीं रहने से इस होकर भारी वाहनों का आवागमन बंद है. डीपीआर पथ निर्माण विभाग को भेजा गया है. पथ निर्माण विभाग से अबतक किसी तरह का कोई निर्देश नहीं मिला है. अगर मिला, तो रखरखाव कार्य कराया जायेगा. अशोक कुमार वर्मा डिप्टी चीफ इंजीनियर (साउथ बिहार)पुल निर्माण निगम, पटना

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