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भारत की भाषाओं में संसाधन का अभाव

भागलपुर: तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के मैथिली विभाग में भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर व विश्वविद्यालय मैथिली विभाग की ओर से एलडीसीआइएल द्वारा तीसरे दिन बुधवार को मूल भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम कार्यशाला में भाषा विज्ञान के विभिन्न विषयों पर विद्वानों ने व्याख्यान दिया. एलडीसीआइएल के प्रतिनिधि डॉ सत्येंद्र अवस्थी ने कहा कि भारत की बहुभाषिक प्रदेशों में […]

भागलपुर: तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के मैथिली विभाग में भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर व विश्वविद्यालय मैथिली विभाग की ओर से एलडीसीआइएल द्वारा तीसरे दिन बुधवार को मूल भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम कार्यशाला में भाषा विज्ञान के विभिन्न विषयों पर विद्वानों ने व्याख्यान दिया. एलडीसीआइएल के प्रतिनिधि डॉ सत्येंद्र अवस्थी ने कहा कि भारत की बहुभाषिक प्रदेशों में अनेकों भाषाओं को लगभग 11 लिपियों में लिखा जाता है. बहुभाषी देश होने के कारण यह आकर्षक लगता है, लेकिन दूसरी ओर यह भारतीय भाषाओं के संचार, डिजिटलीकरण व तकनीक विकास में बाधक है.

डॉ अवस्थी ने कहा कि चूंकि प्राकृतिक भाषा प्रणाली के लिखित रूप से संबंधित है, इसलिए भारतीय लिपियों की विविधता एक चुनौती है. कुछ भारतीय भाषाओं में यह भी स्पष्ट नहीं है कि किसे मानक रूप माना जाये. भारतीय भाषाओं की महान व्याकरणिक परंपरा (पाणिनी का अष्टाध्यायी दुनिया का सबसे पुराना व्याकरण माना जाता है) के बावजूद अभी भी ये यूरोपीय भाषाओं से पीछे हैं. इसका कारण यह है कि भारतीय भाषाओं में अपर्याप्त संसाधन हैं. प्राकृतिक भाषा प्रणाली के लिए संगणनात्मक संसाधन (कंप्यूटेश्नल रिसोर्सेस) व सार्वजनिक स्नेत वाले उपकरणों (ओपेन सोर्स टूल्स) का अभाव है.

भारत जैसे विविध भाषाओं वाले देश के परिदृश्य में जहां लिपियों की विविधता व संसाधन का अभाव है, वहां ट्रांसलिटरेशन विशेष रूप से उपयोगी साबित होता है. प्राकृतिक भाषा संसाधन प्रणाली में ये प्रणालियां एकभाषिक अवरोध पैदा करती है, जिसे दूर करने के लिए लिप्यांतर का प्रयोग करते हैं. इन प्रयोगों में द्वितीय भाषा शिक्षण व यांत्रिक अनुवाद किया जा रहा है. इसे संपादित करने के लिए एलडीसीआइएल ने एक उपकरण तैयार किया है, जिसके माध्यम से कुछ ही मिनटों में हजारों शब्दों को भारत के किसी भी लिपि में बदल सकता है.

डॉ सरोज कुमार राय ने अर्थ विज्ञान की परिभाषा, अर्थ का विेषण, उसके महत्व, भेद-प्रभेद व संप्रेषणीयता पर प्रकाश डाला. डॉ प्रेमशंकर सिंह ने भाषा के संदर्भ में ध्वनि विज्ञान की उपयोगिता के पक्ष को रखते हुए परिभाषा, वर्गीकरण, नियम आदि से स्वर व व्यंजन में विभाजित किया.

सीआइआइएल, मैसूर के प्रतिनिधि डॉ अरुण कुमार सिंह ने मोरफोजिकल एनेलाइजर के माध्यम से मशीनी ट्रांसलेशन के लिए कंप्यूटिशनल भाषा विज्ञान के क्षेत्र में एक नियम आधारित करने की बात कही. मैथिली विभाग के अध्यक्ष डॉ केष्कर ठाकुर ने भी संबोधित किया. कार्यक्रम को आजेय शर्मा, दिनेश कुमार मिश्र, डॉ नंदराज मितई, डॉ रामसेवक सिंह, डॉ पंकज कुमार झा, डॉ काशीनाथ झा, डॉ ध्रुव ज्योति, डॉ प्रमोद कुमार पांडेय, डॉ शिव प्रसाद यादव, अनिता मिश्र, डॉ अजय कुमार झा, रंजना स्वीटी, खुशबू लोली, निक्की प्रियदर्शिनी, श्वेता, पंकज, राहुल, फुरकान, नरेंद्र प्रसाद आदि ने संबोधित किया.

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