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हजरत हुसैन की याद में आंखों से निकलते आंसू

हजरत हुसैन की याद में आंखों से निकलते आंसू फोटो फाइल से लगालेंगे, मौलाना गुलाम सिमनानी अशरफी की – मुहर्रम की दसवीं तारीख कई मायनों में अहम- सच्चाई व हक की लड़ाई के लिए हजरत हुसैन ने अपनी और रिश्तेदार व साथियों की दी कुरबानी संवाददाता, भागलपुरमुहर्रम की दसवीं तारीख में हजरत हुसैन और उनकी […]

हजरत हुसैन की याद में आंखों से निकलते आंसू फोटो फाइल से लगालेंगे, मौलाना गुलाम सिमनानी अशरफी की – मुहर्रम की दसवीं तारीख कई मायनों में अहम- सच्चाई व हक की लड़ाई के लिए हजरत हुसैन ने अपनी और रिश्तेदार व साथियों की दी कुरबानी संवाददाता, भागलपुरमुहर्रम की दसवीं तारीख में हजरत हुसैन और उनकी साथियों की शहादत को याद कर आंखों से आंसू निकल आते हैं. इसलाम, सच्चाई व हक की खातिर हजरत हुसैन ने 72 लोगों के साथ कुरबानी अल्लाह के राह में दी. मुहर्रम की दसवीं तारीख कई मायनों में इसलाम धर्म में महत्वपूर्ण माने जाते हैं. दसवीं तारीख को यौम-ए- अशुरा भी कहा जाता है. उक्त बातें मौलाना गुलाम सिमनानी अशरफी ने कही. उन्होंने कहा कि मुहर्रम की दसवीं तारीख को ही हजरत याकूब अलैह सलाम की आंख की रोशनी लौटी. हजरत यूसुफ अलैह को उसी दिन कुएं से निकाला गया. फिरऔन की जुल्म से हजरत मुशा अलैह सलाम की कौम को निजात मिली थी. उसी दिन हजरत ईसा अलैह सलाम पैदा हुए. उसी दिन आसमान पर उठाये गये. अल्लाह को यह तारीख इतना पसंद थी कि हजरत इमाम हुसैन की शहादत का दिन मुहर्रम की दसवीं तारीख चुना गया. मुहर्रम यानी सच्चाई, हक व इसलाम से जुड़ी लड़ाई थी. यजीद के शासन काल में बुराई चरम पर थी. इसलाम को बचाने व हक की लड़ाई में हजरत इमाम हुसैन ने अपनी और 72 साथियों की कुरबानी देकर दुनिया के लिए एक मिसाल कायम किया है. मुहर्रम की सातवीं तारीख से यजीद और उसकी फौज ने हजरत इमाम व उनके समर्थकों के लिए पानी बंद कर दिया. यहां तक की छह माह के असगर को भी पानी के लिए यजीद की फौज ने तीर से छलनी कर दिया. फिर भी हजरत इमाम ने सच्चाई व हक के रास्ते को नहीं छोड़ा. अल्लाह के राह में अपनी शहादत पेश की.

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