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कतरा भर रोशनी को तरस रहीं बूढ़ी आंखें
विपिन नागवंशी भागलपुर : जिनकी अंगुलियों को थामकर बचपन में जिंदगी के मेले देखे थे. उम्र के आखिरी पड़ाव में जब उन्हीं अंगुलियों को सहारे की जरूरत होती है, तो क्यों उनके चिराग उनकी सूनी आंखों काे कतरा भर रोशनी देने से कतराते हैं. जब थके तन व प्यासे मन को उनके खून के प्यार, […]
विपिन नागवंशी
भागलपुर : जिनकी अंगुलियों को थामकर बचपन में जिंदगी के मेले देखे थे. उम्र के आखिरी पड़ाव में जब उन्हीं अंगुलियों को सहारे की जरूरत होती है, तो क्यों उनके चिराग उनकी सूनी आंखों काे कतरा भर रोशनी देने से कतराते हैं. जब थके तन व प्यासे मन को उनके खून के प्यार, अपनापन व स्नेह के आलंबन की जरूरत होती है तब क्यों इनके जिगर के टुकड़े अपनी नजरें फेर लेते हैं. ये चंद सवाल सहारा आश्रम भागलपुर में रह रही चंद थकी जिंदगियों के हैं, जिसका जबाब किसी के पास नहीं है. इन्हें रहने-खाने से लेकर चिकित्सा की सुविधाएं मिल रही हैं, इसके बावजूद इनकी सूनी थकती जिंदगी को अपनों के प्यार व अपनेपन की बारिश का इंतजार है.
शहर के व्यस्तम व भीड़भाड़ वाले चौराहे में से एक तिलकामांझी चौक से चंद कदमों की दूरी पर सहारा वृद्धाश्रम भागलपुर है. वर्तमान में यहां किराये के चंद कमरे में 19 बूढ़ी जिंदगी अपने दिन काट रही है.
इनमें से आठ महिला व 11 पुरुष हैं. यहां रह रहीं नाथनगर की भतौड़िया निवासी 80 वर्षीया मंती देवी के पास कहने को दो बेटे-पुत्रवधू व पोते-पोतियों से भरापूरा परिवार है, लेकिन संस्था के लोगों ने इनको गांव के बाहर स्थित प्राथमिक विद्यालय के पास एक झोंपड़ी में जिस हालत में पाया था, उसे जानकर हर माता-पिता काे नि:संतान रहने की चाहत जगने लगेगी. श्रीमती मंती के पास जब संस्था के लोग गये, तो वह अकेली थीं और दूसरों के दिये भोजन से अपना पेट भरती थीं. इतने के बावजूद मंती को अपने बेटों से कोई गिला-शिकवा नहीं है और कहती हैं कि बेचारे गरीब हैं, इसलिए उनकी परवरिश नहीं कर पाये.
नाथनगर के ही नूरपुर, हरिजन टोला निवासी 70 वर्षीय किशुनदास को उनके अपनों ने उस वक्त उन्हें तनहां छोड़ दिया था जब उनकी हमसफर उनको छोड़ गयी. बकौल किशुनदास उनका एक बेटा बाहर कमाने गया है और गांव में उनकी बहू और पोते रहते हैं. वृद्धाश्रम में रहने की बाबत किशुनदास कहते हैं कि बेटा मजबूर है, इसलिए उसके परिवार के पास नहीं रह रहे हैं, यह बताते वक्त उनकी आंखों से निकले चंद कतरे उनके बेटे की मजबूरी के कुछ और मायने बयां कर रहे थे. भागलपुर जिले के तौफिल दियारा गांव निवासी 71 वर्षीय लक्ष्मन मंडल बताते हैं कि उनकी अर्धांगिनी इस दुनियां में नहीं है. लक्ष्मन बताते हैं कि इस बुढ़ापे में तो वही एक अपनी रही, लेकिन किस्मत को यह भी मंजूर नहीं था, तभी तो ऊपरवाले ने उसे छीन लिया. बेटे व पोते के बाबत उन्होंने बताया कि उनके दो बेटे हैं. एक बाहर कमाता है और दूसरा गांव पर रहता है.
लेकिन उनको जरूरत नहीं, इसलिए वृद्धाश्रम में ही रहते हैं. बरहपुरा, इशाकचक की 65 वर्षीया माहेलकां को दो बेटे थे. एक बेटा एक बार घर से भागा और मुंबई में शादी करके वहीं रह गया. दूसरा बेटा गांव पर रहकर अपने बीबी व तीन बच्चों को पाल रहा है. पति काे उपरवाले ने छीना तो तनहा और बेबस माहेलकां का हाथ उनके बेटे ने भी छोड़ दिया. बरहपुरा निवासी 64 वर्षीया बीबी अकीला की जिंदगी में बिछोह व तन्हाईयों ने एक बार जो डेरा डाला तो आज तक नहीं गयी.
शादी के कुछ दिनाें बाद बीबी अकीला के पति मकबूल का इंतकाल मार्ग दुर्घटना में हो गया तो इन्हें हमसफर के खोने का इतना बड़ा सदमा लगा कि विक्षिप्त हो गयी. आज की तारीख में इनकी जिंदगी में कोई अपना नहीं है.
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