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वन विभाग के नाक के नीचे मर रही डॉल्फिन, 65 किलो मीटर सेंचुरी का क्या?

– एक ही स्थान पर लगातार डॉल्फिन की हो रही मौत, सवालों के घेरे में विभाग – साहेबगंज-राजमहल से मछुआरों का बड़ा गैंग देर रात गंगा में डालता है बड़ा जाल – 25 फरवरी को भी बरारी सीढ़ी घाट के पास मिला था मृत डॉल्फिन का शव वरीय संवाददाता भागलपुर : बरारी में रविवार को […]

– एक ही स्थान पर लगातार डॉल्फिन की हो रही मौत, सवालों के घेरे में विभाग – साहेबगंज-राजमहल से मछुआरों का बड़ा गैंग देर रात गंगा में डालता है बड़ा जाल – 25 फरवरी को भी बरारी सीढ़ी घाट के पास मिला था मृत डॉल्फिन का शव वरीय संवाददाता भागलपुर : बरारी में रविवार को डॉल्फिन के शव मिलने पर डॉल्फिन विशेषज्ञ डॉ प्रोफेसर सुनील चौधरी कहते हैं कि जब वन विभाग के नाक के नीचे डॉल्फिन मर रही है, तो 65 किलो मीटर के अभयारण्य का क्या हाल होगा. उन्होंने बताया कि वन विभाग और मत्स्य विभाग के बीच समन्वय का भी अभाव है. मत्स्य विभाग अगर यह कहता है कि गंगा में जाल डालना वैध है तो गलत है. किसी भी स्थिति में सेंचुरी के आसपास स्थित डॉल्फिन के आवास में छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता है. वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत मछली पकड़ना बाधित है. हालांकि इसमें थोड़ा संशोधन कर आजीविका के लिए मछली पकड़ने के लिए छोटे जाल डाले जा सकते हैं. लेकिन यहां साहेबगंज-राजमहल से मछली के व्यापार करने वाले गरीब मजदूरों को नाव से लाते हैं और मछली के लिए बड़े जाल डालते हैं. उसमें ऐसे जाल रहते हैं जो छोटी-बड़ी किसी भी मछली को पकड़ लेते हैं. डॉ चौधरी के अनुसार डॉल्फिन को जानबूझ कर नहीं मारा जा रहा है, पर वह जाल में फंस कर लगातार मर रही है. यह गंभीर बात है. जबकि इस वर्ष मछली भी गंगा में बहुत कम है. इसमें डॉल्फिन के भोजन पर भी असर पड़ रहा है.

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