भागलपुर.राष्ट्र के विकास में शिक्षा की अहम भूमिका होती है. अशिक्षित समाज में विकास की गुंजाइश न्यूनतम रह जाती है. स्कूल बना देने और शिक्षकों की ड्यूटी लगा देने भर से हर समाज शिक्षित नहीं हो जाता. खासकर नक्सलियों के गढ़ में तो बिल्कुल ही नहीं. डर से सरकारी शिक्षक स्कूल नहीं आते. ऐसे में जॉन सोरेन व उनकी पत्नी दर्जनों गांव के बच्चों को एक ऐसी जगह शिक्षित कर रहे हैं, जो नक्सलियों की पौधशाला कही जाती है. बांका जिले के बेलहर अंतर्गत बगधसवा गांव की 200 परिवारों की आबादी में सर्वाधिक आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोग हैं. जॉन सोरेन नि:स्वार्थ भाव से स्कूल में आधा दर्जन गांव के करीब 200 बच्चों को पढ़ाते हैं. इसके अलावे अपने घर पर बच्चों को मामूली फीस लेकर 60 से अधिक बच्चों को ट्यूशन देते हैं. शिक्षा दान के इस अभियान में जॉन की पत्नी मोनिका सोरेन भी सहयोग करती हैं. जॉन बीए पास हैं, जबकि उनकी पत्नी इंटर पास. उनसे शिक्षा लेने में कई नक्सलियों के भी बच्चे पीछे नहीं हैं. लाखों खर्च के बाद भी सरकारी मशीनरी जहां उग्रवाद प्रभावित बगधसवा में पठन-पाठन के कार्य में फिसड्डी साबित हो रही है, वहीं सोरेन दंपति का एक प्रयास रंग ला रहा है. उनके प्रयास पर तत्कालीन आइजी जितेंद्र कुमार से सम्मान पा चुके जॉन से प्रभावित होकर बेलहर के तत्कालीन थानाध्यक्ष मनोरंजन भारती भी सहभागी हुए थे. जॉन से समाज को इसलिए भी प्रेरणा लेनी चाहिए कि जहां बिहार-झारखंड के हार्डकोर इनामी नक्सली बीरबल मुर्मू(फिलवक्त जेल में बंद) समेत गांव के 20 से ज्यादा युवक सक्रिय नक्सली हों, सोरेन दंपति वहीं शिक्षित समाज की परिकल्पना साकार करने में लगे हैं.
नक्सलियों की पौधशाला में शिक्षित समाज का निर्माण
भागलपुर.राष्ट्र के विकास में शिक्षा की अहम भूमिका होती है. अशिक्षित समाज में विकास की गुंजाइश न्यूनतम रह जाती है. स्कूल बना देने और शिक्षकों की ड्यूटी लगा देने भर से हर समाज शिक्षित नहीं हो जाता. खासकर नक्सलियों के गढ़ में तो बिल्कुल ही नहीं. डर से सरकारी शिक्षक स्कूल नहीं आते. ऐसे में […]
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