आइसी कुमार
पूर्व आइएएस
भागलपुर के सृजन घोटाले का सूत्रधार बैंक, निचले स्तर के अधिकारी और खुद संस्था रही है. जब निचले स्तर के कर्मचारी मिल कर सरकारी राशि की हेराफेरी करते हैं तो इनकी अधिकतर बातें ऊपरी अधिकारियों को देर से पता चलती है. और जब ऊपरी अधिकारियों का दल भी इसमें शामिल हो जाता है तो घोटाले का दायरा बढ़ जाता है. गांधी जी कहा करते थे, लालच की कोई सीमा नहीं होती .
चारा घोटाले का मास्टरमाइंड जिस प्रकार एसबी सिन्हा था और उसके साथ उसकी पूरी मंडली थी. वह जो चाहता था उसी के मुताबिक अधिकारियों की पोस्टिंग भी होती थी. वह पूरी लिमिटेड कंपनी थी, इस बार अनलिमिटेड कंपनी है इसलिए दायरा भी अनलिमिटेड होता जा रहा है.
मुझे याद है राज्य में जब बिंदेश्वरी दूबे की सरकार थी. उस समय मुख्यमंत्री को अफसरों ने बताया कि राज्य सरकार का पैसा यूपी के बैंकों में रखा जा रहा है. मुख्यमंत्री ने तत्काल इस पर कार्रवाई का निर्देश दिया व सार्वजनिक तौर पर कहा कि बिहार का पैसा किसी दूसरे राज्य के बैंक में नहीं रखा जायेगा.
उन्होंने को आपरेटटिव बैंक में पैसा रखे जाने का आदेश दिया. राष्ट्रीय कृत बैंकों में सरकारी पैसा रखे जाने का सर्कुलर है, बाद में कोआपरेटिव बैंकों में भी रखा जाने लगा. यहां तक तो ठीक था, लेकिन सृजन जैसी गैर सरकारी संस्था में पैसा रखा जाना यह कानूनी तौर पर ठीक नहीं है.
एक बार 1940-41 के आसपास ऐसा ही वाकया हुआ था, उन दिनों एक नामकुम घोटाला से चर्चित एक मामले में तत्कालीन अधिकारी मित्रा चर्चा में आये थे. वे बजट राशि में अंत में शून्य बढा देते थे. इसे राशि हजार से दस हजार और लाख में बदल जाती थी. इसी प्रकार सृजन घोटाला के तौर-तरीके को देखने से साफ होता है कि संस्था के लोग अधिक चालाक थे. उन्होंने बड़ी ही चालाकी से सरकारी पैसा को अपने खाते में डलवाया और उसका अपने तरीके से उपयोग किया.