भागलपुर: छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर हुए हमले में जमुई, बांका और इससे सटे झारखंड के इलाके में सक्रिय नक्सली व हार्डकोर कैडर भी शामिल हो सकते हैं. ऐसी आशंका खुफिया विभाग ने जतायी है. पुलिस व खुफिया विभाग के अधिकारी इस बात पर नजर रख रहे हैं कि हाल के दिनों में कौन-कौन नक्सली कमांडर क्षेत्र से बाहर हैं.
कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर जिस अंदाज में हमला हुआ इसी तरह इस इलाके में सक्रिय नक्सली गुट भी घटनाओं को अंजाम देते हैं. इस क्षेत्र में सक्रिय नक्सलियों के संबंध नेपाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा व आंध्र प्रदेश के नक्सलियों के साथ है. इनकी मंशा इस क्षेत्र को रेड कोरिडोर में बदलने की है.
पूर्व बिहार का बांका, जमुई और इससे सटे मुंगेर और लखीसराय जिले का क्षेत्र नक्सलियों के प्रभाव क्षेत्र में आता है. पिछले डेढ़ दशक के दौरान इस क्षेत्र में नक्सलियों ने अपनी पूरी पैठ जमा ली. यहां की भौगोलिक स्थिति(पहाड़ और जंगल) ने इसमें पूरा सहयोग किया. गाहे- बगाहे नक्सली घटना को अंजाम देते रहते थे. लेकिन 2003 में खैरा प्रखंड के रूपा वेल गांव में पुलिस काफिले पर हमला कर नक्सलियों ने अपनी मजबूत पकड़ का एहसास कराया. उसके बाद भीमबांध में बारुदी सुरंग की मदद से मुंगेर के तत्कालीन एसपी केसी सुरेंद्र बाबू व उनके सुरक्षाकर्मियों को उड़ा दिया. चकाई से सटे भेलवा घाटी में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी के पुत्र सहित दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था.
खुफिया सूत्रों के अनुसार मुख्यालय के निर्देश पर झारखंड की सीमा से सटे इलाके पर विशेष नजर रखी जा रही है. आशंका जतायी जा रही है कि कहीं छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले में इस क्षेत्र में सक्रिय नक्सली कमांडर व हार्डकोर कैडर तो शामिल नहीं हैं. इस क्षेत्र में सक्रिय कई नक्सली कमांडर काफिले पर हमला करने की रणनीति के जानकार बताये जाते हैं. जमुई और बांका जिले के खैरा, चकाई, झाझा, सोनो, चानन, कटोरिया आदि की सीमा झारखंड से मिलती है. जंगली और पहाड़ी इलाका होने की वजह से नक्सलियों को आने-जाने में सहूलियत होती है.
खुफिया विभाग ने यह भी आशंका जतायी है कि जमुई और बांका जिले में सक्रिय नक्सली संगठन किसी घटना को अंजाम देकर एक बार फिर से अपनी मजबूत स्थिति का अहसास करा सकते हैं. हाल के महीनों में तेज तर्रार पुलिस अधिकारियों की वजह से नक्सली अपनी गतिविधि खुल कर नहीं चला पा रहे हैं. भीमबांध और खैरा के जंगली इलाका नक्सलियों का महत्वपूर्ण ठिकाना है. हाल के महीनों में गोड्डा व साहिबगंज की सीमा से सटे पीरपैंती के क्षेत्र में भी नक्सली गतिविधि शुरू है. वर्षो पहले इस क्षेत्र में शांतिपाल गुट का प्रभाव था.