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धान की फसल में फफूंद का प्रकोप

चिंता. उमस भरी गरमी से फैल रही बीमारी, खेतों में सूखने लगी फसल उमस भरी गरमी से जहां लोगों को जीना मुहाल हो रहा है. वहीं जिले में धान की फसलों में फफूंद के प्रकोप बढ़ने से किसान परेशान हैं. इस बीमारी से धान की फसल खेत में ही सूखने लगी हैं. बांका : उमस […]

चिंता. उमस भरी गरमी से फैल रही बीमारी, खेतों में सूखने लगी फसल

उमस भरी गरमी से जहां लोगों को जीना मुहाल हो रहा है. वहीं जिले में धान की फसलों में फफूंद के प्रकोप बढ़ने से किसान परेशान हैं. इस बीमारी से धान की फसल खेत में ही सूखने लगी हैं.
बांका : उमस भरी गरमी से जिले भर में लगे धान की फसल में आये दिन तरह-तरह की बीमारियां देखने को मिल रही है. जिससे किसान परेशान है. क्षेत्र के कई किसानों का धान फसल बीमारी के कारण सुखने लगे है. यह बीमारी जड़ से लेकर निकल रहे दानों में फैली हुई है. यह रोग फफूंद जनित है. पौधों की बढ़वार कम कर देते है. दाने भी प्रभावित कर देते है. जिससे उनकी अंकुरण क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है. पत्तियों पर तिल के आकार के भूरे रंग के काले धब्बें बन जाते है.
ये धब्बें आकार एवं माप मे बहुत छोटी बिंदी से लेकर गोल आकार का होता है. धब्बों के चारो ओर हल्की पीली आभा बनती है. पत्तियों पर ये पूरी तरह से बिखरे होते है. धब्बों के बीच का हिस्सा उजला या बैंगनी रंग की हो जाती है. बड़े धब्बों के किनारे गहरे भूरे रंग के हो जाते है. बीच का भाग पीलापन लिए, गेंदा सफेद या घूसर रंग का हो जाता है. उग्रावस्था मे पौधों के नीचे से ऊपर पत्तियों के अधिकांश भाग धब्बों से भर जाते है. ये धब्बें आपस मे मिलकर बड़े हो जाते है और पत्तियों को सुखाने लगता है.
इस रोग का प्रकोप उपराऊ धान मे कम उर्वरता वाले क्षेत्रों मे मई-सितंबर माह के बीच अधिक दिखाई देते है. यह रोग पिरीकुलेरिया ओराइजी नामक कवक द्वारा फैलता है. धान का यह ब्लास्ट रोग अत्यंत विनाशकारी होता है. पत्तियों और उनके निचले भागों पर छोटे और नीले धब्बें बनते है, और बाद मे आकार मे बढ़कर ये धब्बें नाव की तरह हो जाते है. इस रोग का प्रकोप सुगंधित धान मे अधिक देखने को मिल रहे है.
पिरीकुलेरिया ओराइजी नामक जीवाणु से फैलता है रोग
सर्वप्रथम पत्तियों पर दिखाई देते
हैं बीमारी के लक्षण
रोग के लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों पर दिखाई देते है. लेकिन इसका आक्रमण पर्णच्छद, पश्पक्रम, गांठो तथा दानों के छिलको पर भी होता है. पत्ती ब्लास्ट, पर्वसंधि ब्लास्ट और गर्दन ब्लास्ट के रूप मे इस रोग को देखते है. यह फफूंदजनित है. फफूंद पौधे के पत्तियों, गांठो एवं बालियों के आधार को भी प्रभावित करता है.
धब्बों के बीच का भाग राख के रंग का तथा किनारें कत्थई रंग के घेरे की तरह होते है. जो बढ़कर कई सेन्टीमीटर बड़ा हो जाता है. जब यह रोग उग्र होता है तो बाली के आधार भी रोगग्रस्त हो जाते है. जिससे बाली कमजोर होकर वही से टूट कर गिर जाती है. अनुकूल वातावरण मे कई क्षतस्थल बढ़कर आपस मे मिल जाते है. जिसके फलस्वरूप पत्तियां झूलसकर सूख जाती है.
धान का पत्ता सफेद होकर सूख रहा हो, तो यूरिया का छिड़काव न करें
इस संबंध में कृषि वैज्ञानिक रघुवर साहू ने बताया कि अभी के मौसम में धान की सफल में फफूंद रोग ज्यादा हो रहे है. यह रोग अधिक उन खेतों में पाये जाते है जिस खेत में यूरिया की मात्रा अधिक है.
अगर किसी भी खेत में इस तरह की बीमारी का लक्षण दिखाई पड़े तो किसान को यूरिया का छिड़काव नहीं करना चाहिए. अगर धान का पत्ता सफेद होकर सूख रहा है या धान का पौधा गल कर गिर रहा है तो 1 एमएल डाई मेठोएट दवा 1 लीटर पानी में मिला का धान के पत्ते पर छिड़काव करे. अगर यह दवाई किसानों को नहीं मिले तो 2 एमएल मोनोक्रोटो फास्ट दवा 1 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करने से यह बीमारी खत्म हो सकता है.

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