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विलुप्त हो रहे मंदार के ध्वंसावशेष

खतरे में धरोहर. सुरक्षा के नहीं हैं पुख्ता इंतजाम, तस्करों की टेढ़ी है नजर मंदार के पौराणिक ध्वंसावशेषों को तस्करों की नजर लग गयी है. पौराणिक मूर्तियां धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं. इसकी चोरी की आशंका है. मंदार के पौराणिक धरोहरों की संरक्षा के लिए उपाय नहीं हो रहे. जो स्थान हमारा गौरव है, हमारी […]

खतरे में धरोहर. सुरक्षा के नहीं हैं पुख्ता इंतजाम, तस्करों की टेढ़ी है नजर

मंदार के पौराणिक ध्वंसावशेषों को तस्करों की नजर लग गयी है. पौराणिक मूर्तियां धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं. इसकी चोरी की आशंका है. मंदार के पौराणिक धरोहरों की संरक्षा के लिए उपाय नहीं हो रहे. जो स्थान हमारा गौरव है, हमारी पहचान है, उसकी उपेक्षा कतई नहीं की जानी चाहिए.
बांका :जिले में स्थित पुराण वर्णित मंदार पर्वत को लेकर अक्सर बड़ी-बड़ी बातें होती रहती हैं. कभी इसे राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा दिलाने तो कभी इसे राष्ट्रीय स्तर के पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की बात होती है. हालांकि ये बातें अब तक बातों तक ही सीमित रही है. पिछले कुछ वर्षों से मंदार एवं पापहरणी के विकास को लेकर कई बार योजनाएं बनने और बिगड़ने की बातें भी सामने आयी. लेकिन नतीजा अब तक सिफर ही रहा है.
अव्वल तो इन सबसे इतर सरकार और स्थानीय प्रशासन का ध्यान मंदार के पौराणिक ध्वंसावशेषों तक को बचाने और संरक्षित करने तक भी नहीं है. वरना मंदार आज अपने विखंडित ही सही, अनमोल ध्वंसावशेषों के लूटते पिटते जाने की वजह से कंगाल नहीं होता जाता. दरअसल मंदार पर्वत और इसकी तराई में पुराण काल से लेकर मुगल काल तक के दौर के असंख्य पौराणिक और ऐतिहासिक धरोहर अब सचमुच यहां के लिए इतिहास बन गये हैं.
जो बचे हैं वे भी इतिहास बनने के कगार पर है. मंदार व इसकी तराई में आज भी असंख्य बहुमूल्य पौराणिक ध्वंसावशेष मौजूद है. ये यत्र तत्र बिखरे पड़े हैं. ये अवशेष खंडित के अलावा साबूत स्वरूप में भी है. जहां तहां से ऐसे अवशेष रोज निकल भी रहे हैं. मामूली खुदाई में ऐसे अवशेष प्राप्त हो रहे हैं. इन अवशेषों में प्राचीन मूर्तियां, दीपक, उपकरण आदि की आकृतियां शामिल है. इन बहुमूल्य अवशेषों पर अब तस्करों की नजर लग चुकी है.
वे स्थानीय गरीब गुरबों को आर्थिक लालच देकर इन अवशेषों का संग्रह कराकर उनका व्यापार कर रहे हैं. स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार का पर्यटन विभाग इन सबसे बेखबर बना हुआ है. स्थानीय लोग लगभग हर रोज लूट रही इस सांस्कृतिक विरासत के भविष्य को लेकर चिंतित जरूर है. फिर भी ना जानें किस वजह से अब तक खामोश बने हुए है.
मूर्तियों की चोरी की आशंका
सनातन हिंदूओं, जैन व सफा धर्मावलंबियों का प्रमुख तीर्थ है मंदार
पुराण काल में देवताओं और असूरों द्वारा सागर मंथन के उपक्रम का गवाह रहे मंदार पर्वत को इस क्षेत्र में लोक तीर्थ का दर्जा प्राप्त है. मंदार सनातन हिंदू, जैन तथा सफा धर्मावलंबियों के लिए समान रूप से पवित्र तीर्थ स्थल है. मान्यता है कि सागर मंथन में इसी मंदार को मथनी के रूप में इस्तेमाल किया गया था. यहीं मधु नामक कुख्यात दैत्य का मर्दन भगवान विष्णु ने किया था. जैनियों के अनुसार भगवान वासुपूज्य की निर्वाण भूमि मंदार ही है. सफा धर्मियों के आदि गुरु चंदर देव ने यहीं सफा धर्म की शुरूआत की.
अविलंब हों मंदार के धरोहरों की संरक्षा के उपाय
मंदार पर्वत पर आज भी हजारों विखंडित प्राचीन मूर्तियां मौजूद है. इन पौराणिक धरोहरों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है. यह चिंता का विषय है. कहीं न कहीं इन मूर्तियों का अवैध व्यापार चल रहा है. प्रशासन और सरकार को मंदार पर मौजूद पौराणिक धरोहरों, मूर्तियां एवं ध्वंसावशेषों को संरक्षित करने की दिशा में अविलंब कदम उठाना चाहिए.’
मनीष अग्रवाल, सामाजिक कार्यकर्ता , बौंसी
मंदार के पौराणिक अवशेषों की सुरक्षा के हो रहे हैं उपाय
मंदार की विरासत और पौराणिक धरोहरों को सुरक्षित रखने के प्रति प्रशासन व सरकार सजग है. इसके लिए महत्वपूर्ण प्रयास भी किये जा रहे हैं. और इसमें सफलता भी मिली है. वन विभाग भी इन धरोहरों खास कर मूर्तियों एवं ध्वंसावशेषों को संरक्षित करने का की दिशा में पहल कर रहा है. पर्यटन विभाग भी इस पर नजर रखे हुए हैं.
डॉ संजय कुमार, वरीय उप समाहर्ता, बांका

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