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सैनिकों का गढ़ है बांका जिला : कुर्मा, रामचुआ सहित एक दर्जन गांवों के घर-घर में हैं वीर सपूत

बिभांशु, बांका : सौगंध मुझे है मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं रुकने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा… इस पंक्ति का असर बांका जिले के युवाओं पर कुछ खास ही है. इसलिए गांव-गांव फौजी बनने की ललक और मातृभूमि के प्रति जान की बाजी तक लगाने का अभूतपूर्व जज्बा देखते […]

बिभांशु, बांका : सौगंध मुझे है मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं रुकने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा… इस पंक्ति का असर बांका जिले के युवाओं पर कुछ खास ही है. इसलिए गांव-गांव फौजी बनने की ललक और मातृभूमि के प्रति जान की बाजी तक लगाने का अभूतपूर्व जज्बा देखते ही बनता है.
शंभुगंज प्रखंड क्षेत्र के कुर्मा गांव निवासी सह आरमी सुकेत कुमार छुट्टी की अनुमति के बाद घर आने की तैयारी में थे. परंतु भारत-पाक के बीच युद्ध की स्थिति बनता देख उन्होंने घर आने की बजाय जम्मू के राजौरी जाना ही उचित समझा. सुकेत उसी कुर्मा के रहने वाले हैं, जहां घर-घर में फौजी पैदा होते हैं. मौजूदा समय में इस गांव के 250 सौ से अधिक युवा आरमी, सीआरपीएफ, बीएसएफ सहित अन्य अद्धसैनिक बल में सेवा दे रहे हैं. इस गांव में बच्चे पैदा होकर जब होश संभालते हैं, तभी से मातृभूमि की रक्षा के लिए सीमा में जाने के लिए दौड़ शुरू कर देते हैं.
प्रतिदिन यहां के युवा सुबह व शाम सरहद पर जाने के लिए पसीना बहाते हैं. कुर्मा के पास वाला गांव वंशीपुर व रामुचुआ में भी दर्जनों फौजी रहते हैं. जिला मुख्यालय से करीब मजलिशपुर व विशनपुर में भी दो दर्जन से अधिक युवा जम्मू कश्मीर सहित अन्य सरहदी इलाके में तैनात हैं. यानि बांका की सरजमी पर एक समय वीर सपूतों ने अंग्रेजी सेना को मार भगाया था और आज युवा देश की सुरक्षा में जान देने को संकल्पित हैं.
एक ही परिवार के कई सदस्य हैं सैनिक
कुर्मा गांव के दीपक कुमार सिंह, आनंद कुमार व सुकेत कुमार सगे भाई हैं और आज देश की सेना में शामिल होकर मातृभूमि की रक्षा कर रहे हैं. इसी प्रकार कई ऐसे परिवार हैं, जिनके घर से दो से चार सदस्य सेना में भर्ती हैं.
सबसे पहले वतन उसके बाद कोई…
फौजी रितेश सिंह, एकलव्य सिंह, मदन झा, निलेश सिंह, राहुल झा, रुपेश सिंह, कुणाल सिंह, सतीश सिंह, राजन सिंह, कुमार आनंद सिंह, नवजीत सिंह, रोशन सिंह, ज्ञानी सिंह, शुभम सिंह, रॉकी, सुकेत सिंह, दीपक सिंह सहित अन्य फौजियों ने कहा कि सबसे पहले हमारा वतन है, उसके बाद ही घर और प्यार. इसलिए अबकी देश के दुश्मनों का छक्का छुड़ा कर ही दम लेंगे. जब देश की बात आती है, उस समय देशभक्ति के अलावा कुछ नहीं सुझता है.
दादा ने किया अंग्रेजों से मुकाबला, दादी ने दो पोतों को कर दिया देश के हवाले
बेलहर प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत डुब्बा गांव निवासी सह स्वतंत्रता सेनानी अखिलेश्वरी प्रसाद सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन के दरम्यान गोरों की सेना से खूब लोहा लिया. उनकी अद्धांगिनी सत्यवती देवी आज 110 वर्ष की हो गयी हैं, फिर भी देश के प्रति आज भी बूढ़ी हड्डी में वही जज्बा है. पति के देश प्रेम से अभिभूत होकर उन्होंने दो पोते गौतम व प्रीतम सिंह को आरमी में भेज दिया. आज भी वे अपने कर्तव्य पर तैनात हैं. जबकि तीसरा पोता उत्तम भी सेना में जाने के लिए जी-तौड़ मेहनत कर रहे हैं.

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