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नाट्य कला मंच से अब नहीं गरजती है शेरा की बंदूक

दशहरा पूजा के अवसर पर विभिन्न मेला प्रांगण में किया जाता था नाट्य कला का प्रदर्शन अब आर्केष्टा के फूहड़ गीतों पर झूम रहे लोग, मौन धारण किये समाज के बुजुर्ग बांका : पर्व त्योहार का समय अपनी सभ्यता व परंपराओं के साथ जीने का एक अवसर भी है. विधि पूर्वक पूजा-पाठ, मेला जाना, शस्त्र […]

दशहरा पूजा के अवसर पर विभिन्न मेला प्रांगण में किया जाता था नाट्य कला का प्रदर्शन

अब आर्केष्टा के फूहड़ गीतों पर झूम रहे लोग, मौन धारण किये समाज के बुजुर्ग
बांका : पर्व त्योहार का समय अपनी सभ्यता व परंपराओं के साथ जीने का एक अवसर भी है. विधि पूर्वक पूजा-पाठ, मेला जाना, शस्त्र की पूजा, खेत-खलिहान की पूजा सहित कई अन्य परंपराएं बखूबी त्योहार के दौरान समाज में दोहरायी जाती हैं. एक खास परंपरा और भी है, जो अब विलुप्त सी हो गयी है. वह है नाट्य मंचन. अब गाहे-बगाहे मेला प्रांगण में नाट्य मंचन देखने को मिल पाता है. कमोबेश सभी चर्चित व प्रसिद्ध मेला से नाट्य मंचन समाप्त हो चुका है. जानकारों की मानें, तो वर्तमान परिदृश्य में अब एक भी मेला परिसर नहीं है, जहां समाज के कलाकार नाट्य मंचन करते हों.
एक दशक से यह परंपरा विलुप्त होने की दिशा में बढ़ रही है. मौजूदा वक्त में अगर नाट्य मंचन की प्रथा इतिहास के पन्नों में दफन हो जाये, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. एक दशक पहले मेला प्रांगण की खूबसूरती व इसकी महत्ता को चार-चांद लगाने का काम नाट्य मंचन के जरिये होता था. ग्रामीण सभ्यता के प्रतीक नाट्य मंचन में समाज के युवा व खासकर गिने-चुने वृद्धजन नाट्य-मंचन का ताना-बाना बड़ी संजीदगी से बुनते थे. दस दिन पहले से रिहर्सल शुरू हो जाता था. पात्र के हिसाब से कलाकारों का चयन भी होता था. कलाकार को सजाने के लिए बाहर से कारीगर मंगवाये जाते थे. कभी नाट्य मंच पर कालिया की बंदूक बोलती थी और हीर-रांझा की प्रेम-कहानी के किस्से सुनाये जाते थे. आज इसके स्थान पर आर्केष्ट्रा की महफिल सजती है. फूहड़ नृत्य गीत से न केवल सामाजिक मर्यादा को तार-तार किया जा रहा है, बल्कि चली आ रही संस्कृति पर भी काली छाया पड़ रही है.
रामलीला-कृष्णलीला अब कहां
जानकार कहते हैं कि दशहरा के अवसर पर अमरपुर, फुल्लीडुमर, बौंसी, शंभूगंज व बेलहर में खास तौर से नाट्य मंचन किया जाता था. खेसर में प्रत्येक दुर्गापूजा व सरस्वती पूजा के दरम्यान स्थानीय कलाकार खेसर उवि मैदान, कउवि व बाजार में नाट्य मंचन में विभिन्न भूमिका निभाते थे. करीब 15 वर्ष से यह बंद है. यही हाल अमरपुर के कई नाट्य परिषद सहित अन्य का है. इस ओर न तो पूजा समिति व न ही स्थानीय लोग ध्यान दे रहे हैं. यही नहीं दुर्गापूजा के अवसर पर प्रमुख रूप से रामलीला का आयोजन विभिन्न मेला प्रांगण में पूजा समिति की ओर से कराया जाता था. रामलीला को देखने भारी संख्या में लोग जुटते थे. अब रामलीला का आयोजन भी लगभग समाप्त हो गया.
क्या कहते हैं नाट्य मंच के कलाकार
नाट्य मंचन के कलाकार रामलाल भगत, अनिल भगत, अमरेंद्र सिंह सहित अन्य का कहना है कि परंपराओं के साथ चलने के लिए आज की पीढ़ी तैयार नहीं है. नाट्य कला क्या, आने वाले दिनों में कई ऐसी परंपराएं हैं जो केवल औपचारिकता बन कर रह जायेंगी. आज नाट्य मंचन से इतर मंदिर की सजावट कितनी बेहतर हो, इस पर ध्यान दिया जा रहा है. साउंड व आर्केष्टा पर लाखों उड़ाये जा रहे हैं. पर, थोड़ी जागरूकता लाकर नाट्य परिषद को फिर से जिंदा करने की सोच किसी में नहीं बची. आज से दस वर्ष पूर्व विभिन्न उपन्यास व कहानी पर आधारित समाज को प्रेरित करने वाले नाटकों का मंचन किया जाता था. आज अश्लील गाने बजाये जा रहे हैं.

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