अंबा़ यौन उत्पीड़न पर रोकथाम के लिए महिलाओं को आगे आने की जरूरत है. सामाजिक लोक लज्जा के डर से उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज नहीं उठाती है, जिससे इस तरह के उत्पीड़न करने वाले लोगों का मनोबल बढ़ जाता है. महिलाओं को भय व संकोच त्याग कर यौन उत्पीड़न के विरुद्ध कानून का सहारा लेनी चाहिए. यह बातें जिला विधिक सेवा प्राधिकार औरंगाबाद के तत्वावधान में कुटुंबा में आयोजित जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अधिवक्ताओं ने कहीं. इस कार्यक्रम का उद्घाटन वरिष्ठ अधिवक्ता रसिक बिहारी सिंह, पैनल अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण दुबे, अधिवक्ता दीपा कुमारी, पीएलवी माधुरी सिंह, प्रधानाध्यापक चंद्रशेखर प्रसाद साहू, देव बिहारी सिंह आदि ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. इस कार्यक्रम में कार्यस्थल पर महिला कर्मियों के यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध एवं निवारण अधिनियम 2013 के संबंध में जानकारी दी गयी. रसिक बिहारी सिंह ने कहा कि भारतीय संविधान में महिलाओं को सुरक्षा एवं संरक्षण का प्रावधान है. किसी भी महिला कर्मी के साथ कार्य स्थल पर यदि यौन उत्पीड़न, शोषण, भेदभाव आदि होता है, तो उन्हें कानून का सहारा लेना चाहिए. महिलाओं को उत्पीड़न व शोषण के खिलाफ साहस दिखा कर पुरजोर विरोध करने की जरूरत है. महिलाएं लोक लाज के डर से मामला दर्ज नहीं करना चाहती हैं. ऐसे मामलों के लिए विशेष कानून बनाये गये हैं. पैनल अधिवक्ता श्री दुबे ने बताया कि लंबी अदालती प्रक्रिया, विलंब एवं खर्चीली न्याय पद्धति को ध्यान में रख कर जिलास्तर पर लोक अदालत की शुरुआत की गयी है. लोक अदालत में कोई भी शिकायतकर्ता आवेदन देकर मामला दर्ज करा सकता है. इसमें शीघ्र व नि:शुल्क सुनवाई होती है. अगर, किसी दबाव या भय के कारण शिकायतकर्ता लोक अदालत तक नहीं पहुंचता है, तो अपना आवेदन डाक के माध्यम से भेज सकते हैं. अधिवक्ता दीपा कुमारी ने कहा कि महिलाओं व बच्चियों को गुड टच एवं बैड टच की जानकारी होनी चाहिए. उन्होंने महिलाओं को यौन उत्पीड़न को सहने के बजाय इसका विरोध करने की बात कही. मौके पर में विनोद कुमार, राम प्रकाश कुमार, नौशाद अहमद, दुष्यंत चौधरी, विजय मेहता, साकेत सारंग के अलावा दर्जनों की संख्या में छात्राएं शामिल रहीं.
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