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रेणु ने बनाया अपना फ्रेम

स्मृति शेष. बहुत याद आते हैं अपनी माटी के लेखक रेणु साहित्यकारों ने व्यक्त किये विचार. अररिया : अपने उपन्यास मैला आंचल से रातों रात ख्याति हासिल कर हिंदी साहित्य जगत में अपना विशेष मुकाम बनाने वाले कालजयी कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की रचनाओं के बारे में जिले के साहित्यकारों की राय है कि वे […]

स्मृति शेष. बहुत याद आते हैं अपनी माटी के लेखक रेणु

साहित्यकारों ने व्यक्त किये विचार.
अररिया : अपने उपन्यास मैला आंचल से रातों रात ख्याति हासिल कर हिंदी साहित्य जगत में अपना विशेष मुकाम बनाने वाले कालजयी कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की रचनाओं के बारे में जिले के साहित्यकारों की राय है कि वे पूरी तरह परिवेश के लेखक थे. अपनी रचनाएं अपनेपन का एहसास दिलाती हैं. अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत समाज से परिचय कराती हैं. मानवीय संवेदनाओं को झकझोरती करती है.
गौरतलब है कि फारबिसगंज के औराही हिंगना में जन्म लेने वाले फणीश्वर नाथ रेणु का निधन 11 अप्रैल 1977 में हो गया था. उनकी पुण्य तिथि उपलक्ष में रेणु साहित्य की मूल विशेषताओं के बारे में पूछे जाने पर साहित्यकारों ने अपनी राय दी. रेणु साहित्य पर अपनी गहरी पकड़ रखने वाले साहित्यकार बसंत कुमार राय मानते हैं कि वो परिवेश के लेखक थे.
व्यक्ति व समाज को परिवेश की उपज मानते थे. यही सच भी है. बट बाबा व मैला आंचल के हवाले से श्री राय ने कहा कि रेणु ने अपनी रचनाओं में नायक व नायिका की अवधारणा को बदल दिया. बट बाबा में पेड़ नायक है, तो मैला आंचल में पूरे समाज की नायक व खलनायक दिखायी पड़ता है. पूर्व निर्धारित फ्रेम से अलग उन्होंने अपनी रचनाओं के लिए अपना फ्रेम बनाया. नैना जोगिन, रसप्रिया व मारे गये गुलफाम जैसी रचनाओं को सामने रखते हुए उन्होंने कहा कि रेणु की रचनाओं का रीवर्स गीयर लाजवाब है. पात्रों का चरित्र कहानी के अंत में अचानक से बदले रूप में सामने आता है.
अपनी राय देते हुए उर्दू कहानीकारों में देश में अपनी पहचान रखने वाले रफी हैदर अंजुम ने कहा कि रेणु ने अपनी रचनाओं के लिए एक ऐसे शिल्प को अपनाया जो हिंदी साहित्य जगत के लिए चौंकाने वाला था. रेणु की कहानियां पाठकों को एक ऐसे जीते जागते समाज से परिचय कराती हैं, जो अपनी पहचान, अपनी अस्मिता व अपने अस्तित्व के लिए संघर्षशील हैं. रेणु साहित्य कि एक बड़ी विशेषता ये है कि पाठक खुद को उनकी रचनाओं का पात्र महसूस करने लगता है.
हिंदी के जाने-माने साहित्यकार रहबान अली राकेश ने कहा कि रेणु की रचनाएं लोक संस्कृति व सामाजिक अस्मिता का बेहतरीन चित्रण करती है. अन्य लेखकों में ऐसा बहुत कम मिलता है. मानवीय संवेदनाओं को झंकरित करना उनकी रचनाओं का एक प्रबल पक्ष है. ठुमरी व आदिम रात्रि की महक आदि का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी रचनाओं में लोक दृष्टि की गहनता है. ग्राम्य जीवन के चित्रण की ऐसी मिसाल कहीं अन्य बहुत मुश्किल से मिलेंगी.
उर्दू त्रैमासिक अब जद के संस्थापक व साहित्यकार रजी अहमद तनहा का कहना है कि रेणु की कहानियां अपने पन का एकहास दिलाती है. उनकी रचनाओं को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि किसी मेले में खोया हुआ कोई अपना अचानक मिल गया हो. भाषा इतनी सहज व देशज है कि पढ़ने वाले को लगता है कि कोई उनकी अपनी बोली में सुख-दुख बतिया रहा है. परिवेश व पात्रों के चित्रण में कहीं किसी मिलावट या बनावट का एहसास नहीं होता है. सब कुछ सहज व अपने आस पास का लगता है.
फणीश्वर नाथ रेणु के पारिवारिक मित्र व मैला आंचल के पात्र लल्लू बाबू वकील के पुत्र शैलेंद्र शरण उर्फ बुल्लू जी कहते हैं कि रेणु की रचनाओं को केवल उनकी बौद्धिक क्षमता से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता है. रेणु की रचनाएं इस लिए इतनी जीवंत हैं कि खुद रेणु ने उस जीवन को जिया था. उन्होंने जो लिखा उसे खुद भोगा था. ग्रामीन जीवन को बहुत करीब से देखा व महसूस किया था. वो संस्कृति व परिवेश उनके भीतर बसता था.

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