जांच टीम के सदस्यों को लेकर भी उठ रहे सवाल
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मनरेगा घोटाले के मामले को बनाया जा रहा पेचीदा
जांच टीम के सदस्यों को लेकर भी उठ रहे सवाल अररिया : हालात बता रहे हैं कि जिले के अररिया प्रखंड अंतर्गत बोची पंचायत में मनरेगा योजना में हुए कथित घोटाले के मामले को पेचीदा बनाने का प्रयास किया जा रहा है. हालांकि प्रभात खबर द्वारा इस मामले को सुर्खियों में लाने के बाद विभागीय […]
अररिया : हालात बता रहे हैं कि जिले के अररिया प्रखंड अंतर्गत बोची पंचायत में मनरेगा योजना में हुए कथित घोटाले के मामले को पेचीदा बनाने का प्रयास किया जा रहा है. हालांकि प्रभात खबर द्वारा इस मामले को सुर्खियों में लाने के बाद विभागीय अधिकारी ने एक बार फिर से जांच का आदेश देते हुए पांच सदस्यी टीम का गठन कर दिया है. पर जानकार टीम सदस्यों के चयन को लेकर ही सवाल उठा रहे हैं. गौरतलब है कि बीते साल दिसंबर माह में मनरेगा के कार्यपालक पदाधिकारी ने बोची में 16 मनरेगा योजनाओं का निरीक्षण प्रतिवेदन सौंपा था. प्रतिवेदन में कुल मिला कर लगभग 26 लाख के घपले घोटाले का उल्लेख योजना वार किया गया था.
निरीक्षण प्रतिवेदन से तो ये राशि गबन का स्पष्ट मामला दिखता है. प्रतिवेदन के आलोक में तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए थी. पर ऐसा हुआ नहीं. वहीं मामले को तूल पकड़ता देख अब जब फिर से जांच का आदेश दिया गया है, तो उसमें भी कई पेच नजर आ रहे हैं
. डीडीसी द्वारा हाल के दिनों में निर्गत जांच आदेश में अररिया प्रखंड के मनरेगा पीओ द्वारा की गयी जांच का हवाला देते हुए कार्यपालक अभियंता के निरीक्षण प्रतिवेदन को संदेह के दायरे में ला दिया गया है. जानना दिलचस्प है कि अपने प्रतिवेदन में मनरेगा के कार्यक्रम
पदाधिकारी ने भी स्वीकारा है कि बोची में मनरेगा की कुछ योजनाओं में काम पूरा नहीं हुआ है. लेकिन इसे कोई बड़ी अनियिमतता ठहराने के गुरेज किया है. पत्रांक 36, दिनांक सात मार्च 2017 द्वारा डीडीसी को भेजे अपने स्पष्टीकरण में कार्यक्रम पदाधिकारी ने कहा है कि बोची पंचायत में फर्जी एमबी के जरिया राशि निकासी की शिकायत पर 19 जनवरी को एक सामाजिक अंकेक्षण रखा गया था.
उस बैठक में बोची के साथ-साथ दो पड़ोसी पंचायतों के मुखिया, मनरेगा के कर्मी के अलावा पंचायत के अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे. प्रतिवेदन में कुल छह योजनाओं में अनियमितता की बात तो स्वीकारी गयी है. पर कुल राशि केवल सात लाख के करीब ही बतायी गयी है. प्रतिवेदन में ये भी कहा गया है कि सभी योजनाओं के अपूर्ण काम को पूरा कराया जा रहा है. मकई फसल लगे रहने के कारण काम में कुछ विलंब हो रहा है. फसल कटते ही काम शुरू कर दिया जायेगा. ऐसी स्थिति में दो अलग-अलग जांच प्रतिवेदनों के कारण कई सवाल पैदा होना लाजमी है. अव्वल तो ये कि कार्यपालक पदाधिकारी व कार्यक्रम पदाधिकारी के निरीक्षण प्रतिवेदनों में इतना अंतर कैसे है.
सवाल ये भी है कि क्या कार्यक्रम पदाधिकारी द्वारा उन सभी योजनाओं की जांच करायी गयी, जिसमें अनियमतता की बात कार्यपालक अभियंता के प्रतिवेदन में दर्ज है. एक बड़ा सवाल ये है कि अगर अनियमितता का मामला सामने आया था तो फिर कार्रवाई में देरी क्यों हुई. इसी सिलसिले में एक बड़ा सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि साप्ताहिक जांच के दौरान क्या प्रतिनियुक्त अधिकारियों की नजर से अनियमितता का ये मामला कैसे बचा रह गया
. दूसरी तरफ जानकार डीडीसी द्वारा हाल में दिये गये जांच आदेश पर भी सवाल उठा रहे हैं. कहा जा रहा है कि कार्यपालक अभियंता द्वारा किये जांच की सत्यता की जिम्मेदारी सहायक व कनीय अभियंता को कैसे दी जा सकती है. जांच किसी वरीय तकनीकी अधिकारी से ही कराना तर्कसंगत है. ये भी कि क्या तकनीकी मामलों की जांच गैर तकनीकी पदाधिकारी से कराना उचित है.
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