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नेपाल में चल रहे आंदोलन के कारण वराहक्षेत्र मेला पर संकट

नेपाल में चल रहे आंदोलन के कारण वराहक्षेत्र मेला पर संकटकोसी स्नान से वंचित होने का है लोगों में मलालआज लोग करेंगे कार्तिक पूर्णिमा का स्नानमेला को लेकर चतरा में होने वाले व्यापार पर पड़ेगा व्यापक असर फोटो:6- बराह क्षेत्र स्थित भगवान विष्णु का मंदिर.फोटो-7- इसी स्थान पर मिलती हैं सप्त कोसी.प्रतिनिधि, अररिया नेपाल मे […]

नेपाल में चल रहे आंदोलन के कारण वराहक्षेत्र मेला पर संकटकोसी स्नान से वंचित होने का है लोगों में मलालआज लोग करेंगे कार्तिक पूर्णिमा का स्नानमेला को लेकर चतरा में होने वाले व्यापार पर पड़ेगा व्यापक असर फोटो:6- बराह क्षेत्र स्थित भगवान विष्णु का मंदिर.फोटो-7- इसी स्थान पर मिलती हैं सप्त कोसी.प्रतिनिधि, अररिया नेपाल मे चल रहे मधेशी आंदोलन के कारण इस बार कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर शप्त कोसी नदी के किनारे लगने वाले वराह क्षेत्र के मेले में भारतीय श्रद्धालुओं की भीड़ नदारद रहेगी. मधेशी आंदोलन के कारण नेपाल में जन जीवन पूरी तरह से प्रभावित है. नेपाल में गत नब्बे दिनों से जारी मधेशी आंदोलन अनवरत जारी है. नेपाल में प्रदेश सीमांकन के मुद्दे व सामान अधिकार के मांग पर मधेशियों के द्वारा जारी आंदोलन रुकने का नाम नहीं ले रहा है. 17 अगस्त 2015 को प्रारंभ हुआ मधेशी आंदोलन आज तक जारी है. 20 सितंबर को नेपाल की कोइराला सरकार ने संविधान भी लागू कर दिया. उनके त्यागपत्र देने के बाद 11 अक्तूबर को नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के समक्ष आंदोलन को शांत करने की जिम्मेवार थी लेकिन आंदोलन समाप्त होने के बजाय और उग्र होता जा रहा है. मधेशी आंदोलन के समाप्त होने के आसार पर तीन बार हुई विशेष वार्ता भी विफल रही. इस आंदोलन का असर एक तरफ भारत के बेटी रोटी के संबंधों पर पड़ रहा है तो दूसरी तरफ दोनों देशों की धार्मिक व सांस्कृतिक रिश्तों से मेल खाती रीतियों पर भी पड़ रहा है. आंदोलन के कारण हुए बंदी से भगवान व भक्त के संबंधों में भी दूरियां स्पष्ट दिखायी पड़ने लगी है. नेपाल में राजशाही व लोकतांत्रिक लड़ाई के बीच वराह मेले के अवसर पर यदा-कदा बंद का असर देखने को मिलता था. बावजूद भक्तों को आने जाने की छूट दी जाती थी. लेकिन इस बार ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है जिसका परिणाम है कि वराह क्षेत्र जाने वाले लोगों के चेहरे पर मायूसी देखने को मिल रही है. विश्वामित्र की बहन कोसी है उग्र लेकिन फल है शुभ दायक हिमालय पर्वत से विभिन्न नामों से चर्चित कोसी की सात धाराएं एक साथ बराह क्षेत्र में मिलती हैं. नेपाल के सुनसरी जिले के चतरा के पहाड़ पर भगवान विष्णु के बराह रूप का मंदिर स्थापित है. रात दिन साधु संतों का वहां बसेरा रहता है. धुनियां रमी रहती है. भीषण ठंड में भी साधु के शरीर पर वस्त्र नहीं होता है. कहते हैं कि हिरण्य कश्यप के भाई हीरानक्षी के द्वारा पृथ्वी को जल समाधि दे दी गयी थी. दशावतार में भगवान विष्णु बराह रूप में प्रकट हुए व हीरानक्षी को मार पृथ्वी को जल से बाहर निकला. माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान वराह का वास है. खास कर कार्तिक मास के पूर्णिमा में श्रद्धालु यहां पहुंच कर कोसी की धारा में स्नान कर वराह भगवान का दर्शन करते हैं. कोसी के बारे में पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा गाधि के पुत्र विश्वामित्र जिन्होंने तपस्या कर ब्रह्म ऋषि का ओज पाया. वहीं गाधी की पुत्री ही कोसी के रूप में प्रख्यात हुई. कार्तिक मास के स्नान के बाद वराह दर्शन होता है कल्याण कारकमाना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा का व्रत सभी सुखों को प्रदान करने वाला होता है. इस संबंध में विशेष रुप से प्रकाश डालते हुए पंडित चंद्रानंद मिश्र ने बताया कि कार्तिक मास को देवताओं का मास माना जाता है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के पूर्णमासी को गंगा स्नान से लेकर कोसी स्नान तक को सर्वोत्तम माना गया है. बुधवार को पड़ने वाला कार्तिक पूर्णिमा शुक्र प्रधान भरणी नक्षत्र में पड़ रही है, जो अत्यंत शुभ, कल्याण कारक और सामंजस्य बढ़ाने वाला है. ऐसे समय में अगर भगवान विष्णु के वराह रुप का दर्शन हो तो वह और भी कल्याण कारक होगा. नेपाल में 86 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है. स्वाभाविक है कि वहां भगवान महादेव के दो महत्वपूर्ण मंदिर पशुपतिनाथ तो सागरमाथा के बर्फीले पहाड़ में निवास करने वाला महादेव का मंदिर भी हैं .भगवान बुद्ध के जन्म के प्रमाण के रुप में वहां लुंबनी भी अवस्थित है. मां भगवती के अनेकों मंदिरों में से धरान का दंत काली व मुंगलिग पहाड़ पर स्थित मां मनोकामना का मंदिर भी है तो वहां से दिखनी वाली मां विंध्याचल की मनोरम हिमालय श्रृंखला भी है. इसी प्रकार नेपाल के सुनसरी जिले में पर्वतीय श्रृंखलाओं से घिरा चतरा के मनोरम वादियों में स्थित वराहनाथ भगवान विष्णु का मंदिर भी है. इस धाम तक जाने के लिए भक्त चतरा के पास से पहाड़ के दुर्गम पगडंडियों से हो कर गुजरने वाले रास्ते को तय कर लगभग सात किलोमीटर की दूरी तय कर कोसी के गर्भ में स्थित वराह नाथ मंदिर में पहुंचते हैं. जहां भगवान विष्णु के दशावतार में से एक अवतार वराह वतार की पूजा कोसी में स्नान करने के बाद करते हैं. इस बार नहीं जा पा रहे हैं श्रद्धालु हर वर्ष चतरा की वादियों में भारतीय श्रद्धालुओं की संख्या 70 से 80 प्रतिशत तक रहती थी. वराह क्षेत्र में कोसी के समीप मेले से नजारा होता था. दुकानों का जमावड़ा व कोसी का कोलाहल लोगों को बर बस ही आकर्षित करता था. नेपाल के पावन तीर्थ बराह क्षेत्र के दर्शन को लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी. लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है. जोगबनी व भारतीय सीमा क्षेत्र से लोगों का नेपाल प्रवेश तो हो रहा है लेकिन चतरा तक जाने के लिए बस या अन्य वाहन नहीं मिल पा रहे हैं. चतरा जाने के लिए दो मार्ग हैं एक इटहरी से होकर व दूसरा धरान होकर गुजरता है. यात्री इटहरी के रास्ते चतरा पहुंच कर बराह क्षेत्र का दर्शन कर धरान के रास्ते वापस लोट कर दंत काली, बूढ़ा सुब्बा व पिंडेश्वर नाथ का दर्शन कर घर को लोट आते थे. लेकिन इस बार विराटनगर से ही वाहन नहीं मिल पा रहा है. जान जोखिम में डाल कर बस रात में खुल भी रहे हैं तो यात्री फिर वापस कैसे लौटेंगे इसकी जिम्मा कोई भी वाहन चालक नहीं ले रहा है. धरान से गाड़ी चल रही है लेकिन धरान जाने के लिए विराटनगर से वाहन नहीं मिल रहे हैं. आंदोलनकारी कब क्या करेंगे या फिर पुलिस का क्या रवैया होगा यह शौच कर भी लोग वराह क्षेत्र जाने से कतरा रहे हैं.

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